What is the relationship between religion, spirituality, faith and superstition?

धर्म, अध्यात्म, विश्वास तथा अंधविश्वास का आपस में क्या सम्बन्ध है?


हमारे देश में आज भी बहुत से लोग अंधविश्वास को धर्म के साथ जोडकर देखते है, जबकि धर्म तथा अध्यात्म हमारी मानसिक शांति के मार्ग है. रामचरित मानस के अनुसार माना गया है कि परहित सरिस धर्म नहिं भाई । पर पीड़ा सम नहिं अघमाई ।।” अर्थात किसी को सुख देने से बड़ा कोई धर्म नहीं है और किसी को दुःख देने से बड़ा कोई अधर्म नहीं है दुनिया का कोई भी काम यदि किसी की भलाई के लिए किया जाता है तो वह धर्म है, धर्म का अर्थ नैतिकता भी है, क्योंकि यह हमें सत्य के निकट ले जाता है, इसी सत्य से संसार  की व्यवस्था बनी रहती है, धार्मिक मान्यता के अनुसार यतोऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धिः स धर्मः। अर्थात धर्म वह अनुशासित जीवन क्रम है, जिसमें लौकिक उन्नति तथा अध्यात्मिक परमगति दोनों की प्राप्ति होती है। धर्म तथा अध्यात्म का मुख्य आधार विश्वास है, हम ईश्वर पर विश्वास करते है, हम अपने संगी-साथियों मित्र-रिश्तेदारों पर विश्वास करते है यही विश्वास हमारे जीवन, प्रेम तथा भाईचारे का आधार है। इसके विपरीत जब हम किसी पर अविश्वास या अंधविश्वास करते है तब यह दोनों परिस्थतिया हमारे लिए घातक हो सकती है।

भगवत गीता के अनुसार हमे स्वयं पर विश्वास कर अपना कर्म करना चाहिए। लेकिन तथाकथित धर्म के ठेकेदारों ने इन शिक्षाओ से परे धर्म के नाम पर अधार्मिक मान्यताओ तथा अंधविश्वास को बढावा देकर इन्हें आम आदमी के जीवन से इस तरह से जोड़ दिया कि अनपड़ लोगो से साथ साथ पड़े-लिखे लोग भी प्रचलित अन्धविश्वासों को धर्म से जोड़कर देखते है।

हमे इन अन्धविश्वासों का तर्क की कसोटी पर आंकलन कर इन्हें समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए साथ ही हमे अपनी धार्मिक आस्था तथा मान्यता के अनुरूप सनातम धर्म से कर्म तथा विश्वास, इस्लाम धर्म से भाईचारा, इसाई धर्म से सेवा, जैन धर्म से अहिंसा, बोद्ध धर्म के अनुसार अष्टांगिक मार्ग का अनुशीलन तथा सिख धर्म के अनुरूप सेवा तथा समर्पण की शिक्षा को आत्मसात करना चाहिए।


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