शुक्राणु-रूपी प्रतिनिधि-कोशिका से आपको-हमें अपने पिताजी से क्या-क्या विरासत में मिला है?
प्रस्तुतिकरण
ओम प्रकाश पाटीदार
शाजापुर (म.प्र.)
असाधारण इसलिए कि इसमें मनुष्य की हर कोशिका की तरह छियालीस गुणसूत्र नहीं होते , केवल तेईस होते हैं। हमें-आपको छियालीस ही लेकर जीवन काटना है। हमारी हर कोशिका में छियालीस गुणसूत्र हैं। सिवाय अण्डाणु और शुक्राणु के। इनमें तेईस हैं। फिर ये दोनों मिलते हैं और नयी कोशिका में फिर गुणसूत्र-संख्या छियालीस हो जाती है। और फिर विभाजन और छियालीस गुणसूत्रों वाली नयी-नयी कोशिकाओं का निर्माण।
शुक्राणु को ध्यान से देखिए। यह एक मेढक के शिशु कहलाने वाले टैडपोल-सा नज़र आता है। एक बड़ा सिर और उससे निकलती एक लम्बी पूँछ। और ध्यान से देखेंगे तो सिर और पूँछ के बीच में एक तनिक मोटा हिस्सा नज़र आएगा , जिसे मिडल पीस कहते हैं। इन सभी हिस्सों के अपने महत्त्व हैं और जीव के जन्म-हेतु उनके अपने कार्य।
शुक्राणु का सबसे बड़ा हिस्सा उसका सिर है। ज़ाहिर है इसमें कुछ बहुत महत्त्वपूर्ण वस्तु है। जी हाँ , वह हमारे-आपके पिताजी का डीएनए है। वही डीएनए जो हमें पापा-जैसा बनाता है। यह डीएनए जिस संरचना में बन्द है , वह शुक्राणु का केन्द्रक कहलाता है।
केन्द्रक के ठीक आगे एक दूसरी संरचना दिखती है। उससे ठीक ऊपर और पहले। यह एक्रोज़ोम कहलाती है। इसमें पाचक रसायन हैं जिससे शुक्राणु अण्डाणु की मोटी सतह भेद सकता है।
फिर मिडिल पीस को देखिए। इसमें माइटोकॉण्ड्रिया हैं। माइटोकॉण्ड्रिया वही , जिनसे हर कोशिका ऊर्जा बनाती है। ये शुक्राणु के बिजलीघर हैं। फ्रक्टोज़ नामक शर्करा लेकर उसे माइटोकॉण्ड्रिया में तोड़ा गया और ऊर्जा पैदा हुई। इसी ऊर्जा का इस्तेमाल यह नन्हीं कोशिका तैरकर अण्डाणु तक पहुँचने में करेगी।
लेकिन फिर मिडिल पीस में एक और संरचना ध्यान देने योग्य है। इन्हें सेन्ट्रियोल कहते हैं। नन्हीं नलिकाओं से बनी वे संरचनाएँ जो कोशिका-विभाजन के समय महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। कोशिका के भीतर एक जाल सा बना देती हैं ये और इनसे बँधकर गुणसूत्र बँटा करते हैं और दुगुने होते हैं।
तो साहब , लाखों शुक्राणु तैरे। कुछ अण्डाणु तक पहुँचे। एक ने सफल भेदन किया। अपने एक्रोज़ोम से पाचक रस निकालकर अण्डाणु की मोटी दीवार पार कर ली। और दो वस्तुएँ पिताजी की माताजी से मिलीं। केन्द्रक का डीएनए और शुक्राणु के सेन्ट्रियोल।
अण्डाणु में सेन्ट्रियोल नहीं होते। उनके निर्माण के समय वे उनमें बचते नहीं। ऐसे में नया एककोशिकीय जीव पापा के सेन्ट्रियोल के सहारे ही बहुकोशिकीय हो पाएगा। सेन्ट्रियोल के बिना अण्डाणु कैसे बँटेगा और बहुकोशिकीय जीव का निर्माण कैसे होगा !
एक बात और। माता का अण्डाणु पूरी तरह विकसित नहीं था। पिता के शुक्राणु के प्रवेश के बाद उसके विकास का अन्तिम कार्य पूरा होता है। माता-पिता के डीएनए मिले , पिता ने सेन्ट्रियोल दिये और माँ के अण्डाणु का विकास पूर्ण किया।
हमारा-आपका अस्तित्व हो गया। अब आगे वृद्धि शेष है। उसपर फिर बात होगी।
साभार
डॉ. स्कन्द शुक्ला