क्रायोजेनिक्स क्या है?

क्रायोजेनिक्स कम तापमान के उत्पादन का अध्ययन है। 



विज्ञान की इस शाखा में यह अध्ययन किया जाता है कि कम तापमान पर धातुओं और गैसों में क्या परिवर्तन आता है। ऐसा देखने में आता है कि कई धातुएं कम तापमान पर पहले से ज्यादा ठोस हो जाती हैं।  
शाब्दिक अर्थो में यह ठंडे तापमान पर धातुओं के आश्चर्यजनक व्यवहार के अध्ययन का विज्ञान है। इसकी एक शाखा में इलेक्ट्रॉनिक तत्वों पर फ्रीजिंग के प्रभाव का अध्ययन और अन्य में मनुष्यों और पौधों पर फ्रीजिंग के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है। कुछ वैज्ञानिक क्रायोजेनिक्स को पूरी तरह कम तापमान तैयार करने की विधि से जोड़कर देखते हैं जबकि कुछ कम तापमान पर धातुओं में आने वाले परिवर्तन के अध्ययन के रूप में। 
क्रायोजेनिक्स में अध्ययन किए जाने वाले तापमान की रेंज काफी ज्यादा होती है। कुछ लोग मानते हैं कि इसमें -180*फारेनहाइट (-123*सेल्सियस) से नीचे के तापमान को ही शामिल किया जाता है। यह तापमान फ्रीजिंग प्वाइंट से काफी नीचे होता है और जब धातुओं को इस तापमान तक लाया जाता है तो उन पर आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ता है। इतना कम तापमान तैयार करने के कुछ रास्ते हैं, जैसे विशेष तरह के फ्रीजर्स या नाइट्रोजन के जैसी तरल गैस, जो अनुकूल दाब की स्थिति में तापमान को नियंत्रित कर सकती है। 
धातुओं को क्रायोजेनिक्स के द्वारा ठंडे किए जाने पर उनके अणुओं की क्षमता बढ़ती है। इससे वह धातु पहले से ठोस और मजबूत हो जाती हैं। इस विधि से कई तरह की दवाएं तैयार की जाती हैं और तमाम धातुओं को संरक्षित किया जाता है। रॉकेट और अंतरिक्ष यान में क्रायोजेनिक ईंधन का प्रयोग भी होता है। क्रायोजेनिक संरक्षण की एक शाखा को क्रायोनिक कहते हैं। संभव है कि इसके जरिए भविष्य में मेडिकल तकनीक द्वारा मनुष्य और जानवर फ्रीज कर संरक्षित रखे जा सकें। ऐसा नियंत्रित परिस्थितियों में ही करना संभव होगा। इसके बावजूद इसका उपयोग आम आदमी के बस की बात नहीं होगी।

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