धरती को साफ रखने वाला पक्षी गिद्ध

स्वछता का अग्रदूत (Ambassador) गिद्ध (Vulture) संकट में-
संकलन
ओम प्रकाश पाटीदार

भारतीय गिद्ध (Gyps indicus) पुरानी दुनिया का गिद्ध है जो नई दुनिया के गिद्धों से अपनी सूंघने की शक्ति में भिन्न हैं। यह मध्य और पश्चिमी से लेकर दक्षिणी भारत तक पाया जाता है। गिद्ध खड़ी चट्टानों की दरारों एवम ऊंचे  पेड़ों पर  अपना  घोसला बनाते है। यह अपमार्जक या मुर्दाख़ोर होता है और यह ऊँची उड़ान भरकर इंसानी आबादी के नज़दीक या जंगलों में मुर्दा पशु को ढूंढ लेते हैं और उनका आहार करते हैं। इनके नेत्र बहुत तीक्ष्ण होते हैं और काफ़ी ऊँचाई से यह अपना आहार ढूंढ लेते हैं। यह प्रायः समूह में रहते हैं। भारतीय गिद्ध का सर गंजा होता है, उसके पंख बहुत चौड़े होते हैं तथा पूँछ के पर छोटे होते हैं। इसका वज़न 5.5 से 6.3 कि. होता है। इसकी लंबाई 80-103 से. मी. तथा पंख खोलने में 1.96 से 2.38 मी. की चौड़ाई होती है।
गिद्ध मुर्दाखोर पक्षी होते हैं जो बड़े पशुओं के शवों को खाते हैं और इसलिए पर्यावरण को साफ करने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। गिद्ध का वर्णन भारत के पौराणिक महाकाव्य रामायण में किया गया है जहां रावण की चंगुल से सीता को बचाने के दौरान गिद्धों के राजा जटायु ने अपनी जान गंवा दी थी।


गिद्धों से हमे और पर्यावरण को क्या लाभ है?
1. गिद्ध पर्यावरण के प्राकृतिक सफाईकर्मी होते हैं। ये मृत और सड़ रहे पशुओं के शवों को भोजन के तौर पर खाते हैं और इस प्रकार मिट्टी में खनिजों की वापसी की प्रक्रिया को बढ़ाते बैं। इसके अलावा, मृत शवों को समाप्त कर वे संक्रामक बीमारियों को फैलने से भी रोकते हैं। गिद्धों की अनुपस्थिति में मूषक और आवारा कुत्तों जैसे पशुओं द्वारा रेबीज जैसी बीमारी के प्रसार को बढ़ाने की संभावना बढ़ जाएगी।
    2. भारत में पारसी धर्म (पारसी समुदाय) के अनुयायी अपने मृत शवों के निराकरण के लिए परंपरागत रूप से गिद्धों पर निर्भर करते हैं। इसलिए, कई सदियों से भारत के गिद्ध पारसी धर्म के लोगों के लिए महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र सेवा प्रदान कर रहे हैं।
    चिंता का विषय- 
    वर्तमान समय मे देखा गया कि इस दुनिया से खासकर भारत से गिद्ध गायब ही हो गया। जो एक गंभीर विषय है।


    भारतीय गिद्धों की मौत के कारण :
    1. बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (बीएनएचएस) के विश्लेषण के अनुसार डिक्लोफेनाक (Diclofenac) का पशु-चिकित्सा में उपयोग भारत में गिद्धों के लिए मुख्य खतरा है। डिक्लोफेनाक एक गैर–स्टेरॉयडल सूजन–रोधी दवा (NSAID) है जो मांसपेशियों की दर्द के समय लगाए जाने वाले लगभग सभी प्रकार के जेलों, क्रीमों और स्प्रे का एक घटक है।
      2. यह दवा पशुओं पर भी समान रूप से प्रभावी होती है और जब कामकाजी पशुओं को इसे दिया जाता है तो उनके जोड़ों का दर्द कम हो जाता है और उन्हें अधिक समय तक कामकाजी बनाए रखता है। इसलिए पशुओं में दर्द निवारक के तौर पर डिक्लोफेनाक का बड़े पैमाने पर प्रयोग भारत में गिद्धों की मौत की वजह है।
        चूंकि गुर्दों को इस दवा को शरीर से बाहर करने में काफी समय लग जाता है इसलिए मृत्यु के बाद भी यह पशु के शरीर में मौजूद रहता है। चूंकि गिद्ध मुर्दाखोर होते हैं और इसलिए वे मृत पशुओं के शवों को भोजन के तौर पर ग्रहण करने लगते हैं। एक बार जब वे डिक्लोफेनाक संदूषित मांस का सेवन कर लेते हैं तो उनके गुर्दे काम करना बंद कर देते हैं और उनकी मौत हो जाती है।
          3. भारत में गिद्धों के लिए कीटनाशक प्रदूषण भी एक खतरा है। क्लोरीनयुक्त हाइड्रोकार्बन डी.डी.टी (डाइक्लोरो डाइफिनाइल ट्राईक्लोरोइथेन) का प्रयोग कीटनाशक के तौर पर किया जाता है। यह गिद्धों के शरीर में खाद्य श्रृंखला के माध्यम से प्रवेश करता है जहां यह एस्ट्रोजन हार्मोन की गतिविधि को प्रभावित करता है, परिणामस्वरूप अंड कोश कमजोर हो जाता है। इससे अंडों की असामयिक सोने की प्रक्रिया होती है जिससे भ्रूण की मौत हो जाती है।
            4. शिकारी हाथी, बाघ, गैंडा, हिरण और भालू जैसे जंगली पशुओं के चमड़े, दांत, कस्तूरी, सींग, शाखायुक्त सींग और बाइल को निकालने के लिए जहरीले भोजन का सहारा लेते हैं। जब जहरीला भोजन खा कर मरने वाले पशुओं के शवों को गिद्ध खाते हैं तो वे भी मर जाते हैं।
            गिद्धों के बारे में सात आश्चर्यजनक बातें

            गिद्ध (Vulture) बड़े आकार का पक्षी है जिसकी खानपान की आदतें पारिस्थितिकी तंत्र या ईको सिस्टम के लिए ज़रूरी हैं. यह मेरे हुए पशुओं को कुछ ही समय मे खा कर वातावरण को साफ रखने का महत्वपूर्ण कार्य करते है।

            दिखने में बदसूरत गंदा से  गिद्ध के बारे में हम चाहें जैसी भी राय रखते हों, लेकिन उनके बारे में एक बात तो साफ़ है कि वो ख़तरे में हैं.

            पिछले एक दशक के दौरान भारत, नेपाल और पाकिस्तान में उनकी तादात में 95 प्रतिशत तक की कमी आई है। जो चिंताजनक है।

            ये पक्षी जिन शवों को खाते हैं, उससे उनके शरीर में ज़हर पहुंच रहा है. कुछ लोग मानते हैं कि जानवरों को दी जाने वाली दवाओं के कारण ऐसा हो रहा है, जबकि दूसरे लोग मानते हैं कि नियमों को ताक पर रखकर किए जा रहे शिकार के कारणइनकी संख्या घट रही है. इनका शिकार इसलिए भी किया जा रहा है ताकि ये गैंडों और हाथियों की मौत के बारे में चेतावनी न दे सकें.

            गिद्ध पक्षी के अनूठे गुणों को जानकर हो सकता है, इनके प्रति आपका नज़रिया बदल जाये-
            आइए उनके ऐसे ही कुछ गुणों के बारे में जानते हैं.

            1. बुलंद उड़ान

            गिद्ध सबसे ऊंची उड़ान भरने वाला पक्षी है. इसकी सबसे ऊंची उड़ान को रूपेल्स वेंचर ने 1973 में आइवरी कोस्ट में 37,000 फीट की ऊंचाई पर रिकॉर्ड किया था, जब इसने एक हवाई जहाज को प्रभावित किया था. ये ऊंचाई एवरेस्ट (29,029 फीट) से काफ़ी अधिक है और इतनी ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी से ज़्यादातर दूसरे पक्षी मर जाते हैं.
             "इसके बाद गिद्ध को लेकर हुए अध्ययनों से उनके हीमोग्लोबिन और ह्दय की संरचना से संबंधित कई ऐसी विशेषताओं के बारे में पता चला, जिनके चलते वो असाधारण वातावरण में भी सांस ले सकते हैं."

            गिद्ध भोजन की तलाश में एक बड़े इलाक़े पर नज़र डालने के लिए अक्सर ऊंची उड़ान भरते हैं.

            2. सबसे बड़े पेटू

            आपको शायद लगता है कि जंगली जानवरों को खाने वालों में सबसे आगे शेर, हाइना, तेंदुए, चीते, जंगली कुत्ते और गीदड़ हैं. लेकिन ऐसा है नहीं। "मांसाहारी जीव (स्तनधारी) इसके केवल 36 प्रतिशत हिस्से को खा सकते हैं और बाकी गिद्धों के हिस्से में आता है. इस संसाधन के लिए जीवाणु और कीड़े गिद्धों से मुक़ाबला करते हैं, लेकिन इसके बावजूद गिद्ध ही सबसे बड़े उपभोक्ता हैं." गिद्ध बीमारियों को फैलने से रोकने के साथ ही जंगली कुत्तों जैसे अन्य मुर्दाख़ोरों की संख्या को सीमित रखने में भी मददगार साबित होते हैं.

            3. करामाती पेशाब

            तुर्की के गिद्ध अपने पैरों पर पेशाब करते हैं और उनकी ये आदत आपको भले ही अच्छी न लगे, लेकिन वैज्ञानिकों का अनुमान है कि उनकी इस आदत से उन्हें बीमारियों से बचने में मदद मिलती है.
            सड़े हुए मांस पर खड़े होने के कारण गिद्धों के पैरों में गंदगी लग जाती है और ऐसा अनुमान है कि गिद्धों के पेशाब में मौजूद अम्ल उनके पैरों को कीटाणुओं से मुक्त बनाने में मदद करता है.

            4. विविधतापूर्ण खानपान

            ये सही है कि गिद्धों को सड़ा हुआ मांस और मृत पशुओं को खाने के लिए जाना जाता है, लेकिन सभी गिद्ध केवल सड़ा हुआ मांस नहीं खाते हैं.
            पाम नट वल्चर (गिद्ध) कई तरह के अखरोट, अंजीर, मछली और कभी कभी पक्षियों को भी खाता है. कंकालों के मुक़ाबले इसे कीड़े और ताजा मांस पसंद है.
            गिद्धों की सबसे बड़ी अफ्रीकी प्रजाति लैप्पेट-फेस्ड वल्चर के पंख 2.9 मीटर तक चौड़े होते हैं और इसे मुर्गी के जिंदा बच्चे भोजन के रूप में अधिक पसंद हैं.

            5. मजबूत पेट

            बिर्डड वल्चर दुनिया का एक मात्र ऐसा जानवर है जो अपने भोजन में 70 से 90 प्रतिशत तक हड्डियों को शामिल कर सकता है और उनके पेट का अम्ल उन चीजों से भी पोषक तत्व ले सकते हैं, जिसे दूसरे जानवर छोड़ देते हैं.
            गिद्धों के पेट का अम्ल इतना शक्तिशाली होता है कि वो हैजे और एंथ्रेक्स के जीवाणुओं को भी नष्ट कर सकता है जबकि दूसरी कई प्रजातियां इन जीवाणुओं के प्रहार से मर सकती हैं.

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