(7 नवंबर, 1888 - 21 नवंबर,1970)
चन्द्रशेखर वेंकटरमन भारतीय भौतिक-शास्त्री थे। प्रकाश के प्रकीर्णन पर उत्कृष्ट कार्य के लिये वर्ष 1930 में उन्हें भौतिकी का प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार दिया गया ।
चन्द्रशेखर वेंकटरमन का जन्म 7 नवम्बर सन् 1888ई. मेंतमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली नामक स्थान में हुआ था। आपके पिता चन्द्रशेखर अय्यर एस. पी. जी. कॉलेज में भौतिकी के प्राध्यापक थे। आपकी माता पार्वती अम्मल एक सुसंस्कृत परिवार की महिला थीं। सन् 1892. मे आपके पिता चन्द्रशेखर अय्यर विशाखापतनम के श्रीमती ए. वी.एन. कॉलेज में भौतिकी और गणित के प्राध्यापकहोकर चले गए। उस समय आपकी अवस्था चार वर्ष की थी। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा विशाखापत्तनम में ही हुई। वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य और विद्वानों की संगति ने आपको विशेष रूप से प्रभावित किया।
आपने बारह वर्ष की अल्पावस्था में ही मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। तभी आपको श्रीमती एनी बेसेंट के भाषण सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उनके लेख पढ़ने को मिले। आपने रामायण, महाभारत जैसे धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया। इससे आपके हृदय पर भारतीय गौरव की अमिट छाप पड़ गई। आपके पिता उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजने के पक्ष में थे; किन्तु एक ब्रिटिश डॉक्टर ने आपके स्वास्थ्य को देखते हुए विदेश न भेजने का परामर्श दिया। फलत: आपको स्वदेश में ही अध्ययन करना पड़ा। आपने सन् 1903 ई. में चेन्नै के प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश ले लिया। यहाँ के प्राध्यापक आपकी योग्यता से इतने प्रभावित हुए कि आपको अनेक कक्षाओं में उपस्थित होने से छूट मिल गई। आप बी.ए. की परीक्षा में विश्वविद्यालयमें अकेले ही प्रथम श्रेणी में आए। आप को भौतिकी में स्वर्णपदक दिया गया। आपको अंग्रेजी निबंध पर भी पुरस्कृत किया गया। आपने 1907 में मद्रास विश्वविद्यालयसे गणित में प्रथम श्रेणी में एमए की डिग्री विशेष योग्यता के साथ हासिल की। आपने इस में इतने अंक प्राप्त किए थे, जितने पहले किसी ने नहीं लिए थे।
आपने शिक्षार्थी के रुप में कई महत्त्वपूर्ण कार्य किए। सन् 1906 ई. में आपका प्रकाश विवर्तन पर पहला शोध पत्रलंदन की फिलसोफिकल पत्रिका में प्रकाशित हुआ। उसका शीर्षक था - 'आयताकृत छिद्र के कारण उत्पन्न असीमित विवर्तन पट्टियाँ'। जब प्रकाश की किरणें किसी छिद्र में से अथवा किसी अपारदर्शी वस्तु के किनारे पर से गुजरती हैं तथा किसी पर्दे पर पड़ती हैं, तो किरणों के किनारे पर मद-तीव्र अथवा रंगीन प्रकाश की पट्टियां दिखाई देती है। यह घटना `विवर्तन' कहलाती है। विवर्तन गति का सामान्य लक्षण है। इससे पता चलता है कि प्रकाशतरगों में निर्मित है।
उन दिनों आपके समान प्रतिभाशाली व्यक्ति के लिए भीवैज्ञानिक बनने की सुविधा नहीं थी। अत: आप भारत सरकार के वित्त विभाग की प्रतियोगिता में बैठ गए। आप प्रतियोगिता परीक्षा में भी प्रथम आए और जून, 1907 में आप असिस्टेंट एकाउटेंट जनरल बनकर कलकत्ते चले गए। उस समय ऐसा प्रतीत होता था कि आपके जीवन में स्थिरता आ गई है। आप अच्छा वेतन पाएँगे और एकाउँटेंट जनरल बनेंगे। बुढ़ापे में उँची पेंशन प्राप्त करेंगे। पर आप एक दिन कार्यालय से लौट रहे थे कि एक साइन बोर्ड देखा, जिस पर लिखा था 'वैज्ञानिक अध्ययन के लिए भारतीय परिषद (इंडियन अशोसिएशन फार कल्टीवेशन आफ़ साईंस)'। मानो आपको बिजली का करेण्ट छू गया हो। तभी आप ट्राम से उतरे और परिषद् कार्यालय में पहुँच गए। वहाँ पहुँच कर अपना परिचय दिया और परिषद् की प्रयोगशाला में प्रयोग करने की आज्ञा पा ली।
तत्पश्चात् आपका तबादला पहले रंगून को और फिरनागपुर को हुआ। अब आपने घर में ही प्रयोगशाला बना ली थी और समय मिलने पर आप उसी में प्रयोग करते रहते थे। सन् 1911 ई. में आपका तबादला फिर कलकत्ता हो गया, तो यहाँ पर परिषद् की प्रयोगशाला में प्रयोग करने का फिर अवसर मिल गया। आपका यह क्रम सन् 1917ई. में निर्विघ्न रुप से चलता रहा। इस अवधि के बीच आपके अंशकालिक अनुसंधान का क्षेत्र था - ध्वनि के कम्पन और कार्यों का सिद्धान्त। आपका वाद्यों की भौतिकी का ज्ञान इतना गहरा था कि सन् 1927 ई. मेंजर्मनी में प्रकाशित बीस खण्डों वाले भौतिकी विश्वकोश के आठवें खण्ड के लिए वाद्ययंत्रों की भौतिकी का लेख आपसे तैयार करवाया गया। सम्पूर्ण भौतिकी कोश में आप ही ऐसे लेखक हैं जो जर्मन नहीं है।
कलकत्ता विश्वविद्यालय में सन् 1917 ई में भौतिकी के प्राध्यापक का पद बना तो वहाँ के कुलपति आशुतोष मुखर्जी ने उसे स्वीकार करने के लिए आपको आमंत्रित किया। आपने उनका निमंत्रण स्वीकार करके उच्च सरकारी पद से त्याग-पत्र दे दिया।
कलकत्ता विश्वविद्यालय में आपने कुछ वर्षों में वस्तुओं में प्रकाश के चलने का अध्ययन किया। इनमें किरणों का पूर्ण समूह बिल्कुल सीधा नहीं चलता है। उसका कुछ भाग अपनी राह बदलकर बिखर जाता है। सन् 1921 ई. में आप विश्वविद्यालयों की कांग्रेस में प्रतिनिधि बन गएआक्सफोर्ड गए। वहां जब अन्य प्रतिनिधि लंदन में दर्शनीय वस्तुओं को देख अपना मनोरंजन कर रहे थे, वहाँ आप सेंट पाल के गिरजाघर में उसके फुसफुसाते गलियारों का रहस्य समझने में लगे हुए थे। जब आप जलयान से स्वदेश लौट रहे थे, तो आपने भूमध्य सागर के जल में उसका अनोखा नीला व दूधियापन देखा। कलकत्ता विश्वविद्यालय पहुँच कर आपने पार्थिव वस्तुओं में प्रकाश के बिखरने का नियमित अध्ययन शुरु कर दिया। इसके माध्यम से लगभग सात वर्ष उपरांत, आप अपनी उस खोज पर पहुँचें, जो 'रामन प्रभाव' के नाम से विख्यात है। आपका ध्यान 1927 ई. में इस बात पर गया कि जब एक्स किरणें प्रकीर्ण होती हैं, तो उनकी तरंग लम्बाइया बदल जाती हैं। तब प्रश्न उठा कि साधारण प्रकाश में भी ऐसा क्यों नहीं होना चाहिए?
आपने पारद आर्क के प्रकाश का स्पेक्ट्रम स्पेक्ट्रोस्कोप में निर्मित किया। इन दोनों के मध्य विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थ रखे तथा पारद आर्क के प्रकाश को उनमें से गुजार कर स्पेक्ट्रम बनाए। आपने देखा कि हर एक स्पेक्ट्रम में अन्तर पड़ता है। हरएक पदार्थ अपनी-अपनी प्रकार का अन्तर डालता है। तब श्रेष्ठ स्पेक्ट्रम चित्र तैयार किए गए, उन्हें मापकर तथा गणित करके उनकी सैद्धान्तिक व्याख्या की गई। प्रमाणित किया गया कि यह अन्तर पारद प्रकाश की तरगं लम्बाइयों में परिवर्तित होने के कारण पड़ता है। रामन् प्रभाव का उद्घाटन हो गया। आपने इस खोज की घोषणा 28 फ़रवरी सन् 1928 ई. को की।
आप सन् 1924 ई. में अनुसंधानों के लिए रॉयल सोसायटी, लंदन के फैलो बनाए गए। रामन प्रभाव के लिए आपको सन् 1930 ई. मे नोबेल पुरस्कार दिया गया। रामन प्रभाव के अनुसंधान के लिए नया क्षेत्र खुल गया।
1948 में सेवानिवृति के बाद उन्होंने रामन् शोध संस्थानकी बैंगलोर में स्थापना की और इसी संस्थान में शोधरत रहे। 1954 ई. में भारत सरकार द्वारा भारत रत्न की उपाधि से विभूषित किया गया। आपको 1957 में लेनिन शान्ति पुरस्कार भी प्रदान किया था।
28 फरवरी 1928 को चन्द्रशेखर वेंकट रामन् ने रामन प्रभाव की खोज की थी जिसकी याद में भारत में इस दिन को प्रत्येक वर्ष 'राष्ट्रीय विज्ञान दिवस' के रूप में मनाया जाता है ।
जय विज्ञान ।
🙏🙏🙏💞💓
जवाब देंहटाएंHappy Birthday
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जवाब देंहटाएंHappy birthday
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जवाब देंहटाएंJay hind����✨❤����������
जवाब देंहटाएंHappy Birthday
जवाब देंहटाएं,🌹🌹🌹🌹🌹sir
जवाब देंहटाएंHappy Birthday
हटाएंHappy Birthday
हटाएंHappy birthday
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏🙏🙏विज्ञान दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंHappy birthday
जवाब देंहटाएं🎂Happy birthday sir 🎂
जवाब देंहटाएंHappy birthday sir you are a legend and I think legends never die
जवाब देंहटाएंHappy birthday
जवाब देंहटाएंHappy Birthday 🎉🎂
हटाएंHappy birthday sir
हटाएंHappy birthday to your legend sir..
जवाब देंहटाएंMany many happy returns of day 🎂🎂🎂🎂🎈🎈
जवाब देंहटाएंWish you very very happy birthday 🎂 sir 💐💐💐
जवाब देंहटाएंHappy ��birthday��
जवाब देंहटाएंHappy Birthday sir
जवाब देंहटाएंAap ek mahan vegyanik the
Happy birthday sir ji
जवाब देंहटाएंHappy birthday
जवाब देंहटाएंHappy birthday sir
जवाब देंहटाएंHappy birthday sir
जवाब देंहटाएंGood information
जवाब देंहटाएंNice information happy birthday
जवाब देंहटाएंHappy birthday sir very nice information
जवाब देंहटाएंHappy birthday sir very nice information
जवाब देंहटाएंHappy birthday
जवाब देंहटाएंHappy birthday🎂🎉🎉 🙏🙏
जवाब देंहटाएंHapppy birthday sir
जवाब देंहटाएंHappy birthday sir
जवाब देंहटाएंHappy birthday to our legend sir .
जवाब देंहटाएंSir,u are a famous scientic of our life ..
Happy Birthday
जवाब देंहटाएंHappy birthday
जवाब देंहटाएंhaopy birthday sir
जवाब देंहटाएंHappy birthday sir
जवाब देंहटाएंJanmadin ki Hardik shubhkamnayen,apki kami hamesh rahegi,iss din ko rashtriya vigyan divas manane ke liye dhanyavad,apse hamesha ane wali pidhi prerit hogi
जवाब देंहटाएंJanmadin ki Hardik shubhkamnayen,apki kami hamesh rahegi,iss din ko rashtriya vigyan divas manane ke liye dhanyavad,apse hamesha ane wali pidhi prerit hogi
जवाब देंहटाएंHappy birthday day sir
जवाब देंहटाएंHappy Birthday sir ji
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जवाब देंहटाएंHappy birthday to c v Raman jai bigyan
जवाब देंहटाएंJaibigyan happy birthday
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