मृत्यु का विज्ञान
प्रस्तुतीकरण
ओम प्रकाश पाटीदार
मृत्यु क्या है और जीवित प्राणी क्यों मरता है, मनुष्य इन सवाल का जवाब हजारों साल से खोज रहा है। चलिये देखते हैं आखिर विज्ञान मृत्यु और उसकी प्रक्रिया के बारे में क्या कहता है।
30 की उम्र में मानव शरीर में ठहराव आने लगता है। 35 साल के आस पास लोगों को लगने लगता है कि शरीर अब कुछ गड़बड़ करने लगा है। 30 साल के बाद हर दशक में हड्डियों का द्रव्यमान एक फीसदी कम होने लगता है।
30 से 80 साल की उम्र के बीच मानव शरीर 40 फीसदी मांसपेशियां खो देता है। जो मांसपेशियां बचती हैं वे भी कमजोर होती जाती है। शरीर में लचक कम होती चली जाती है।
जीवित प्राणियों में कोशिकाएं हर वक्त विभाजित होकर नई कोशिकाएं बनाती रहती हैं। यही वजह है कि बचपन से लेकर जवानी तक शरीर विकास करता है। लेकिन उम्र बढ़ने के साथ कोशिकाओं के विभाजन में गड़बड़ी होने लगती है। उनके भीतर का डीएनए क्षतिग्रस्त हो जाता है और नई कमजोर या बीमार कोशिकाएं पैदा होती हैं।
गड़बड़ डीएनए वाली कोशिकाएं कैंसर या दूसरी बीमारियां पैदा होती हैं। हमारे रोग प्रतिरोधी तंत्र को इसका पता नहीं चल पाता है, क्योंकि वो इस विकास को प्राकृतिक मानता है। धीरे धीरे यही गड़बड़ियां प्राणघातक साबित होती हैं।
आराम भरी जीवनशैली के चलते शरीर मांसपेशियां विकसित करने के बजाए जरूरत से ज्यादा वसा जमा करने लगता है। वसा ज्यादा होने पर शरीर को लगता है कि ऊर्जा का पर्याप्त भंडार मौजूद है, लिहाजा शरीर के भीतर हॉर्मोन संबंधी बदलाव आने लगते हैं और ये बीमारियों को जन्म देते हैं।
प्राकृतिक मौत शरीर के शट डाउन की प्रक्रिया है। मृत्यु से ठीक पहले कई अंग काम करना बंद कर देते हैं। आम तौर पर सांस पर इसका सबसे जल्दी असर पड़ता है। स्थिति जब नियंत्रण से बाहर होने लगती है तो दिमाग गड़बड़ाने लगता है।
सांस बंद होने के कुछ देर बाद दिल काम करना बंद कर देता है। धड़कन बंद होने के करीब चार से छह मिनट बाद मस्तिष्क ऑक्सीजन के लिए छटपटाने लगता है। ऑक्सीजन के अभाव में मस्तिष्क की कोशिकाएं मरने लगती हैं। चिकित्सा विज्ञान में इसे प्राकृतिक मृत्यु या "प्वाइंट ऑफ नो रिटर्न" कहते हैं।
मृत्यु के बाद हर घंटे शरीर का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस गिरने लगता है। शरीर में मौजूद खून कुछ जगहों पर जमने लगता है और बदन अकड़ जाता है।
त्वचा की कोशिकाएं मौत के 24 घंटे बाद तक जीवित रह सकती हैं। आंतों में मौजूद बैक्टीरिया भी जिंदा रहता है। ये शरीर को प्राकृतिक तत्वों में तोड़ने लगते हैं।
मौत को टालना संभव नहीं है। ये आनी ही है। लेकिन शरीर को स्वस्थ रखकर इसके खतरे को लंबे समय तक टाला जा सकता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक पर्याप्त पानी पीना, शारीरिक रूप से सक्रिय रहना, अच्छा खान पान और अच्छी नींद ये बेहद लाभदायक तरीके हैं।
कोई भी जीवित शरीर कोशीकाओं का एक विशाल सामुदायिक संगठन है, जिसमे हर कोशीकाओ का कार्य निर्धारित है। यह कार्य निर्धारण DNA करता है। हर कोशीका अपने आप मे एक जीवित इकाई है लेकिन उसे कुछ कार्य के लिये अन्य कोशीकाओं पर निर्भर रहना होता है, ये कुछ उसी तरह है जिस तरह समाज मे मानव कुछ बातो के लिये अन्य मानवो पर निर्भर होता है।
संक्षेप मे , शरीर स्वतंत्र रूप से जीवित कोशीकाओं का सामुदायिक संगठन है।
यह संगठन उस समय तक सुचारू रूप से कार्य करेगा जब तक इसे निर्माण करने वाली स्वतंत्र कोशीकाये सुचारू रूप से कार्य करते रहे। इन कोशीकाओं की मरम्मत और नविनीकरण, नयी कोशीकाओं का निर्माण चलते रहता है। लेकिन एक समय बाद यह नविनीकरण की प्रक्रिया धीमी हो जाती है, नविन कोशीकाये पहले जैसी मजबूत और सक्षम नही होती है, इसे ही वृद्धावस्था कहते है। जब शरीर के अंग(कोशीकाओ द्वारा विशिष्ट कार्य करने वाले संगठन) अपना कार्य करने मे सक्षम नही हो पाते है वे अन्य अंगो पर भी प्रभाव डालते है और अंगो के कार्य करना बंद करने के कारण उस पर निर्भर कोशीकायें मृत होने लगती है, अंतत: सारा शरीर मृत हो जाता है।
Nice information
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