हम कैसे बोलते है?
ओम प्रकाश पाटीदार
शाजापुर
बोलना एक विस्तृत प्रक्रिया हैं। वह संरचनाएँ जिनका उपयोग, चूसने, काटने, चबाने एवं निगलने के लिए किया जाता हैं, वही बोली के उत्पादन में उपयोगी लायी जाती हैं। गले में स्थित स्वर यंत्र (vocal cords), जो कि फेफडों में किसी बाहरी वस्तु के जाने को रोकने के लिए बनायी गयी हैं, उसका उपयोग आवाज निकालने में किया जाता हैं। फेफडों से बाहर निकाली गयी हवा का उपयोग कठ ध्वनि में कंपन पैदा करने के लिए जिससे कि आवाज पैदा हैं, किया जाता हैं। आवाज उसी तरह पैदा होती हैं, जैसे कि एक गुब्बारा आवाज पैदा करता हैं, जब उसका मुँह चौडा किया जाता हैं। इस प्रकार वे संरचनाएँ जो कि साँस लेने एवं खाने कि लिए किया जाता हैं। हालाकि, दिमाग इन सबका मुख्य नियंत्रक (master controller) हैं। बोलना एक साँस लेने की, अभिव्यक्त करने की एवं ध्वनि निकालने की नियंत्रित प्रक्रिया हैं।
बोलना उन आवाजों को कहते हैं जो कि मुँह से निकाली जाती हैं एवं शब्दों का स्वरूप लेती हैं। बोलने के लिए बहुत सी चीज़ों का क्रम में होना जरूरी हैं, जैसे कि :
- अगर दिमाग किसी से संवाद स्थापित करना चाहता हैं तो दिमाग में विचार /बात आनी चाहिए।
- दिमाग की बात को मुख तक भेजना जरूरी हैं।
- दिमाग का मुख को बोलना जरूरी हैं कि किन शब्दों को कहा जाना हैं और उन शब्दों के लिए किस प्रकार की आवाज निकाली जाए।
- उच्चारण एवं बोलने के पैटर्न को सम्मिलित किया जाना चाहिए।
- दिमाग का जबडों के पसलियों को उचित संदेश भेजना भी ज़रूरी हैं, उन पसलियों को जो कि आवाज पैदा करती हैं एवं जीभ, होठ एवं जबडों को नियंत्रित करती हैं।
- इन पसलियों में मजबूती एवं दिमाग द्वारा नियंत्रित होने की क्षमता होनी चाहिए।
- फेफडों में पर्याप्त हवा होनी चाहिए एवं छाती की पसलियाँ पर्याप्त रूप से मजबूत होनी चाहिए ताकि वोकल कॉर्ड (vocal cords) में कंपन पैदा कर सकें। हवा का अन्दर नहीं, बाहर जाना, उपयोगी संवाद के लिए जरूरी हैं।
- वोकल कॉड्र्स का अच्छी हालत में होना जरूरी हैं ताकि भाषण स्पष्ट हो एवं जोर से सुना जा सके।
- बोले गए शब्द हमारी श्रवण-शक्ति द्वारा परखे जाते हैं। यह बोले गए शब्दों के पुनर्विचार परिस्थिति के लिए नए शब्द सीखने में मदद करता हैं। अगर बोले गए शब्द ठीक से नहीं सुने जाते हैं,तो वाचा की पुनर्निमिती के समय बोलने में गडबडी होगी ।
- दूसरा व्यक्ति हमारें साथ संवाद इच्छुक होना चाहिए एवं सुनने के लिए राजी होना चाहिए।
अगर पर्याप्त रूप से उत्तेजना उपलब्ध हो तो लगभग सभी बच्चों के लिए, ये प्रक्रियाएँ प्राकृतिक रूप से होती हैं।
कुछ बच्चों के लिए यह प्राकृतिक क्रम टूट जाता हैं। एक बार अव्यवस्था की जड पता चल जाए तो, इन क्रमों को सीधे एवं इच्छा शक्ति द्वारा सुधारा जा सकता हैं।
जानकारी अच्छी लगे तो कमैंट्स में बताइए।
साथ ही लिखिए और किस विषय पर बात की जाए।
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