हम कान से कैसे सुनते है? कान को श्रवणों-संतुलन अंग क्यो कहते है?
ओम प्रकाश पाटीदार
शाजापुर (म.प्र.)
आसपास की जो आवाज हमारे कानों तक पहुँचती हैं, पहले वह कान के पर्दो में कंपन पैदा करती हैं। यह कपन तीन छोटी हड्डियों के द्वारा कानों के मध्य भाग (middle ear) मध्य कर्ण, (hammer) हॅंमर, (anvil) एनविल एवं स्टियरअपसे गुजर कर cochlea कॉकलियॉ तक पहुँचती हैं। इसका परिणाम कॉकलियॉ के द्रवों में गतिमय होता हैं। कॉकलियॉ के अन्दर संवेदनशील कोशिकाएँ (sensitive cells) होती हैं, जो कि इन गति को नोट कर लेती हैं और न्यूरल क्रियाओं (neural activity) की शुरुआत करती हैं जो कि ऑडिटरी नर्व के द्वारा दिमाग तक पहुँचायी जाती हैं। इस प्रकार से हम सुनते हैं।
मानव व अन्य स्तनधारी प्राणियों मे कर्ण या कान श्रवण प्रणाली का मुख्य अंग है। कशेरुकी प्राणियों मे मछली से लेकर मनुष्य तक कान जीववैज्ञानिक रूप से समान होता है सिर्फ उसकी संरचना गण और प्रजाति के अनुसार भिन्नता का प्रदर्शन करती है। कान वह अंग है जो ध्वनि का पता लगाता है, यह न केवल ध्वनि के लिए एक ग्राहक (रिसीवर) के रूप में कार्य करता है, अपितु कान शरीर के संतुलन और स्थिति के बोध में भी एक प्रमुख भूमिका निभाता है।
मानव व अन्य स्तनधारी प्राणियों मे कर्ण या कान श्रवण प्रणाली का मुख्य अंग है। कशेरुकी प्राणियों मे मछली से लेकर मनुष्य तक कान जीववैज्ञानिक रूप से समान होता है सिर्फ उसकी संरचना गण और प्रजाति के अनुसार भिन्नता का प्रदर्शन करती है। कान वह अंग है जो ध्वनि का पता लगाता है, यह न केवल ध्वनि के लिए एक ग्राहक (रिसीवर) के रूप में कार्य करता है, अपितु कान शरीर के संतुलन और स्थिति के बोध में भी एक प्रमुख भूमिका निभाता है।
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