विसरा (Viscera)क्या है?

विसरा (Viscera)क्या है?


                        Om Prakash Patidar
व्यक्ति की मौत के बाद रासायनिक परीक्षण के लिए मृतक के लीवर, किडनी,तिल्ली आंतें सहित अन्य अंग लिए जातें हैं, इसे विसरा कहते हैं। विसरा सैम्पल को कैमिकल में संरक्षित रखा जाता है। विसरा सैम्पल की जांच फॉरेंसिक साइंस लेबोरेट्री ((एफएसएल)) में की जाती है।

फोरेंसिक जांच क्या है?
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फॉरेंसिक जांच क्या है? 
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विसरा जांच क्या है और इसकी जरुरत कब पड़ती है? 
कानूनी जानकारों के मुताबिक, अगर मौत संदिग्ध परिस्थिति में हो और अंदेशा हो कि जहर से मौत हुई है तो विसरा की जांच की जाती है। दिल्ली सरकार के पूर्व डायरेक्टर ऑफ प्रॉसिक्युशन बी. एस. जून बताते हैं कि जब भी संदिग्ध परिस्थिति में मौत हो तो पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के साथ-साथ कई बार विसरा की जांच की जाती है।
अगर गाड़ी से कुचल कर किसी की मौत हो जाए या किसी की गोली मारकर हत्या कर दी जाए तो शव का पोस्टमॉर्टम होता है। ऐसे मामले में आमतौर पर विसरा जांच की जरुरत नहीं होती, लेकिन डेड बॉडी देखने के बाद अगर मौत संदिग्ध लगे यानी जहर देने की आशंका हो तो विसरा की जांच की जाती है।

डेड बॉडी अगर नीली पड़ी हुई हो, जीभ, आंख, नाखून आदि नीला पड़ा हुआ हो या मुंह से झाग आदि निकलने के निशान हों तो जहर की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। ऐसी स्थिति में पोस्टमॉर्टम के बाद डेड बॉडी से विसरा प्रिजर्व किया जाता है। विसरा प्रिजर्व करने के दौरान डेड बॉडी से लीवर, स्प्लीन और किडनी का पार्ट रखा जाता है। साथ ही शरीर में मौजूद फ्लूड आदि को प्रिजर्व किया जाता है।

पुलिस अधिकारी को लगता है कि विसरा प्रिजर्व करने की जरुरत है तो हॉस्पिटल के टॉक्सिकोलॉजिकल डिपार्टमेंट द्वारा विसरा प्रिजर्व किया जाता है और फिर उसे जांच के लिए लैब भेजा जाता है। आमतौर पर रिपोर्ट तैयार करने में तीन हफ्ते का वक्त लगता है, लेकिन लैब की कमी और बड़ी संख्या में सैंपल होने के कारण रिपोर्ट आने में छह-छह महीने लग जाते हैं।

हालांकि पुलिस इस दौरान छानबीन कर चार्जशीट दाखिल कर सकती है और चार्जशीट में विसरा रिपोर्ट आना बाकी लिख देती है, लेकिन विसरा रिपोर्ट आने के बाद ही चार्ज पर बहस होती है। विसरा रिपोर्ट आने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि मौत जहर से हुई है या नहीं। सीआरपीसी की धारा-293 के तहत एक्सपर्ट व्यू एडमिशिबल एविडेंस होता है यानी विसरा रिपोर्ट एक्सपर्ट व्यू होती है और यह मान्य साक्ष्य है।

बचाव पक्ष चाहे तो विसरा रिपोर्ट तैयार करने वाले एक्सपर्ट को कोर्ट में पेश होने के लिए अर्जी दे सकता है और कोर्ट द्वारा बुलाने के बाद उनके साथ जिरह कर सकता है।

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