हम रंगों को कैसे पहचान लेते है?
ओम प्रकाश पाटीदार
शाजापुर
जब रौशनी किसी वस्तु से टकराती है तो वह वस्तु रौशनी का कुछ हिस्सा अपने अंदर अवशोषित कर लेती है और बाकी की रौशनी को वापिस छोड़ देती है. कौन सी वेवलेंथ अवशोषित होती है और कौन से परावर्तित होती है यह पदार्थ के गुणधर्म या प्रकार पर निर्भर करता है. एक पका हुआ केला 570 से 580 नैनो मीटर की वेवलेंथ को परावर्तित करता है. यह पीले कलर की वेवलेंथ है.
जब आप एक पके हुए केले को देखते हैं, तब आपको परावर्तित प्रकाश की वेवलेंथ के अनुसार पके हुए केले का रंग पीला दिखायी देता है. प्रकाश की तरंगें केले के छिलके से परावर्तित होकर आपके आँख के पीछे वाले संवेदनशील रेटिना से टकराती हैं. आँख के इस भाग में छोटे शंकु होते हैं जो प्रकाश को जवाब(respond) देते हैं. यह शंकु एक तरह से फोटोरिसेप्टर होते हैं. हम में से अधिकांश लोगों की आँखों में 60 से 70 लाख शंकु होते हैं और उनमें से लगभग सभी शंकु 0.3 मिलीमीटर रेटिना पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं.
ऐसा नहीं है कि यह शंकु एक जैसे ही होते हैं. हमारी आँख के 64 प्रतिशत शंकु सिर्फ लाल रौशनी को जल्दी से पहचान लेते हैं, जबकि कुल शंकु का तीसरा हिस्सा हरी रौशनी को जल्दी पहचान लेता है और जबकि 2 प्रतिशत शंकु नीली रौशनी को जल्दी पहचान लेते हैं.
जब रौशनी पके हुए केले से टकरा कर वापिस आती है तब यह रौशनी हमारी आँख के शंकुओं से टकराती है, फिर शंकु इस रौशनी के टकराने से अपनी स्थिति को कुछ डिग्री तक बदल लेते हैं. जिसके परिणाम स्वरूप टकराने वाली रौशनी की जानकारी संसाधित हो जाती है यह जानकारी फिर दिमाग को पहुंचायी जाती है जिसको दिमाग प्रोसेस करता है और फिर बताता है कि यह पीले रंग की वस्तु है.
मानव की आँख में तीन प्रकार के शंकु होते हैं, जिससे मानव की देखने की शक्ति ज्यादातर स्तनपायीयों से बेहतर बन जाती है. लेकिन बहुत से जानवरों की रंगों को पहचानने की क्षमता मानव से कई गुना ज्यादा बेहतर होती है. कई पक्षियों और मछलियों की आँखों में 4 तरह के शंकु होते हैं, जो उनको पराबैंगनी प्रकाश को देखने में मदद करती हैं.
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