संकलन
ओम प्रकाश पाटीदार
शाजापुर
प्रोबायोटिक एक प्रकार के खाद्य पदार्थ होते हैं, जिसमें जीवित जीवाणु या सूक्ष्मजीव शामिल होते हैं। प्रोबायोटिक विधि रूषी वैज्ञानिक ऐली मेसनीकॉफ ने 20 वी शताब्दी में प्रस्तुत की थी। इसके लिए उन्हें बाद में नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रोबायोटिक वे जीवित सूक्ष्मजीव होते हैं जिसका सेवन करने पर मानव शरीर में जरूरी तत्व सुनिश्चित हो जाते हैं। ये शरीर में अच्छे जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि कर पाचन क्रिया को बेहतर बनाते हैं। इस विधि के अनुसार शरीर में दो तरह के जीवाणु होते हैं, एक मित्र और एक शत्रु। भोजन के द्वारा यदि मित्र जीवाणुओं को भीतर लें तो वे धीरे-धीरे शरीर में उपलब्ध शत्रु जीवाणुओं को नष्ट करने में कारगर सिद्ध होते हैं। मित्र जीवाणु प्राकृतिक स्रोतों और भोजन से प्राप्त होते हैं, जैसे दूध, दही और कुछ पौंधों से भी मिलते हैं। अभी तक मात्र तीन-चार ही ऐसे जीवाणु ज्ञात हैं जिनका प्रयोग प्रोबायोटिक रूप में किया जाता है।
इनमें लैक्टो बेसिलस बिफीडो, यीस्ट हैं। इन्हें एकत्र करके प्रोबायोटिक खाद्य पदार्थ में डाला जाता है। वैज्ञानिकों के अब तक के अध्ययन के अनुसार इस तरह से शरीर में पहुंचने वाले जीवाणु किसी प्रकार की हानि भी नहीं पहुंचाते हैं। शोधों में रोगों के रोकथाम में इनकी भूमिका सकारात्मक पाई गई है तथा इनके कोई दुष्प्रभाव भी ज्ञात नहीं हैं।
प्रोबियोटिक के लाभ
प्रोबायोटिक में लैक्टिक अम्ल जीवाणु होते हैं जो दूध में उपस्थित लैक्टोज शक्कर को लैक्टिक अम्ल में परिवर्तित देते है। प्रोबायोटिक खाद्यों से कोलोन कैंसर से बचाव भी होता है। कुछ शोध से ज्ञात हुआ है कि प्रोबायोटिक उत्पादों का प्रयोग करने वाले लोगों में कोलोन कैंसर होने की संभावना बेहद कम होती है। इससे कोलेस्ट्रॉल पर भी नियंत्रण होता है। दूध और फॉरमेंटेड खाद्य उत्पादों के प्रयोग से रक्तचाप भी नियंत्रण में रहता है। यह मानव शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र के लिए भी लाभदायक होता है, जिससे शरीर रोगाणुओं से बचाव करने में सक्षम हो पाता है। लैक्टोबैसिलस एवं बाइफीडोबैक्ट्रियम खाद्य और पूरक से डायरिया के रोकथाम में भी मदद मिलती है। प्रोबायोटिक के सेवन से वयस्कों में होने वाले संक्रामक बॉवल रोग और हाइपर सेंसिटिविटी प्रतिक्रिया पर भी नियंत्रण रहता है। इनके उपयोग से सूक्ष्म खनिजों के अवशोषण में होने वाली समस्याएं भी समाप्त हो सकती हैं।
हमारा पाचनतंत्र एक बड़ी संख्या में सूक्ष्मजीवों से भरा होता है, जिनसे भोजन को पचाने में मदद मिलती है। इन सहयोगी जीवाणुओं के संग ही पाचन तंत्र में कई ऐसे जीवाणु भी होते हैं जिनसे रोग आदि फैलने की आशंका रहती है। प्रोबायोटिक जीवाणुओं से पाचन तंत्र में फ्लोरा व्यवस्थित होने के साथ हानिकारक जीवाणुओं के प्रसार पर नियंत्रण भी संभव होता है। इस कारण से ही प्रायः लंबे समय तक एंटीबायोटिक दवा देने के बाद चिकित्सक रोगी को प्रोबायोटिक लेने का परामर्श देते हैं। लंबी बीमारी के मामलों में सहयोगी जीवाणुओं का क्षय हो जाता है, जिसका सीधा असर पाचन तंत्र पर पड़ता है। इसे जैवसुरक्षित खाद्य (बायोप्रोटेक्टिव फूड) भी कहते हैं।
इसके अलावा प्रोबायोटिक संक्रमण से होने वाले रोगों पर नियंत्रण में भी सहायक होता है। यह शरीर में लैक्टोज़ की मात्रा के कारण की वजह से ही कई बार बच्चे और वयस्क दूध पचा नहीं पाते हैं, इसे लेक्टोज़ इनटॉलेरेंस कहते हैं। दूध का सेवन बच्चों के लिए परमावश्यक है क्योंकि यह कैल्शियम का प्रमुख स्रोत है। इसमें प्रोबायोटिक जीवाणु सहायक रहते हैं। प्रोबियोटिक हमारे शरीर मे लेक्टोज़ इनटॉलेरेंस को नियंत्रित करते है।।
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