BT कॉटन क्या है?
Om Prakash Patidar
अंग्रेजी भाषा के दो अक्षरों का शब्द बीटी (BT) अपने पूर्ण रूप में बेसिलस थ्यूरेनजिनेसिस नाम से जाना जाता है। यह एक बीजाणु बनाने वाला बेक्टीरिया है जो प्रोटीन के पारदर्शाी कण (क्रिस्टल) जिसे क्राई कहते हैं बनाता है। ये क्राई प्रोटीन कीटों की अनेक जातियों के लिए विषैले रहते हैं। इसका पता सर्वप्रथम सन् 1901 में जापानी जीवशास्त्री सीजिटाने इरीवाटारी ने लगाया। जब उन्होंने रेशम की इल्ली के अचानक मरने का कारण इस बेक्टीरिया को पाया। सन् 1911 में जर्मन विज्ञानी अर्नस्ट बरलाइनर ने दोबारा इस बेक्टीरिया से मेडिटेरियन फ्लोर मॉथ की इल्लियों के मरने का कारण पाया। उन्होंने इस बैक्टीरिया का नाम जर्मन के एक शहर थ्यूरिनजिया के नाम पर बेसिलस थ्यूरेनजिनेसिस रखा। इसिवटारी द्वारा 1901 में इसे दिया गया नाम वेसिलस सोटो बाद में नियम अनुसार मान्य नहीं किया गया। विज्ञानी बरलाईनर ने 1915 में बी.टी. में क्रिस्टल होने की बात कही थी परन्तु इसकी पुष्टि बहुत बाद में हुई। यूरोपीय किसानों ने बीटी कीटनाशक का उपयोग सन् 1920 में आरम्भ कर दिया था। फ्रांस में 1938 में इसका व्यवसायिक उत्पाद स्पोराईन के नाम से बाजार में आया। जिसका उपयोग मुख्य रूप से फ्लोर मॉथ की इल्लियों को मारने के लिए किया गया। इसके बाद बीटी के कई उत्पाद कीट नियंत्रण के लिए बाजार में आया जिनका उपयोग तितली व पतंगों (लेपिडोपटेरा) की इल्ली के नियंत्रण के लिए ही किया जाता था। इसी समय बाजार में नये कीटनाशक जो कीट नियंत्रण के लिए बहुत कारगर थे, के कारण बी टी का उपयोग सीमित रह गया।
सन् 1956 में विज्ञानी हानाय, फिट्ज जेम्स तथा एंगस ने पता लगाया कि लेेपिडोपटेरा की इल्ली को बीटी में प्रभावित होने के लिए यह आवश्यक है कि कीट उसे खाये।
बीटी के विषैला पदार्थ कीट की पाचन नली में अधिक क्षारीय (पी.एच) दशा में घुल कर सक्रिय हो जाता है, फिर विषैला पदार्थ पाचन नली की कोशिकाओं में आक्रमण कर उसके आवरण में छेद कर देता है। इससे बीटी के बीजाणु छलक कर पाचन नली के बाहर आ जाते हैं और रक्त गुहा में अंकुरित होकर इल्ली को छलनी -छलनी कर देते हैं जिससे इल्ली नष्ट हो जाती है। भले ही कीट तुरन्त नहीं मरता पर ग्रसित इल्ली तुरन्त खाना बन्द कर देती है इसके कारण फसल को कोई हानि नहीं पहुंचती है। बीटी के बीजाणु दूसरे कीटों में नहीं फैलते हैं। यह वातावरण तथा स्तनधारी जानवरों व मनुष्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालते।
बीटी कपास अनुवांशकी परिवर्तित कपास की फसल है जिसमें बेसिलस थ्यूरेनजिनेसिस बैक्टीरिया के एक या दो जीन फसल के बीज में अनुवांशकीय अभियांत्रिकीय तकनीक से बीज में डाल दिये जाते हैं, जो पौधे के अन्दर क्रिस्टल प्रोटीन उत्पन्न करते हैं जिससे विषैला पदार्थ उत्पन्न होकर कीट को नष्ट कर देता है। बीटी कपास सर्वप्रथम मॉनसेंटो समूह द्वारा बोलगार्ड कपास के नाम से 1996 में अमेरिका में प्रचलन में लाई गयी। इससे क्राई 1एसी जीन का उपयोग किया गया था। जिसका उद्देश्य कपास में तम्बाकू की फली की इल्ली गुलाबी इल्ली के प्रकोप से रोकना था। इसके बाद बीटी कपास की नये संस्करण 2003 तथा 2004 में निकाले गये जो बालवर्म सहित अन्य पत्तियों की इल्लियों के लिए कारगर थे। आज भारत में क्राई 1 एसी, क्राई 2 एसी तथा क्राई 1 सी जीन का उपयोग कपास की व्यापारिक खेती के बीज उत्पन्न करने के लिए किया जा सकता है। भारत में सन् 2012 तक 1128 बीटी कपास की संकर जातियां, 40 बीज कम्पनियों द्वारा विकसित की गई थी।
देश की पहली आनुवंशिकीय परिवर्तित जीन वाली BT (बैसीलस तुरीयरनजीएनसिस) कपास की तीन प्रजातियों के व्यावसायिक उपयोग की अनुमति भारत सरकार ने 26 मार्च, 2002 को प्रदान कर दी। केन्द्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय की जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी द्वारा मंजूर की गई बीटी कपास की तीन किस्मों में मैक-12, मैक-162 और मैक-184 शामिल हैं। इन किस्मों को बहुराष्ट्रीय कम्पनी मनसांटो की भारतीय अनुषंगी कम्पनी महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड कम्पनी (म्हाइको) ने विकसित किया है तथा उसे ही इनके बीजों के व्यावसायिक उपयोग की अनुमति तीन वर्ष को लिये कुछेक शर्तों के साथ प्रदान की गयी है। इन शतों में निम्नलिखित शामिल हैं-
- बीज अधिनियम की शर्तों को पूरा करना।
- बीज पर लेबल लगाकर यह सूचित करना कि यह आनुवांशिकीय परिवर्तित बीज है।
- बीजों के वितरकों एवं बिक्री के आँकड़ों को जीएएसी को उपलब्ध कराना।
- बोये गये क्षेत्रफल की जानकारी उपलब्ध कराना।
- विपणन कपनी म्हाइको द्वारा पर्यावरण और किसानों की हित रक्षा के अभिप्राय से वार्षिक आधार पर जांच करना तथा लगातार तीन वर्ष तक यह रिपोर्ट देना कि इन किस्मों में किसी प्रकार की बीमारी के जीवाणु तो पैदा नहीं हो रहे हैं।
- बीटी कपास वाले प्रत्येक खेत की बाह्य परिधि पर रिफ्यूज यानी आश्रय या शरण नामक एक ऐसी भू-पट्टी बनाई जाए, जिसमें उसी प्रजाति की गैर-बीटी कपास यानी परंपरागत कपास उगाई जाए। यह भू-पट्टी कुल बुआई क्षेत्र का कम से कम 20 प्रतिशत हो या इसमें गैर-बीटी कपास की कम से कम पांच कतारें बनाई जा सक। यह शर्त हवा के माध्यम से दूसरी फसलों या कपास की फसल में ही परागन की निगरानी से संबंधित है।
उपरोक्त शर्तों के पालन से कई लाभ होंगे जैसे- कपास का उत्पादन व्यवस्थित और कई गुना हो सकेगा, उसे अमेरिकी बोलवॉर्म (सुंडी को रोगी वाला कीड़ा) से बचाया जा सकेगा, उत्तम और अधिक कपास से किसानों की आय बढ़ेगी तथा आस-पास के प्राकृतिक पेड़-पौधों को हानि नहीं पहुंचेगी। ज्ञातव्य है कि बीटी कपास में भूमिगत बैक्टीरिया बैसिलस थूरिनजिएनसिस का क्राई नामक जीन डाल दिया जाता है, जिससे पौधा स्वयं ही कीटनाशक प्रभाव पैदा करने लगता है और कीटनाशक दवा छिड़कने की आवश्यकता नहीं पड़ती। बीटों के कुछ विभेद पादप और पशुओं पर निर्भर करने वाले कृमियों, घोघों, प्रोटोजोआ और तिलचट्टों को भी नष्ट कर देता है। इसी विशिष्ट लक्षण के कारण यह बीटी नामक बैक्टीरिया कृषि के क्षेत्र में उपयोगी हैं। उल्लेखनीय है कि म्हाइको ने बीटी कपास की चार किस्मों के लिये आवेदन किया था लेकिन किस्म मैक-915 के संबंध में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् से परीक्षण परिणाम उपलब्ध न होने के कारण जीईएसी ने इसके व्यावसायिक उपयोग की अनुमति प्रदान नहीं की है।
BT कॉटन के लाभ-
छिड़काव वाले अन्य परंपरागत संश्लेषित कीटनाशकों का उपयोग कर उगाये गये कपास की तुलना में बीटी कपास के लाभ निम्नलिखित हैं-
- किसानों, खेतों में काम करने वाले मजदूरों और अन्य पेड़-पौधों पर कीटनाशकों का कोई बुरा असर नहीं पड़ता है।
- कीटनाशकों के उपयोग में कमी से अधिक सुरक्षित पर्यावरण।
- बारिश में बह जाने या कीटनाशक के खराब हो जाने से फिर से छिड़काव की आवश्यकता नहीं पड़ती।
- कीटनाशकों के उपयोग से होने वाली दुर्घटनाओं और कानूनी विवाद कम हो जाते हैं।
- पौधों के सभी हिस्सों में क्रिस्टल प्रोटीन बनाता है तथा यह क्रिस्टल प्रोटीन पूरे मौसम अपना असर दिखाता है।
- लक्षित महामारी से फसल को खराब होने का खतरा कम हो जाता है।
- बीटी कपास का उपयोग कीट नियंत्रण की अन्य विधियों को साथ किया जा सकता है।
BT कॉटन से खतरे-
- कीड़े-मकोड़े में प्रतिरोध क्षमता उत्पन्न होने वाली बीटी कपास की उपयोगिता कम हो सकती है।
- रासायनिक छिड़काव के जरिये अन्य कीड़े-मकोड़ों और महामारियों के नियंत्रण की आवश्यकता के कारण इन कीड़ों को प्राकृतिक रूप से नुकसान पहुंचाना हानिकारक हो सकता है।
- बीटी कपास के उत्पादन और उपयोग की लागत बहुत अधिक हो सकती है।
- कीटनाशकों के छिड़काव वाले कपास के खेती के आसपास बीटी कपास उगाने से कीड़े-मकोड़े बीटी कपास के खेती में आ सकते हैं जिससे उत्पादन पर असर पड़ सकता है।
- प्रतिरोध क्षमता वाली फसल के लिये कोई नये किस्म का हानिकारक कीट विकसित हो सकता है।
- बीटी कपास का जीन कपास के निकट संबंध वाली किसी फसल या अन्य फसल प्रजाति में पहुंच सकता है।