किसी मनुष्य का रंग काला और किसी का रंग गौरा क्यो होता है?

                हमारा रंग काला या गौरा क्यो होता है?
Om Prakash Patidar
हमें काले हैइं तो क्या हुआ दिलवाले हैइं -२
हमें तेरे तेरे तेरे चाहने वाले है
हम काले हैं तो ...
गुमनाम फ़िल्म का ये गाना जिसे मोहम्मफ रफी ने गया,
हम सभी ने सुना होगा।।
आज भी हमारे देश सहित पूरे विश्व मे काले रंग के व्यक्तियों को सामाजिक रूप से इतना सम्मान नही मिल पाता है , जितना कि वो इसके हकदार होते है।
जबकि आज आनुवांशिकी विज्ञान ने इतनी प्रगति कर ली है कि मानव के जीनोम का नक्शा तैयार हो चुका है जिससे विभिन्न नस्लों के बारे में जो भी मिथक थे वो दूर हो गए हैं. अब यह साबित हो चुका है कि किसी एक व्यक्ति का डीएनए 99.9 प्रतिशत दूसरे व्यक्ति जैसा ही होता है, चाहे वे दोनों अलग-अलग जाति के ही क्यों न हों. बाक़ी 0.1 प्रतिशत में जो विविधता है वही एक व्यक्ति को दूसरे से अलग करती है. इस तथ्य के आधार पर जीव-विज्ञानी कहते हैं कि आज का मानव अफ़्रीका में 2 लाख साल पहले रहने वाले होमो सेपियन्स का वंशज है. यानी हम सबके पूर्वज अफ़्रीकी थे. अफ़्रीका बहुत गर्म प्रदेश है. सूर्य की पराबैंगनी किरणों से बचने में काला रंग बड़ी मदद करता है. त्वचा का रंग मैलेनिन नामक एक रसायन से निर्धारित होता है. मैलेनिन की मात्रा के अधिक होने से त्वचा का रंग काला हो जाता है. काला रंग फ़ोलेट नामक विटामिन बी को भी नष्ट होने से बचाता है. काली त्वचा सूर्य की तेज़ किरणों को भीतर जाने से रोकती है जिससे विटामिन डी3 का उत्पादन प्रभावित होता है. लेकिन जब मानव ठंडे प्रदेशों की ओर बढ़ा तो विटामिन डी3 की कमी से उसकी त्वचा का रंग हल्का पड़ने लगा. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि तेरह हज़ार साल पहले तक यूरोपीय लोगों का रंग गहरा हुआ करता था वो धीरे-धीरे गोरे हुए।

मनुष्यों, प्राणियों व वनस्पति हि विभिन्न प्रजातियों में अंतर उन्के समय के साथ परिवर्तन होते निवास के कारण उत्पन्न हुआ है। वे स्थानीय वातावरण के अनुकूल रहन्-सहन एवं भोजन आदि के कारण परिवर्तित होते गये। प्रमुख विभिन्ताओं में शारीरिक संरचना, बाल, त्वचा का रंग एवं चेहरे का आकार प्रमुख हैं।
मानव जाति का वितरण समस्त प्रथ्वी पर अन्य कशेरुकी प्राणी कि तुल्ना में सर्वधिक विस्तृत है। अंटा‍र्कटिका के आंतरिक भूमि के अधिकान्श भू-भाग पर मानव जाति क विस्तार हो चुका था। वह भी उस समय जबकि उन्नत यातायात के साधन उपलब्ध थे। समस्त जीवित प्राणियों ने भोगोलिक वातावरण के अनुरूप उन्कि शारीरिक संरचना को धाल लिय था। किसी भी व्यक्ति कि त्वचा का रंग उसके वातावरण के अनुकूलन को प्रदर्शित करता है। गहरी भूरी अथवा काली त्वचा उन जगह के लिये उपयुक्त है, जहाँ सूर्य के किरणों कि तीव्रता अधिक होती है, क्योंकि इस तरह कि त्वचा हानिकरक परा बैंगनी किरणों द्वारा कैन्सर के खतरे को रोकती है। कम चमकीले क्षेत्रों में यह उपाय आवश्य्क नहीं है, बल्कि ऐसे स्थानों पर गहरी रंगत वाली त्वचा में विटामिन डी का निर्माण अवरूध हो सकता है।
इसलिय प्रारंभिक मनुष्यों के अफ्रीका से उत्तरी क्षेत्रों कि और गमन के साथ ही उन्के त्वचीय रंजक समाप्त होते गये एवं वे पीत वर्ण होते गये। ऊष्ण कटिबंधीय देशों में प्रकश कि अधिक्ता के पश्चात भी गहरी रंगत वाली त्वचा में विटामिन डी का निर्माण होत है।
आधूनिक परिवेश में यातायात के उन्नत साधन होने के कारण जनसामान्य एक स्थान से दूसरे स्थान तक गमन करते रहते हैं एवं विभिन्न जातियों में विवाह के कारण यह विभेद अस्पष्ट होते जा रहे हैं मनुष्यों ने सन्सार को विभिन्न देशों कि सीमाओं में विभाजित किया और प्रक्रति में संसार को क्षेत्रों के गर्म, ठंडे, नमी युक्त अथवा शुष्क होने एव उस क्षेत्र कि वनस्पति पर निर्भर करता है।

यह प्राक्रतिक् क्षेत्र स्थ्ल प्रथ्वी के वास स्थल हैं, जिनमें टुंड्रा, वन्, मैदान एवं रेगिस्तान सम्मिलित हैं। प्रत्येक वास स्थल उसकी जैव विविधता एवं मौसम के कारण अन्य वास स्थल से भिन्न हैं। वह ग‍र्म और शुष्क क्षेत्र के रूप में रेगिस्तान हो सकता है, जहाँ वनस्पति कि कमी होती है अथवा गर्म एवं अत्याधिक वर्षा वाला हो सकता है, जिसमें विविध प्रकार कि वनस्पति प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रहती है। जैसा कि ऊष्ण कटिबंधिय वर्षा, वन, भूमि पर उपस्थित वास स्थानों के अतिरिक्त स्वच्छ जलीय एवं समुद्रीय वास स्थल जैविक विविधता के साथ उपस्थित है।

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