रासायनिक हथियार क्या हैं?
Om Prakash Patidar
रसायनिक हथियार का मतलब ऐसे जहरीले रसायनों से है जिनकी रसायनिक क्रियाओं की वजह से इंसान या तो गंभीर पूर से जख्मी हो जाता है या फिर उसकी मौत हो जाती है। अपनी मारक क्षमता के कारण ये जनसंहार करने वाले शस्त्रों की श्रेणी में आते हैं।
प्रमुख रासायनिक हथियार:
सारिन
गेरहार्ड श्रेडर समेत कुछ जर्मन वैज्ञानिकों ने 1938 में सारिन तैयार किया था. इसे हानिकारक कीटों को मारने के लिए कीटनाशक के रूप में तैयार किया गया था. आज सारिन को सबसे खतरनाक तंत्रिका जहर (नर्व गैस) माना जाता है. रासायनिक रूप से यह दूसरे तंत्रिका जहर ताबुन और वीएक्स जैसा ही है. तरल रूप में यह गंधहीन और रंगहीन होता है. वाष्पशील होने के कारण यह आसानी से गैस में बदल जाता है. यह बेहद अस्थिर होता है इस वजह से यह जल्दी ही नुकसानरहित यौगिकों में बदल जाता है.
सारिन की एक छोटी सी मात्रा भी घातक हो सकती है. गैस मास्क और पूरे शरीर को ढंकने वाली पोशाक इससे बचा सकती है. यह आंखों और त्वचा के रास्ते भी शरीर में प्रवेश कर सकता है. यह तंत्रिकाओं के आवेग लगातार भेजता रहता है जिसके कारण नाक और आंख से पानी गिरने लगता है, मांसपेशियों में ऐंठन आ जाती है और इन सबके बाद आखिर में मौत हो जाती है.
ताबुन
श्रेडर ने ही 1936 में ताबुन की खोज की थी. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बमों में रासायनिक हथियार भर दिए जाते थे. हालांकि इन बमों का इस्तेमाल कभी नहीं हुआ. तरल रूप में ताबुन फल जैसी खुशबू देता है, कुछ कुछ कड़वे बादाम की तरह. गैस त्वचा के संपर्क में आने पर या फिर सूंघने पर नाक के जरिए शरीर में चली जाती है. इसका असर और लक्षण सारिन जैसा ही है.
वीएक्स(VX)-
सारिन की तरह वीएक्स को भी कीटनाशक के रूप में ही तैयार किया गया था. ब्रिटिश केमिस्टों ने इसे तैयार किया और बहुत जल्द ही उन्हें पता चल गया कि खेती में इस्तेमाल करने के लिहाज से यह ज्यादा खतरनाक है. इसके घातक असर ने हालांकि उन्हें भविष्य के रासायनिक हथियार की आशंका से जरूर बाखबर कर दिया.
वीएक्स का असर और लक्षण तो सारिन और ताबुन की तरह ही होता है लेकिन यह उनकी तुलना में ज्यादा स्थायी और कईगुना जहरीला होता है. स्थिरता के कारण वीएक्स त्वचा, कपड़े और दूसरी चीजों से चिपक जाता है और लंबे समय तक वहां बना रहता है. इसकी खुद की आयु भी लंबी होती है यह कुछ कुछ तैलीय होता है.
मस्टर्ड गैस
पहले विश्व युद्ध में मस्टर्ड गैस का पहली बार इस्तेमाल हुआ था. हालांकि युद्ध से बहुत पहले ही इसके साथ प्रयोग किए गए थे. जर्मन केमिस्ट विलहेम लोमेल और विलहेम स्टाइंकोपिन ने 1916 में हथियार के रूप में इसके इस्तेमाल की सलाह दी थी. रासायनिक हथियार के रूप में इस्तेमाल होने वाले दूसरे गैसों की तरह इसे महाविनाश का हथियार आधिकारिक रूप से नहीं माना गया है.
मस्टर्ड गैस कपड़ों को छेद कर त्वचा में समा जाती है. इसके संपर्क में आने के 24 घंटे बाद ही असर दिखना शुरू होता है. गैस के असर से पहले त्वचा लाल हो जाती है. फिर फफोले निकलते हैं. इसके बाद वहां की त्वचा छिलके की तरह उतर जाती है. नाक के रास्ते से अंदर गई गैस जानलेवा हो सकती है क्योंकि यह फेफड़ों के उत्तकों को नुकसान पहुंचाती है.
फॉसजेन गैस –
फॉसजेन गैस आम तौर पर प्लास्टिक और कीटनाशक बनाने के लिए इस्तेमाल की जाती है लेकिन ये अब तक के सबसे खतरनाक रासायनिक हथियारों में से एक भी है। ये एक रंगहीन गैस होती है जिसके संपर्क में आने से व्यक्ति की सांस फूलने लगती है, दम घुटने लगता है, कफ बनता है और नाक बहना शुरू हो जाती है।
क्लोरीन –
यूँ तो आम तौर पर क्लोरीन सफाई, कीटनाशक बनाने, रबर बनाने, साफ करने आदि के लिए इस्तेमाल होती है लेकिन अगर इसको ज्यादा मात्रा में काम में लिया जाये तो ये जानलेवा भी हो जाती है। इस गैस का सीध असर फेफड़ों पर पड़ता है और इससे बहुत ही कम समय में व्यक्ति को मौत हो जाती है।
रासायनिक हथियारों के उपयोग को रोकने के लिए संधि:
Organisation for the Prohibition of Chemical Weapons-
1993 रासायनिक हथियार अभिसमय (Chemical Weapons Convention) अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार नवीनतम हथियार नियंत्रण समझौता है। इसका पूरा नाम 'रासायनिक हथियारों के उपयोग, विकास, उत्पादन, भंडारण के निषेध और विनाश' सम्मेलन है।
यही कारण है कि समझौते के उत्पादन, भंडारण और रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल को निषेध किया गया है। यह रासायनिक हथियार निषेध संगठन (ओपीसीडब्ल्यू), जो हेग में स्थित एक स्वतंत्र संगठन है, द्वारा किया जाता है।