विश्व मलेरिया दिवस 25 अप्रैल को मनाया जाता है।
Om Prakash Patidar
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार प्रत्येक वर्ष विश्व में लगभग 30 करोड़ लोग मलेरिया के शिकार होते हैं और करीब 20 लाखलोग इससे मर जाते हैं।
मलेरिया है क्या, शुरू कहाँ से होता तथा इसके आक्रमण के दायरे कहाँ तक है?
मादा एनोफिलीज मच्छर के काटने से प्लाज्मोडियम फेल्सीपेरम, वाईवेक्स, ओवाले इत्यादि परजीवी द्वारा मानव शरीर में मलेरिया का आक्रमण होता है। नर एनाफिलीज मानव रक्त का भूखा नहीं, वह पौधों से अपना भोजन ले लेता है। साधारणत: मलेरिया एक मौसमी बीमारी मानी जाती है। किन्तु अब तो वह साल भर आता-जाता दिखाई दे रही है, अर्थात मादा एनाफिलीज का हमला साल भर हो रहा है।
भूमिका
मलेरिया एक बीमारी है जो जाड़े एवं बुखार के साथ होती है। मलेरिया बिना इलाज के जानलेवा हो सकता है। मच्छर के काटने से जहाँ से हमारी नींद खराब होती है वहीं यह पीड़ायुक्त भी होती है। यह एक निरर्थक मात्र ही नहीं है, बल्कि मच्छर/मलेरिया, फैलेरिया व दिमागी बुखार जैसे रोग फ़ैलाने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मलेरिया काफी पुराना रोग है। अनेक वैज्ञानिकों ने रोग फ़ैलाने में मच्छर की भूमिका तलाशने में काफी समय लगाया।
मलेरिया होने का कारण प्लाजमोडियम है। फैल्सीपेरम मेलिया एक गंभीर रोग है। फैल्सीपेरम प्रजाति के द्वारा होने वाले मलेरिया से ज्यादा मौते होती पायी है। नर मच्छर मानव को नहीं काटता है और अपना भोजन पौधों से प्राप्त करता है।
मलेरिया के लक्षण
कोई भी बुखार मलेरिया हो सकता है। मलेरिया होने पर ज्यादा देर तक बुखार आता है। यह बुखार तीन-चार घंटे तक आता है। मलेरिया में सिर दर्द और उल्टी भी होती है। बुखार उतरने के बाद रोगी कमजोर महसूस करता है।
एक विशिष्ट प्रकार का मलेरिया के लक्षण निम्न तीन तरह की स्थितियाँ को प्रकट करता है :-
1. ठंड की स्थिति–मलेरिया अचानक तेज बुखार, जाड़ा देकर कंपकपी के साथ आता है और रोगी को लगता है कि उसे तुरंत कंबल या रजाइयों से ढंका जाए। यह स्थिति 15 मिनट से लेकर एक घंटे तक हो सकती है।
2. गर्मी की स्थिति- इसमें शरीर का ताप 100 डिग्री फॉरनहाइट (40 डिग्री सेंटीग्रेट) से ज्यादा तक बढ़ सकता है। रोगी को अपने शरीर से गर्मी एवं जलन महसूस होती है। इससे अचानक सिर दर्द हो सकता है।
3. पसीने की स्थिति – बुखार तेज पसीने के छूटने के साथ घटने लगता है। यह स्थिति दो से चार घंटे तक रह सकती है। बुखार प्राय: कुछ निश्चित अवधि के बाद आता हैं। जब भी आप देखें कि किसी व्यक्ति को बुखार ठंड एवं कंपकपी के साथ आया है तो यह आशंका हो सकती है कि उसे मलेरिया हो सकता है। यदि वह व्यक्ति बताता है कि यह क्रिया हर तीसरे या ऐसे ही किसी क्रम से होती है तो यदि संभावाना होती है कि व्यक्ति मलेरिया की प्रबल स्थिति में है।
मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम
देश में राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम 1953 से ही शुरू किया गया। लेकिन इसका प्रभाव आप के सामने है। विश्व के वैज्ञानिकों ने मान लिया है कि मलेरिया उन्मूलन शायद संभव नहीं है अत: इसके नियंत्रण पर ही ध्यान केन्द्रित करना अपेक्षित है, जैसे-
रात में सोते समय मच्छरदानी अवश्य लगाएँ।शाम के समय शरीर में नीम या करंज का तेल लगाने से मच्छर नहीं काटते।जंगल या काम पर जाते समय बदल में नीम करंज का तेल जरूर लगाएँ।घर में, शाम के समय नीम या करंज का खल्ली या पत्तों का धुआं करें।नीम तले को किरासन तेल में मिलकर ढिबरी (दीया) में जलाने से मच्छर भागते हैं।
मच्छरों को बढ़ने से कैसे रोका जाए?
घर के आस-पास के गड्ढों को भर दें। हैंडपम्प एवं कुएँ के आस-पास एवं नालियों में पानी जमा न होने दें।घर के आस-पास झाड़ियों में मच्छर छिपते हैं। इन झाड़ियों को काटकर साफ कर दें।टूटे- फूटे बर्त्तन, घड़े, पुराने टायर आदि में पानी जमा न होने दें।नीम के तेल को पानी में मिलकर स्प्रे करने से मच्छर मरते हैं।
मलेरिया की रोकथाम
आजकल यह बुखार उत्तर भारत में महामारी के रूप में फैलता जा रहा है अत: इस बीमारी की रोकथाम के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाएं जा सकते हैं:-
डी.डी.टी या किसी अन्य कीटनाशक के छिड़काव के बाद घर में दीवारों को सफेदी या रंग या लिपाई – पुताई न कराएँ।कुएँ के पानी में 250- 400 ग्राम क्लोरिन मिलाएँ।खाली गड्ढों में बबूल के पेड़ लगाएं।नालियाँ साफ रखे जिससे पानी एक जगह न ठहरे।बरसाती पानी किसी, खाली, गड्ढे, टिन या टायर आदि में न भरने दें।पानी के बर्त्तन या टंकी आदि को हर हफ्ते में धोते एवं बदलते रहना चाहिए, क्योंकि अंडे से लार्वा बनने में 6 या 7 दिन लगते हैं।भरे हुए पानी के बांधों या तालाबों में गंबूजिया नामक मछलियाँ पाली जा सकती हैं। क्योंकि ये मच्छरों के अंडों एवं लार्वा को खाती हैं।पानी को जमीन में न भरने दें।मच्छर प्राय: दरवाजों की पीछे, झाड़ियों के नीचे या गंदे एवं अंधेरे में पलते हैं। अत: इन जगहों को साफ सुथरा रखना चाहिए।मलेरिया की दवा की पूरी खुराक लेनी चाहिए, नहीं तो कुछ समय बाद ये पुन: दोबारा हो सकता है।पानी के भरे गड्ढों में मिट्टी का तेल या जला हुआ काला तेल डालकर मच्छर खत्म किए जा सकते हैं।घर में पास तुलसी का पेड़ लगाएँ। नीम की पत्तियाँ जलाकर घर में धुआं करें। सोते समय मछरदानी लगाएँ और जरूरत पड़ने पर नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र जाएँ।कछुआ छाप अगरबत्ती जलाने जैसे उपाय किये जा सकते हैं।
मलेरिया कैसे फैलता है?
जब मलेरिया मच्छर मलेरिया रोगी को काटकर स्वस्थ आदमी को काटता है तो स्वस्थ आदमी में मलेरिया का रोगी हो जाता है। उसे करीब दस दिन बाद बुखार आता है। इस प्रकार मलेरिया एक आदमी से दूसरे आदमी, दूसरे से तीसरे और पूरे गाँव-समाज में फ़ैल जाता है।
मच्छर कहाँ-कहाँ होते हैं?
मच्छर जमे हुए साफ पानी में पैदा होता है। घर के आँगन, आस- पास के गड्ढों, मिट्टी के बर्त्तन, बेकार पड़े हुए टायर,धान के खेत, चापाकल के पास के गड्ढों एवं पुराने कुएँ तथा तालाब आदि में पैदा होते हैं। मलेरिया के ये मच्छर नालियाँ, खदानों एवं कारखाना बनाते समय छोड़े गये गड्ढे आदि में भी पैदा होते हैं। मच्छर घर के अंदर गोहार आदि में छुपकर जिंदा रहते हैं।गोहर (पशुघर) को साफ़-सुथरा एवं गड्ढों को मिट्टी से भर दें।घर के आंगन में तथा बाहर, तालाब एवं बड़े गड्ढों के आस-पास तुलसी का पौधा लगाने से मच्छर पनपते (बढ़ते) नहीं है।कुछ मछलियाँ मच्छरों के अंडों को खाती हैं, ये जिला मलेरिया नियंत्रण सोसायटी से प्राप्त की जा सकती है उन्हें तालाब या बड़े गड्ढों में छोड़ना चाहिए।गड्ढे और नालियों में किरासन तेल या जला हुआ मोबिल छिड़कने से मच्छरों के अंडे मर जाते हैं जिससे मच्छरों का बढ़ना रूक जाता है।
मलेरिया होने से इन चीजों को नहीं करें:
मलेरिया होने पर ओझा गुनी या भगत के के पास न जाएँ।
मलेरिया में जब तेज बुखार होता है तो रोगी का दिमाग स्थिर नहीं रहता और अनाप–शनाप बोलता है, वैसे समय में झाड़-फूँक न करें बल्कि स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता की सहायता लें।दवाई को बीच में खाना न छोड़ें।खाली पेट में मलेरिया की दवा न खायें।बिना खून जाँच कराएँ बार-बार क्लोरोक्विन दवा ने खाएँ। दवा बीच में कभी न छोड़ें। ऐसा करने पर मलेरिया बार- बार हो सकता है तथा जानलेवा भी हो सकता है। कभी भी खाली पेट दवा न खाएँ, कुछ खाकर हे दवा खाएँ।