एक पक्षी जो पेड़ पर नही बैठता है-टिटहरी

टिटहरी एक ऐसा पक्षी है जो पेड़ पर नही बैठता है। और अपने अंडे भी जमीन पर ही देता है।
Om Prakash Patidar
Shajapur

टिटिहरी (red-wattled lapwing ) इसका वैज्ञानिक नाम :(Vanellus indicus) है इसे करबानक, लंबी, खरमा, पाणविक आदि नाम से भी पुकारते हैं। इसके नर और मादा दोनों ही एक ही रंगरूप के होते हैं। यह पक्षी लगभग 16 इंच लंबा होता है। शरीर का रंग राखीपन लिए होता है, उस पर गाढ़ी भूरी लकीर और चिह्न होते हैं। पीठ की चित्तियाँ घनी और नीचे की ओर बिखरी बिखरी सी रहती हैं। आँख पर होकर एक काली धारी सिर के बगल तक आती है। इसके ऊपर और नीचे की ओर एक हलकी भूरी लकीर होती है। डैने भूरे, दुम राख के रंग की और नीचे का हिस्सा सफेद होता है। गर्दन और पूँछ के नीचे का भाग ललछौंह भूरा और सीने पर खड़ी गाढ़ी भूरी धारियाँ होती है।

जोड़े में रहता है टिटहरी-
यह बाग बगीचों और जंगलों के निकट जहाँ सूखे ताल और नरकुल तथा सरपत की झाड़ियाँ हो, प्राय: रहता है। यह एकदम भूमि पर रहनेवाला पक्षी है और अपना सारा समय खुले मैदान में घूमकर बिताता है। यह अपनी खूराक के लिए दिन की अपेक्षा रात में चक्कर लगाता है। अपने मटमैले रंग के कारण लोगों का ध्यान इसकी ओर तब तक आकृष्ट नहीं हो पाता जब तक यह आवाज कर भागता या उड़ता नहीं। खतरे के समय यह पर समेट कर जमीन में दुबक जाता है। सामान्यत: यह अकेले या जोड़े में रहता है। इसका मुख्य भोजन कीड़े मकौड़े हैं।

पेड़ पर नही बैठती है टिटहरी-
यह पक्षी जोडे़ में या छोटे समूह में जमीन पर देखा जा सकता है। यह लगभग संपूर्ण भारत में पाई जाती है। यह पक्षी जमीन पर ही रहता है। यह कुदरत की किसी बनावट का परिणाम है कि टिटहरी पेड़ों पर नहीं बैठती है। यह घोंसला भी जमीन पर मिट्टी खोद कर बनाती है। इसका मुख्य भोजन छोटे कीड़े, दीमक व जमीन पर पाए जाने वाले छोटे कीट होते हैं।

रात को जागती है टिटहरी-
यह पक्षी रात के समय भी जागती है तथा भोजन भी करती है। इस पक्षी के प्रजनन का समय अप्रैल से जून महीने में होता है। यह पक्षी तीन से चार तक अंडे देती है। यह भी देखने में आया है कि कई बार इस पक्षी के एक भी चूजे जिंदा नहीं बच पाते हैं। घोंसला जमीन पर होने के कारण घास चरने वाले पशुओं के पैरों से इनके अंडे नष्ट हो जाते हैं। किसान जब खेतों में जुताई करते हैं तो भी इनके अंडे टूट जाते हैं। हालांकि भारतीय किसानों के बारे में कहा जाता है कि जिस स्थान पर टिटहरी के अंडे होते है, किसान खेत मे उस स्थान को जुताई के दौरान छोड़ देते है।

कुछ घंटों में ही चलना शुरू कर देते हैं चूजे-

नर व मादा दोनों अंडे सेते हैं। अंडों से चूजे निकलने के कुछ ही घंटों बाद चूजे चलने लगते हैं। बिल्ली भी चूजों का शिकार कर लेती है। चूजों के निकलने के बाद नर व माता चूजों को गहरी घास जहां से आसानी से शिकारी की नजरों से बच सके, वहां ले जाते हैं। सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाता है। जब खतरा होता है तो नर व मादा तेज शोर कर चूजों को सचेत कर देते हैं और चूजे गहरी घास में छुप जाते हैं। धीरे-धीरे इस पक्षी की संख्या कम होने का कारण खाली जमीन का प्रयोग भी है।
आओ हम इनके अंडे जो जमीन/खेत होते है।उन्हें  बचाये। टिटहरी बचाये।।

एक टिप्पणी भेजें

If you have any idea or doubts related to science and society please share with us. Thanks for comments and viewing our blogs.

और नया पुराने