What is Rudraksh (रुद्राक्ष)


शिवरात्रि के त्योहार पर शिव पूजन के दौरान भांग, धतूरा, बिल पत्र तथा रुद्राक्ष का नाम लिया जाता है। हम अक्सर लोगों को साधु संत और लोगों के गले में रूद्राक्ष की माला देखते हैं. लोग इसे लेकर जप करते हैं। पर क्या आप जानते हैं कि रूद्राक्ष कहां से आता है और इसका महत्व क्या है? रूद्राक्ष के बारे में बहुत कम ही लोग जानते होंगे। लेकिन आज कल सिहोर के पंडित प्रदीप जी मिश्रा के रुद्राक्ष उत्सव कार्यक्रम के दौरान हर किसी को रुद्राक्ष के बारे में जानने की इच्छा है।

आईये इस लेख के माध्यम से रुद्राक्ष के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं।

यह Elaeocarpaceae (एलिओकार्पेसी) कुल (Family) का पौधा है इसका वानस्पतिक नाम : Elaeocarpus serratus Linn. (एलिओकार्पस सेरेटस) है।

अंग्रेज़ी में इसे Utrasum bead tree कहा जाता है।

भारतीय भाषाओं में इसके नाम इस प्रकार है-

संस्कृत: रुद्राक्ष, भूतनाशन, शिवाक्ष, शर्वाक्ष, पावन, नीलकंठाक्ष, शिवप्रिया। हिन्दी-रुद्राक, रुद्राक्ष, रुद्राकी; उड़िया:-रूद्राख्यो कन्नड़-रुद्राक्ष गुजराती-रूद्राक्ष तमिल-रुट्टीराटकम, रुद्राकाई, कट्टुककराइ  तैलुगु-रुद्राक्ष, रूद्राछल्लु  बंगाली-रूद्राक्या  नेपाली-रुद्राक्ष्या  मलयालम-कट्टाकरा  मलांकर  मराठी-रूद्राक्ष 

सनातन परंपराओं में रूद्राक्ष को अत्यंत पवित्र माना जाता है। हिंदू धर्म में इसे शिव के रुप में देखा जाता है। रुद्राक्ष  एक संस्कृत शब्द है, जो ‘रुद्र’ और ‘अक्ष’ से मिलकर बनता है. बता दें कि भगवान शिव का नाम ‘रुद्र’ है और ‘अक्ष’ का अर्थ आंसू होता है.

रुद्राक्ष क्या है?

रूद्राक्ष एक फल का बीज होता है। जो पक जाने के बाद नीले रंग का दिखाई देता है. इसलिए इसे ब्लूबेरी बीड्स भी कहते हैं। यह बीज कई पेड़ों की प्रजातियों से मिलकर तैयार होते हैं। भारत में यह मुख्यत बिहार, बंगाल, मध्य प्रदेश, आसाम एवं महाराष्ट्र में पाया जाता है। इसका वृक्ष लगभग 18-20 मी तक ऊचाँ होता है। इसके पुष्प श्वेत वर्ण के होते हैं। इसके फल गोलाकार बैंगनी वर्ण के तथा कच्ची अवस्था में हरे रंग के होते है। इसके बीजों को रुद्राक्ष कहा जाता है। यह एक औषधीय महत्व का पौधा है।

आयुर्वेद के अनुसार रुद्राक्ष की फलास्थि मधुर, शीत, लघु, स्निग्ध, वातपित्तशामक, दाहशामक तथा सर होती है। यह मनोविकार, रक्तभार, अपस्मार, उन्माद, तृष्णा, ज्वर, मसूरिका, विस्फोट, यकृत् रोग व ज्वरनाशक होता है। इसके फल अम्ल, उष्ण, कफवातशामक तथा रुचिकारक होते हैं। इसके बीज पापशामक तथा स्वास्थ्य संरक्षक होते हैं। माना जाता है कि इसकी माला गले में पहनने से बल्ड प्रेशर नियंत्रण में रहता है। साथ ही इसके तेल से एग्जिमा, दाद और मुहांसों से राहत मिलती है। रूद्राक्ष से ब्रोंकल अस्थमा में भी राहत मिलती है। इसके अलावा इसे पहनने से उम्र का प्रभाव कम होता है। रुद्राक्ष धारण करने से दिल की बीमारी व घबराहट आदि से मुक्ति मिलती है।

कैसे बनता है रुद्राक्ष?

दअसल रूद्राक्ष एक फल का बीज होता है. जो पक जाने के बाद नीले रंग का दिखाई देता है। इसलिए इसे ब्लूबेरी बीड्स भी कहते हैं। यह बीज कई पेड़ों की प्रजातियों से मिलकर तैयार होते हैं. इन प्रजातियों में बड़े सदाबहार और ब्रॉड लवेड पेड़ शामिल होते हैं।

कैसा दिखता है रुद्राक्ष का पेड़?

रूद्राक्ष को पेड़ को इलियोकार्पस गेनिट्रस भी कहा जाता है। इन पेड़ों की ऊंचाई पेड़ 50 फीट से लेकर 200 फीट तक होती है. यह प्रमुख तौर पर नेपाल, दक्षिण पूर्वी एशिया, ऑस्ट्रेलिया, हिमालय और गंगा के मैदानों में पाए जाते हैं। सबरे खास बात यह है कि हमारे देश में रुद्राक्ष की लगभग 300 से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती है. उससे भी ज्यादा खास बात यह है कि यह एक सदाबहार पेड़ है, जो जल्दी से बढ़ता है. इस पेड़ में फल आने में 3 से 4 साल का समय लगता है।

रूद्राक्ष के प्रकार-

मान्यता  है कि प्राचीन काल में रूद्राक्ष 108 मुखी होते थे, लेकिन अब इसकी माला में लगभग 1 से 21 रेखाएं  होती हैं. इसका आकार मिलीमीटर में मापा जाता है. बता दें कि नेपाल में 20 से 35 मिमी (0.79 और 1.38 इंच) और इंडोनेशिया में 5 और 25 मिमी (0.20 और 0.98) के बीच के आकार का रुद्राक्ष (Rudraksha) पाया जाता है. यह लाल, सफेद, भूरा, पीला और काले रंग में भी  होता है.

रूद्राक्ष की खेती-

रुद्राक्ष  का पेड़ एयर लेयरिंग विधि से लगाया जा सकता है. इसके लिए इसमें 3 से 4 साल के पौधे की शाखा में पेपपिन से रिंग काटकर उसके ऊपर मौस लगाई जाती है. इसके बाद  250 माइक्रोन की पॉलीथिन से ढक दिया जाता है. इसके साथ ही दोनों तरफ रस्सी बांध दी जाती है फिर लगभग 45 दिनों में जड़ें आ जाती हैं. इसके बाद उसे काटकर नए बैग में लगाया जाता है. इस तरह 15 से 20 दिन बाद पौधा उगने लगता हैं. इसके अलावा, नर्सरी से भी रुद्राक्ष का पेड़ खरीदा जा सकता है।



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