विज्ञान और अंधविश्वास दोनो एक साथ कैसे?

How do science and superstition together?

ओम प्रकाश पाटीदार
शाजापुर (म.प्र.)

अंधविश्वास का मतलब हुआ – 
आँखें मूंदकर विश्वास कर लेना या बिना जाने समझे विश्वास करना. तात्पर्य निकाला जा सकता है कि विषय को जाने समझे बिना, विश्वास कर लेना – संक्षिप्त में अंधविश्वास कहलाता है. सामाजिक तौर पर पुरानी रूढिवादी विचारों से प्रभावित होकर किए जाने वाले कार्यों को जिसमें कारण अज्ञात होता है, हम अंधविश्वास कहते हैं.
ऐसे बहुत से अंधविश्वास हैं, जो लोक परंपरा से आते हैं जिनके पीछे कोई ठोस आधार नहीं होता। ये शोध का विषय भी हो सकते हैं। इसमें से बहुत-सी ऐसी बातें हैं, जो धर्म का हिस्सा हैं और बहुत-सी बातें नहीं हैं। हालांकि इनमें से कुछ के जवाब हमारे पास नहीं है। उदारणार्थ-
* आप बिल्ली के रास्ता काटने पर क्यों रुक जाते हैं?
* जाते समय अगर कोई पीछे से टोक दे तो आप क्यों चिढ़ जाते हैं?
* किसी दिन विशेष को बाल कटवाने या दाढ़ी बनवाने से परहेज क्यों करते हैं?
* क्या आपको लगता है कि घर या अपने अनुष्ठान के बाहर नींबू-मिर्च लगाने से बुरी नजर से बचाव होगा?
* कोई छींक दे तो आप अपना जाना रोक क्यों देते हैं?
* क्या किसी की छींक को अपने कार्य के लिए अशुभ मानते हैं?
* घर से बाहर निकलते वक्त अपना दायां पैर ही पहले क्यों बाहर निकालते हैं?
* जूते-चप्पल उल्टे हो जाए तो आप मानते हैं कि किसी से लड़ाई-झगड़ा हो सकता है?
* रात में किसी पेड़ के नीचे क्यों नहीं सोते?
* रात में बैंगन, दही और खट्टे पदार्थ क्यों नहीं खाते?
* रात में झाडू क्यों नहीं लगाते और झाड़ू को खड़ा क्यों नहीं रखते?
* अंजुली से या खड़े होकर जल नहीं पीना चाहिए।
* क्या बांस जलाने से वंश नष्ट होता है।

ऐसे ढेरों विश्वास और अंधविश्वास हैं जिनमें से कुछ का धर्म में उल्लेख मिलता है और उसका कारण भी लेकिन बहुत से ऐसे विश्वास हैं, जो लोक परंपरा और स्थानीय लोगों की मान्यताओं पर आधारित हैं।
लेकिन विज्ञान कहता है,कि कोई भी विचार तार्किक होना चाहिए।
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भारतीय संविधान के भाग - "4 क" के अनुच्छेद - "51 क" में वर्णित मूल कर्तव्यों में से एक "वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें" 
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यह हमेशा ध्यान रखे- विज्ञान सिर्फ पड़ने के लिए नही, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास के लिए है। 

1) निम्बू-मिर्च खाने के लिये है.. कही टाँगने के लिए नहीं है।
2) बिल्लियाँ जंगली या पालतू जानवर है, बिल्ली के रास्ता काटने से कुछ गलत नहीं होता.. बल्कि चूहों से होनेवाले नुक्सान को बचाया जा सकता है।
3) छींकना एक नैसर्गिक क्रिया है, छींकने से कुछ अनहोनी नहीं होती ना हि किसी काम में बाधा आती है। छींकने से शरीर की सोई हुई मांसपेशियां सक्रिय  हो जाती है।
4) भूत पेड़ों पर नहीं रहते, पेड़ों पर पक्षी रहते है।
5) चमत्कार जैसी कोई चीज नहीं होती। हर घटना के पीछे वैज्ञानिक कारण होता है।
6) भोपा, तांत्रिक , बाबा , कर्मकांडी* जैसे लोग झुठे होते है, जिन्हें शारारिक मेहनत नहीं करनी ; ये वही लोग है। 
7) जादू टोना, या किसी ने कराया ऐसा कुछ नहीं होता, ये दुर्बल लोगों के मानसिक विकार है। जादू-टोना करके आपके ग्रहो की दिशा बदलने वाले बाबा/फ़क़ीर, हवा और मेघों की दिशा बदलकर बारिश नहीं ला सकते क्या? सीमाओं पर हमारे जवानों को शहीद होने से बचा नहीं सकते है क्या ?
8 ) वास्तुशास्त्र भ्रामक है। सिर्फ दिशाओ का डर दिखाकर लूटने का तरीक़ा है।
वास्तविक तो पृथ्वी ही खुद हर क्षण अपनी दिशा बदलती है। अगर कुबेर जी उत्तर दिशा में है तो एक ही स्थान या दिशा में अमीर और गरीब दोनों क्यों पाये जाते है?
9) मन्नत के लिये टिप या चढ़ावे से भगवान प्रसन्न होकर फल देते है, तो क्या भगवान् रिश्वतखोर है?
आध्यात्म मोक्ष के लिए है, धन कमाने के लिए नहीं। 
10) भगवत गीता में कहा गया है कि हमे सत्कर्म में विश्वास रखना चाहिए। इसी को अपना धेय्य वाक्य बनाये।आपके कर्म के अनुसार फल मिलेंगे। क्योकि भाग्य से कर्म बड़ा होता है।


घर के दरवाजे पर घोड़े की नाल,
लगाने से सफलता नही मिलती।

सफलता के लिये दोनो पैरों में,
घोड़े की नाल लगानी पड़ती है !!



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