जुगनु रात में कैसे चमकते है?

जुगनु रात में कैसे चमकते है?

ओम प्रकाश पाटीदार
वरिष्ठ अद्यापक
शा उ मा वि बेरछा, शाजापुर (म.प्र.)

जुगनु रात में कैसे चमकते है?अंधेरी रातों में जुगनूओं को चमकते हुए तो जरूर देखा होगा। रात अंधेरी हो तो जुगनू का बारी-बारी से चमकना और बंद होना रोमांचक और मनोहारी होता है। जुगनू लगातार नहीं चमकते, बल्‍िक एक निश्‍चत अंतराल में ही चमकते और बंद होते हैं। वैज्ञानिक राबर्ट बायल ने सन 1667 में सबसे पहले कीटों से पैदा होने वाली रोशनी की खोज की। जुगनूओं की कुछ प्रजातियों में काफी रोशनी पैदा करती हैं। ऐसी किस्में दक्षिणी अमेरिका और वेस्टइंडीज में पायी जाती हैं।गौरतलब है कि रोशनी पैदा करने वाले कीटों की करीब एक हजार प्रजातियां खोजी जा चुकी हैं जिनमें कुछ बैक्टीरिया, कुछ मछलियां-कुछ किस्म के शैवाल, घोंघे और केकड़ों में भी रोशनी पैदा करने का गुण होता है, लेकिन इनमें जुगनू सबसे ज्यादा लोकप्रिय है।  जुगनू रात्रिचर होते हैं । हमारे यहां पर पाया जाने वाला जुगनू कोई आधे इंच का होता है। वह पतला और चपटा-सा सिलेटी भूरे रंग का होता है। नर जुगनू में ही पंख होते हैं मादा पंख न होने के कारण उड़ने में असमर्थ होती है। वह उड़ते हुए साथी को रोशनी के चमकने और बुझने की लय की मदद से पहचानती है। मादा चमकती तो है लेकिन किसी स्थान पर बैठी होती है। जुगनु की आंखें बड़ी स्पर्शक लंबे और टांगे छोटी होती हैं। जुगनू जमीन के अंदर या पेड़ की छाल में अंडे देती हैं। इनका मुख्‍य भोजन छोटे कीट और वनस्पति हैं।
जुगनू के शरीर में नीचे की ओर पेट में चमड़ी के ठीक नीचे कुछ हिस्सों में रोशनी पैदा करने वाले अंग होते हैं। इन अंगों में कुछ रसायन होता है। यह रसायन ऑक्सीजन के संपर्क में आकर रोशनी पैदा करता है। रोशनी तभी पैदा होगी जब इन दोनों पदार्थों और ऑक्सीजन का संपर्क हो। लेकिन, एक ओर रसायन होता है जो इस रोशनी पैदा करने की क्रिया को उकसाता है। यह पदार्थ खुद क्रिया में भाग नहीं लेता है। यानी रोशनी पैदा करने में तीन पदार्थ होते हैं। इन बातों को याद रख सकते हैं कि इनमें से एक पदार्थ होता है जो उत्प्रेरक का काम करता है। ऑक्सीजन और रोशनी पैदा करने वाले पदार्थ की क्रिया में उस तीसरे पदार्थ की भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण होती है। जब ऑक्सीजन और रोशनी पैदा करने वाले पदार्थ की क्रिया होती है तो रोशनी पैदा होती है।
पुराने जमाने में लोग रोशनी पैदा करने वाले कीटों को पकड़कर अपनी झोपडि़यों में उजाले के लिए उपयोग करते थे। ये लोग किसी छेद वाले बर्तन में जुगनूओं को पकड़ कर कैद कर लेते थे और रात को इन कीटों को रोशनी में अपना काम करते थे। दूसरे युद्ध में जापानी फौजी किसी संदेश या नक्शे को पढ़ने के लिए कीटों से निकलने वाली रोशनी की मदद लेते थे। वे इन कीटों को एकत्र करके रख लेते थे और जब रात को किसी सूचना को पढ़ना होता था तो वे हथेली में उस कीट का चूरा रखकर थूक से गीला करते थे और इस तरह से उन कीटों के चूर्ण से रोशनी निकलती और वे अपना संदेश पढ़ लेते थे। जुगनूओं के अलावा और भी जीव हैं जो रोशनी पैदा करते थे। कुछ बैक्टीरिया कुछ मछलियां कुछ किस्म के शैवाल, घोंघे और केकड़ों में भी रोशनी पैदा करने का गुण होता है। कुछ फफूंद भी चमकने की क्षमता रखती है। लगातार रोशनी पैदा कर कीटों को अपनी ओर आकर्षित करती है। कुकरमुत्ते की एक किस्म होती है जो रात में बड़ी तेजी से चमकती है। जब चमकती है तो ऐसा लगता है कि मानों छतरियों में कोई लेप लगा दिये गये हो।

मेरे मित्र डॉ प्रदीप सोलंकी के कमेंट बॉक्स से-

" ये एक अच्छा विषय है कि जुगनू रात में कैसे चमकते हैं?...लेकिन बहुत पहले से पता है कि लुसिफेरिन लुसिफेरेज एंजाइम की उपस्थिति में जलता है तो कोल्ड बर्निंग होती है और प्रकाश चमकता है। अब बात इतनी सी है कि इस लाइट को ऑन-ऑफ कौन करता है?...आज से 10 साल पहले एक रिसर्च आई थी कि जुगनू की ट्रेकिआ में वॉल में कुछ ग्लैंड्स होती हैं जिनसे नाइट्रिक ऑक्साइड गैस निकलती है। जैसे ही गैस release होती है लाइट ऑफ हो जाती है। इस तरह से लाइट का स्विच ऑफ होना नाइट्रिक ऑक्साइड गैस पर निर्भर करता है। गौरतलब है कि नाइट्रिक ऑक्साइड गैस एक अच्छा पैन किलर भी है। "

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