आपको सुनकर अटपटा लग रहा होगा, लेकिन यह सही है। कुछ विशिष्ट प्रकार के पौधों में फल पौधों पर ही अंकुरित हो जाते है, अंकुरित बीज जब दलदल में उगने लायक होते है तब यह पौधों से गिरकर दलदली भूमि में स्थापित हो जाते है। इस प्रकार की वनस्पति को मैंग्रोव वनस्पति कहा जाता है।
भारत एवं विश्व में स्थित मैंग्रोव क्षेत्र
विश्व में सर्वाधिक सघन मैंग्रोव वन मलेशिया के तटवर्ती क्षेत्रों में पाए जाते हैं। विश्व का सर्वाधिक विशाल (51,800 वर्ग किलोमीटर) मैंग्रोव क्षेत्र भारत एवं बांग्लादेश की सीमा में स्थित सुन्दरवन क्षेत्र है। भारत की बात की जाए तो पश्चिम बंगाल का सुन्दरवन क्षेत्र देश का सबसे बड़ा मैंग्रोव क्षेत्र है। विश्व के कुल मैंग्रोव वनों का सात प्रतिशत भारत मे उपलब्ध है। भारत में 42 वर्गों और 28 समूहों में मैंग्रोव की 69 प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
अनोखी जड़ें
मैंग्रोव की विशिष्ट जड़ संरचना मलवे को जमाने में सहायक होती है। इन वनस्पतियों द्वारा नदियों में बहकर आया हुआ मलवा समुद्री तटों पर ही रोक दिया जाता है। एक लम्बे अन्तराल के बाद लगातार मलवे के जमा होते रहने से डेल्टाओं का निर्माण होता है। मैंग्रोव की जड़ें मुख्यतः तीन प्रकार की होती हैं। एक प्रकार की मैंग्रोव जड़ें तने के ऊपरी भाग से निकलते हुए मलवे तक पहुँच जाती हैं। मैंग्रोव वनस्पतियों में जड़ की दूसरी संरचना ‘मुड़े घुटने’ जैसी दिखाई देती है। यह जड़ें समस्तर रूप से फैलती हुई ऊपर नीचे की ओर निकलती हैं। इन वनस्पतियों में एक तीसरी प्रकार की जड़ संरचना भी देखी जाती है जिसमें जड़ समस्तर आकार में फैलती तो हैं, पर कुछ जड़ें ऊपर की ओर भी निकलती हैं। इस प्रकार मैंग्रोव वनस्पतियों की पुरानी जड़ें धीरे-धीरे मलवे में समाती रहती हैं।
पेड़ों पर अँकुरित होते बीज
मैंग्रोव वनस्पतियों में फलों के बीज जमीन पर गिरने से पूर्व ही इस प्रकार अँकुरित हो जाते हैं जैसे किसी पौधे को कलम द्वारा लगाया जाता है। कुदरत ने मैंग्रोव को यह विशिष्ट गुण इसलिए दिया है ताकि इसके बीज दलदल में गिरने पर अपनी जड़ें आसानी से जमा सकें। यह तो हम जानते ही हैं कि खारे पानी में बीजों के अँकुरण की सम्भावना कम होती है, इसलिए विकास की उत्तरोत्तर प्रक्रिया के कारण मैंग्रोव वनस्पतियों ने बीज अँकुरण की विशिष्ट प्रक्रिया को अपनाया। इन वनस्पतियों में बीज अँकुरण के इस असाधारण गुण को जयायुज या पिण्डज (विविपैरस) के नाम से जाना जाता है। इनके फल बीज पेड़ से गिरने के पहले ही अँकुरित हो जाते है , इन अंकुरित बीजो से जड़ें नीचे की ओर झुकती हुई जमीन तक पहुँच जाती हैं। मैंग्रोव के बीज की एक विशेषता इसका भारीपन व गूदेदार होना भी है, जो इसको पेड़ से गिरने पर स्थायित्व प्रदान करने में सहायक होता है। इस प्रकार मैंग्रोव के बीज पानी के बहाव में भी कई दिनों तक जीवित रह पाते हैं।
प्रस्तुतिकरण
ओम प्रकाश पाटीदार
शाजापुर
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