सूर्य या चंद्रमा के चारो और प्रभामंडल (Haloes) क्यो दिखाई देता है?
-ओम प्रकाश पाटीदार
सूर्य या चंद्रमा बादल के पतली लेयर से ढके होते हैं तभी प्रभामंडल (Haloes)दिखाई देता है असल में, बादल में बर्फ के ढेर सारे छोटे-छोटे क्रिस्टलीय या कण होते हैं। इन बर्फीले क्रिस्टलों से प्रकाश का अपवर्तन यानी रिफ्लेक्शन होता है जिसके कारण हमें प्रभामंडल दिखाई देता है।
आसमान में जब कभी चंद्रमा के चारों ओर एक प्रभामंडल यानी घेरा दिखाई दे रहा है जिसे देख कर कई लोग चकित हो जाते हैं। कुछ लोग इसका उत्तर लोक विश्वास में खोजते हैं तो कुछ लोगों को चांद के चारों ओर प्रभामंडल कोई खगोलीय रहस्य लगता है।
पहली रोचक बात तो यह है कि हम सभी आसमान में देखते समय चांद के चारों ओर घेरे पर ध्यान तो दे रहे हैं लेकिन इस बात की ओर ध्यान नहीं जा रहा है कि चांद हमसे करीब 3,84,000 किलोमीटर दूर है जबकि बादल केवल धरती से ऊपर वायुमंडल में 12 किलोमीटर तक ही बनते हैं। यानी हमें चांद बादलों की परत के पार दिखाई दे रहा है। लेकिन, बादल कई तरह के होते हैं, कम से कम दस तरह के। 9 से 12 किलोमीटर की ऊंचाई पर सिर्रोस्ट्रेटस यानी पक्षाभ-स्तरीय मेघ होते हैं जो पूरे आसमान में छा जाते हैं। जब उनकी परत बहुत पतली होती है तो हमें उसके पार चंद्रमा या सूर्य साफ दिखाई देता है और उनके चारों ओर प्रभामंडल यानी घेरा दिखाई देता है। ऐसा उनके प्रकाश के कारण होता है। और फिर, चांद की तो बात ही क्या है! वह तो खुद सूरज की रोशनी से चमकता है और उसे हमारी ओर चांदनी के रूप में भेजता है। चांदनी की किरणें बादल की जल बुंदकियों से टकराती हैं और बादल की उस पतली परत में लगता है जैसे कोई घेरा बन गया है।
-ओम प्रकाश पाटीदार
सूर्य या चंद्रमा बादल के पतली लेयर से ढके होते हैं तभी प्रभामंडल (Haloes)दिखाई देता है असल में, बादल में बर्फ के ढेर सारे छोटे-छोटे क्रिस्टलीय या कण होते हैं। इन बर्फीले क्रिस्टलों से प्रकाश का अपवर्तन यानी रिफ्लेक्शन होता है जिसके कारण हमें प्रभामंडल दिखाई देता है।
आसमान में जब कभी चंद्रमा के चारों ओर एक प्रभामंडल यानी घेरा दिखाई दे रहा है जिसे देख कर कई लोग चकित हो जाते हैं। कुछ लोग इसका उत्तर लोक विश्वास में खोजते हैं तो कुछ लोगों को चांद के चारों ओर प्रभामंडल कोई खगोलीय रहस्य लगता है।
पहली रोचक बात तो यह है कि हम सभी आसमान में देखते समय चांद के चारों ओर घेरे पर ध्यान तो दे रहे हैं लेकिन इस बात की ओर ध्यान नहीं जा रहा है कि चांद हमसे करीब 3,84,000 किलोमीटर दूर है जबकि बादल केवल धरती से ऊपर वायुमंडल में 12 किलोमीटर तक ही बनते हैं। यानी हमें चांद बादलों की परत के पार दिखाई दे रहा है। लेकिन, बादल कई तरह के होते हैं, कम से कम दस तरह के। 9 से 12 किलोमीटर की ऊंचाई पर सिर्रोस्ट्रेटस यानी पक्षाभ-स्तरीय मेघ होते हैं जो पूरे आसमान में छा जाते हैं। जब उनकी परत बहुत पतली होती है तो हमें उसके पार चंद्रमा या सूर्य साफ दिखाई देता है और उनके चारों ओर प्रभामंडल यानी घेरा दिखाई देता है। ऐसा उनके प्रकाश के कारण होता है। और फिर, चांद की तो बात ही क्या है! वह तो खुद सूरज की रोशनी से चमकता है और उसे हमारी ओर चांदनी के रूप में भेजता है। चांदनी की किरणें बादल की जल बुंदकियों से टकराती हैं और बादल की उस पतली परत में लगता है जैसे कोई घेरा बन गया है।
