एम आर आई (MRI) क्या है?


क्या है एमआरआई(MRI)

Om Prakash Patidar

कभी-कभी कोई व्यक्ति बीमार होता है मगर रोग की पहचान नहीं हो पाती। ऐसी स्थिति में उसे एम.आर.आई. कराने की सलाह दी जाती है। एम.आर.आई. मतलब मैग्नेटिक रिजोनेन्स इमेङ्क्षजग। इस विधि की मदद से शरीर के आंतरिक अंगों की तस्वीर प्राप्त की जाती है। इस विधि का आधार है मैग्नेटिक रेजोनेन्स या चुंबकीय अनुनाद। 

मैग्नेटिक रेजोनेन्स या चुंबकीय अनुनाद-
जब कोई व्यक्ति बीमार होता है मगर रोग की पहचान नहीं हो पाती। ऐसी स्थिति में उसे एम.आर.आई. कराने की सलाह दी जाती है। 
एम.आर.आई. मतलब मैग्नेटिक रिजोनेन्स इमेज। 
इस विधि की मदद से शरीर के आंतरिक अंगों की तस्वीर प्राप्त की जाती है। इस विधि का आधार है मैग्नेटिक रेजोनेन्स या चुंबकीय अनुनाद। एम.आर.आई. करने के लिए व्यक्ति के शरीर के प्रभावित हिस्से या कभी-कभी तो पूरे शरीर को एक मशीन में बनी एक नलीनुमा गुहा में प्रविष्ट कराया जाता है। अजीब तरह की आवाजें सुनाई पड़ती हैं और कुछ समय बाद उस व्यक्ति को सही-सलामत बाहर निकाल लिया जाता है। कुछ देर बाद व्यक्ति के प्रभावित अंग की तस्वीरें प्राप्त हो जाती हैं। 
MRI मशीन के अंदर होता क्या है?
उपरोक्त तस्वीरें कैसे बनती हैं? 
क्या यह एक्सरे मशीन के समान कोई मशीन है?

हम जानते ही हैं कि परमाणु मूलत: दो भागों से बना होता है - केंद्रक और उसके पास चक्कर काटते इलेक्ट्रॉन। केंद्रक में प्रोटॉन और न्यूट्रॉन नामक कण पाए जाते हैं। ये दोनों ही कण अत्यंत दुर्बल चुंबकों के समान व्यवहार करते हैं। यदि थोड़ी तकनीकी भाषा का उपयोग करें, तो कहेंगे कि इन कणों में चुंबकीय आघूर्ण होता है। छड़ चुंबकों के साथ तो आप $जरूर खेले होंगे। उस अनुभव से आप जानते ही हैं कि यदि ऐसे दो चुंबकों को पास-पास लाया जाए, तो वे एक-दूसरे पर कुछ बल लगाते हैं। यदि इनमें से एक चुंबक बड़ा हो और उसके आसपास कोई दुर्बल चुंबक रखा जाए, तो दुर्बल चुंबक घूमने को मजबूर हो जाता है। वह इस तरह घूमता है कि बड़े शक्तिशाली चुंबक के चुंबकीय क्षेत्र के साथ सीध में आ जाता है। यही स्थिति तब भी होगी है जब केंद्रक के कणों (यानी प्रोटॉन और न्यूट्रॉन) को शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाएगा (ये कण बाहरी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा में या उसके विपरीत दिशा की सीध में जम जाएंगे)। सारे परमाणु केंद्रकों में से हाइड्रोजन का केंद्रक अनोखा है। इसके केंद्रक में सिर्फ एक प्रोटॉन होता है (और कुछ नहीं होता)। अर्थात हाइड्रोजन का केंद्रक एक नन्हा-सा चुंबक ही है। शेष तत्वों के केंद्रकों में एक से अधिक प्रोटॉन और न्यूट्रॉन होते हैं, और प्रत्येक का अपना-अपना चुंबकीय आघूर्ण होता है, इसलिए हाइड्रोजन के अलावा अन्य केंद्रकों का कुल चुंबकीय आघूर्ण थोड़ा पेचीदा होता है। कुछ केंद्रकों के संदर्भ में तो विभिन्न कणों के चुंबकीय आघूर्ण एक-दूसरे के विपरीत होते हैं। इस वजह से इन केंद्रकों का कुल चुंबकीय आघूर्ण शून्य हो जाता है। हाइड्रोजन के केंद्रक को जब किसी बाहरी चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है, तो किसी भी साधारण चुंबक की तरह वह या तो बाहरी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा में या उसके विपरीत जम जाता है। 
सजीवों, खासकर मनुष्यों के शरीर में काफी मात्रा में पानी होता है। पानी हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का यौगिक  है। दूसरे शब्दों में, मानव शरीर में बड़ी संख्या में हाइड्रोजन केंद्रक उपस्थित हैं। एन.एम.आर. की वजह से ये केंद्रक चुंबकीय क्षेत्र में रखे जाने पर खास लंबाई की रेडियो तरंगों को सोखेंगे। यह अवशोषण एक तरह से प्रोटॉन की उपस्थिति का द्योतक है - अर्थात यदि किसी स्थान विशेष पर खास लंबाई वाली रेडियो तरंगें सोखी जा रही हैं, तो वहां प्रोटॉन उपस्थित होना चाहिए। यही प्रोटॉन इमेङ्क्षजग का आधार है। मगर इसमें कई दिक्कतें हैं। शरीर में तो हर जगह अनगिनत प्रोटॉन उपस्थित हैं; तो हम यह कैसे पता लगाएंगे कि शरीर का कौन-सा हिस्सा रेडियो तरंगों का अवशोषण कर रहा है। सारे प्रोटॉन तो एक जैसे ही होते हैं। लिहाजा, शरीर के सारे हिस्सों से आने वाला रेडियो तरंगों का विकिरण भी एक समान ही होगा। यानी हमारा मकसद पूरा होता नहीं लगता क्योंकि हमारे पास जो तस्वीर होगी वह तो पूरे शरीर के प्रोटॉन्स की होगी, किसी खास अंग या हिस्से की नहीं। रोग-निदान के लिहाज से तो यह तस्वीर बेकार ही है। इसके अलावा, इस तरह की तस्वीर से हमें सामान्य ऊतक और असामान्य ऊतक के बीच कोई अंतर देखने को भी नहीं मिलेगा। एक नैदानिक औ$जार के रूप में उपयोगी बनाने के लिए हमें एन.एम.आर. को और परिष्कृत करना होगा। जहां एक्सरे का उपयोग मुख्य रूप से हड्डियों की तस्वीर खींचने के लिए किया जाता है, वहीं एमआरआई मुख्यत: मुलायम ऊतकों व आंतरिक अंगों के लिए अधिक उपयुक्त है। इसके अलावा, एमआरआई से हमें एक ही अंग या शरीर के एक ही हिस्से की अलग-अलग गहराई की परतों की कई तस्वीरें मिलती हैं। इससे उस अंग का लगभग एक 3-डी चित्र मिल जाता है। एमआरआई तस्वीरें रेडियो तरंगों की मदद से बनाई जाती हैं, जिनकी तरंग लंबाई मीटर की रेंज में होती है। ये तरंगें शरीर को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचातीं। दूसरी ओर, एक्सरे अत्यंत ऊर्जावान होता है और ऊतकों को नुकसान पहुंचा सकता है। एमआरआई एक निहायत लचीली तकनीक है और इसका उपयोग हड्डियों समेत विभिन्न शारीरिक अंगों में असामान्यता के अध्ययन में किया जा सकता है। यह सही है कि एमआरआई एक महंगी तकनीक है मगर अत्यंत समर्थ तकनीक है। अब तक इसके कोई साइड प्रभाव भी सामने नहीं आए हैं। एमआरआई तकनीक के विकास में कई लोगों ने योगदान दिया है।

एक टिप्पणी भेजें

If you have any idea or doubts related to science and society please share with us. Thanks for comments and viewing our blogs.

और नया पुराने