दिल की अनियमित या बन्द धड़कन को फिर से नियमित रखने की युक्ति है पेसमेकर
Om Prakash Patidar
पेसमेकर एक प्रकार का डिवाइस यानि यंत्र है जो इलेक्ट्रिकल इंपल्स यानि दिल में आवेग उत्पन्न करता है, इसकी मदद से दिल की धड़कन और ध्वनि पर नियंत्रण रखा जा सकता है। वैसे तो इसका इस्तेमाल दिल से जुड़ी कई समस्याओं के लिए किया जाता है, मगर इसका खास उपयोग तब होता है जब दिल की धड़कन ठीक से काम नहीं करती है।
दिल का इलेक्ट्रिकल सिस्टम
ये एक ऐसा सिस्टम है जो दिल को सही तरीके से काम करने में मदद करता है। इसको ही हार्ट इलेक्ट्रिकल सिस्टम कहते हैं। इसकी सहायता से दिल के अलावा बाकी अंगों में उचित मात्रा में रक्त का संचार होता है। ये धड़कनों को नियंत्रित करता है। दिल के ऊपर और निचले भाग बारी-बारी से सिकुड़ते और आराम करते हैं, इससे रक्त दिल से फेफड़ों में जाता है और वहां से पूरे शरीर में जाता है। यह सिस्टम शक्ति प्रदान करतI है जिससे दिल को काम करने में आसानी होती है।
दिल की प्रक्रिया साइनोएट्रियल नोड से शुरू होती है जोकि दहिने एट्रियम में होता है। यहां से दिल का आवेग यानि धड़कन एट्रियम की दिवारों तक जाती है और वो उसमें सिकुड़न पैदा करती है।
फिर इलेक्ट्रिकल इमपल्स एवी नोड तक जाता है जो एट्रियम और वेंट्रीकल के बीच में होता है । एवी नोड एक दरवाजे के रूप में काम करता है। जो इलेक्ट्रिकल सिग्नल को दिल के निचले भाग में जाने के पहले धीमा करता है। यह गति एट्रियम को पहले सिकुड़ने का मौका देती है और उसके बाद दिल का निचला कोष सिकुड़ता है।
एवी नोड से इलेक्ट्रिकल इंपल्स हिस पुर्किंज नेटवर्क से निकलता है, इस में विशेष प्रकार के फाइबर होते हैं जिनसे इलेक्ट्रिसिटी निकलती है।जब इंपल्स वेंट्रीकल की वाल्स में जाता है तो वेंट्रीकल यानि दिल का निचला हिस्सा संकुचित होता है।
इससे दिल की धड़कन प्रति मिनट ६० से १०० बार धड़कती है
पेसमेकर किस तरह करता है काम
पेसमेकर बैटरी की मदद से काम करने वाला यंत्र है जो दिल की धड़कनों को नियंत्रित रखने में मदद करता है।इसमें लगे तार दिल की स्थिति की जानकारी को मशीन तक पहुंचाते हैं और उस स्थिति के अनुसार मशीन दिल की सहायता करती है। इसमें लगी बैटरी जेनरेटर में शक्ति पहुँचती है और ये सब एक पेसमेकर पाॅकेट बाॅक्स में एकत्रित होता है। इसमें लगे तार जेनरेटर को दिल से जोड़ते हैं।
पेसमेकर दिल की धड़कनों को नियंत्रित करता है। जब दिल की धड़कन आसामान्य होती है, तो कंप्यूटर के माध्यम से पता चल जाता है तब पेसमेकर दिल को इलेक्ट्रिकल इम्पल्स भेजता है। ये इंपल्स पेसमेकर के तारों से जाकर आसामान्य धड़कनों पर काबू पाने का काम करते हैं ।
पेसमेकर का कंप्यूटर दिल की स्थिति और धड़कनों से जुड़ी सारी जानकारी को सुरक्षित रखता है। इसके रिकाॅर्ड के अनुसार डाॅक्टर पेसमेकर की गति को सेट कर सकते हैं ताकि वो आपके लिए सही तरीके से काम करे। इस प्रक्रिया में किसी प्रकार का कोई इंजेक्शन नहीं लगता है और न ही सीधे तौर पर पेसमेकर से कोई छेड़छाड़ होती है। डाॅक्टर इसमें कम से कम धड़कन को सेट कर सकता है। अगर दिल की धड़कन ज्यादा धीमी हो जाती है तो पेसमेकर इंपल्स पर दबाव बनाता है जो कि हार्ट बीट को सामान्य बनाती है।
नए और आधुनिक पेसमेकर में ऐसी सुविधा भी होती है कि उसमें रक्त का तापमान, सांस और बाकी जानकारी भी मिल जाती है।
पेसमेकर के प्रकार
पेसमेकर में एक से तीन तार होते हैं जो कि दिल के अलग-अलग भागांे से जुडे़ होते हैं। ये निर्भर करता है कि इसमें कितने तार हैं, कई तरह के पेसमेकर हैं जैसे सिंगल चैंबर पेसमेकर, डुअल चैंबर पेसमेकर यानि दो चैंबर वाला पेसमेकर, बाइवेंट्रिक्यूलर पेसमेकर, लीडलेस पेसमेकर आदि।
सिंगल चैंबर पेसमेकर- इसमें पेसमेकर से इम्पल्स निकल के दहिने दिल के कोष यानि दहिने निचले हिस्से में जाता है।
डुअल चैंबर पेसमेकर- इसमें इम्पल्स दाहिने अपर हार्ट चैंबर और दाहिने लोवर चैंबर तक जाता है। ये सिग्नल दिल के सिकुड़ने यानि धड़कनों का हिसाब रखते हैं।
बाइवेंट्रिक्यूलर पेसमेकर- इसमें मौजूद तार पल्स को एक एट्रियम और दोनों वेंट्रीकल्स तक लेकर जाते हैं। इससे दिल के दोनों कोष तक सिग्नल पहुंचता है। इसे सीआरटी(CRT) डिवाइस भी कहते हैं।
लीडलेस पेसमेकर- इसमें कोई तार नहीं होता है इसमें किसी प्रकार की स्किन पाॅकेट की जरूरत नहीं है। इसे दिल के लोवर चेंबर में डाल दिया जाता है।
आपका डाॅक्टर बताएगा कि आपके लिए सही पेसमेकर कौन सा है।
किस अवस्था में पेसमेकर का होता है इस्तेमाल
वैसे तो ये कई अवस्थाओं में लगाया जाता है , इसके सबसे सामान्य संकेत ये हो सकते हैं
- ब्रेडीकार्डिया- दिल की धड़कनें सामान्य से धीमी होने पर.
- हार्ट ब्लाॅक- इसमें इलेक्ट्रिकल सिग्नल ट्रांसमिशन बहुत धीरे हो जाता है। . हार्ट के ब्लाॅक होने के पीछे वजह बढ़ती उम्र होती है। दिल का दौरा और चोट भी इसकी वजह हो सकती है। न्यूरोमसकुलर ख़राबी जिसकी वजह से दिल की दिक्कतें आती हैं।
- इसके अलावा भी कई स्थितियां हैं जिसमें पेसमेकर की जरूरत पड़ती है।
- सिक साइनस सिंड्रोम-बढ़ती उम्र या दिल की बीमारी के कारण साइनस नोड सामान्य से धीमा हो सकता है, इससे धड़कन धीमी हो जाती है।
- एट्रियल फिब्रिलेशन के इलाज़ के बाद – पेसमेकर धड़कनों को सुचारू रूप से काम करने में मदद करता है।
- दिल की बीमारी के लिए जो दवाएं दी जाती हैं उनकी वज़ह से भी धड़कन धीमी हो सकती है।
- बेहोशी का दौरा- धीमी धड़कन की वजह से ये हो सकता है।
- दिल की मांसपेशियों में समस्या- इलेक्ट्रिकल सिग्नल जो आपकी मांसपेशियों में धीमी गति से जाता है। उसमें सीआरटी उपचार बेहतर होता है।
- लॉन्ग क्यूटी सिंड्रोम – ये एक तरह का सिंड्रोम है जिसमें दिल की धड़कन खतरनाक तरीके से आसामान्य हो जाती है।
- कुछ जन्मजात दिल की बीमारी होती है जिसमें पेसमेकर की जरूरत होती है।
- दिल प्रत्यारोपण के बाद कुछ मरीजों को पेसमेकर की जरूरत होती है।
कैसे लगता है पेसमेकर
इसके लिए सामान्य सी सर्जरी की जरूरत पड़ती है। जोकि अस्पताल या किसी दिल के अस्पताल में की जाती है। ऑपरेशन के पहले एक इजेक्शन लगाया जाता है ताकि आप रिलैक्स हो जाएं। जिस जगह पर पेसमेकर डाला जाता है वो हिस्सा शून्य रहता है ताकि मरीज को दर्द न हो। कंधे के पास की नस के जरिए पेसमेकर का तार दिल तक पहुँचाया जाता है। इसके लिए एक्स-रे की मदद ली जाती है ताकि पता चले सही तरीके से तार दिल में पहुंचा है या नहीं। जब तार सही तरह से चला जाता है, तो डाॅक्टर सीने या पेट पर छोटा चीरा लगाते हैं । यहां पर पेसमेकर का बाॅक्स डाला जाता है और दिल तक जो तार गया है उसे इससे जोड़ा जाता है। पूरी तरह पेसमेकर की जांच करने के बाद त्वचा को सिल दिया जाता है।
इस प्रक्रिया के बाद हो सकता है कि एक दिन के लिए मरीज को अस्पताल में भर्ती रहना पडे़। इस दौरान पेसमेकर और मरीज की स्थिति पर नजर रखी जाती है। जहां पर पेेसमेकर को डाला गया है वहां पर दर्द और सूजन हो सकती है। जिसको सामान्य दवाओं से नियंत्रित किया जाता है। सर्जरी के कुछ दिन बाद मरीज सामान्य दिनचर्या में वापस आ सकता है। एक महीने के लिए भारी वजन उठाने की मनाही होती है।

