अल्ट्रासाउंड स्कैनिंग (Sonography) क्या है?
Om Prakash Patidar
अल्ट्रासाउंड स्कैनिंग जिसे सोनोग्राफी भी कहा जाता है। इस तकनीक का उपयोग शरीर के अंदर के अंग और ऊतकों को देखने के लिए किया जाता है। शरीर के अंदर की संरचनाओं को छवि रूप में दिखाने के लिए इसमें उच्च आवृत्ति की ध्वनि तरंगों का उपयोग किया जाता है, जिन्हें इंसान सुन नहीं सकते।
कैसे होता है अल्ट्रासाउंड
अल्ट्रासाउंड मुलायम या तरल पदार्थ से भरे अंगों की उत्कृष्ट छवियों का उत्पादन करता है, लेकिन यह हवा से भरे अंगों या हड्डियों की जांच के लिए कम प्रभावी है। अल्ट्रासाउंड एक सुरक्षित और दर्दरहित परीक्षण है। इसमें आमतौर पर 15 से 30 मिनट ही लगते हैं। अल्ट्रासाउन्ड में अपके शरीर के भीतरी संरचनाओं की अपेक्षाकृत सटीक छवियों का उत्पादन करने के लिए उच्च आवृत्ति ध्वनि तरंगों का उपयोग किया जाता है।अल्ट्रासाउंड के जरिए आप शरीर के भीतर होने वाली हलचल या किसी भी गड़बड़ी को पारदर्शिता से देख सकते हैं यानी अल्ट्रांसाउंड फोटो कॉपी की तरह होता है। जो ध्वनि तरंग टकराकर वापस आती है, उन्हे अल्ट्रासाउंड मशीन द्वारा मापा जाता है, और शरीर के उस विशेष क्षेत्र को एक छवि में बदला जाता है। अधिकांश अल्ट्रासाउंड परीक्षाओं में आपके शरीर के बाहर एक सोनार डिवाइस का उपयोग किया जाता है। हालांकि कुछ अल्ट्रासाउंड में डिवाइस को शरीर के अंदर भी रखा जाता है।
क्यों कराते है अल्ट्रासाउंड
आपको कई कारणों से एक अल्ट्रासाउंड से गुजरना पड़ सकता है। भ्रूण का आकलन। पित्ताशय की थैली रोग का निदान। रक्त वाहिकाओं में प्रवाह का मूल्यांकन।बायोप्सी या ट्यूमर के इलाज के लिए। एक स्तन गांठ का मूल्यांकन। अपने थायरॉयड ग्रंथि की जाँच। अपने दिल का अध्ययन। संक्रमण के कुछ रूपों का निदान। कैंसर के कुछ रूपों का निदान।जननांग और प्रोस्टेट में असामान्यताएं के बारे में पता लगाया जा सकता है। अल्ट्रासाउंड से मानसिक विकास में बाधा आती है, इससे निकलने वाली रेडियोएक्टिव तरंगों से होने वाले बच्चे के दिमाग पर नकारात्मक असर पड़ता है।लगातार अल्ट्रासाउंड करवाने से डीएनए सेल्स को नुकसान पहुंचता है और इसके साथ ही शरीर में ट्यूमर सेल्स भी बनने लगते हैं जो कि मौत का जोखिम बढ़ा देते हैं। अल्ट्रासाउंड परीक्षा अक्सर निदान के लिए आवश्यक बहुमूल्य जानकारियां जैसे रोग की स्थिति व उसकी पुष्टी आदि प्रदान करती है।

