बांस में फूल आना (Flowering) एक रहस्यमय विषय
संकलन
ओम प्रकाश पाटीदार
संभवत: बांस से परिचित हरेक व्यक्ति ने यह सुना होगा कि जब बांस से फूल निकलता है तो वह मर जाता है। हालांकि कभी-कभार ही ऐसा होता है न कि सदैव। इसके बावजूद भी बांस के पौधे में फूल आने की घटना को अक्सर ही उसकी मौत की भविष्यवाणी से जोड़ेकर देखा जाता है।
बांस में फूल आना वनस्पति जगत की एक पहेली है। वे तथ्य जो बांस के पौधे को वनस्पति के सदृश उगने वाले पौधे के स्थान पर फूल देने वाले पौधे के रूप में समझने के लिए प्रेरित करते हैं, पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। बांस की प्राय: सभी प्रजातियों के जीवन संबंधी अपने-अपने इतिहास हैं। भारतीय एशियाई क्षेत्र से बाहर बांस की कुछ प्रजातियां और इस क्षेत्र की गिनी चुनी प्रजातियों के पौधे ऐसे हैं जो वयस्क होकर कई वर्षों तक प्रतिवर्ष फूल और उसके बाद बीज देते हैं। फूल देनेवाला तना फल विकसित होने के बाद अक्सर मर जाता है लेकिन अन्य तने जिंदा रहते है। बांस की भारतीय-एशियाई सामान्य प्रजातियों में से कई प्रजातियां ऐसी हैं जो नियमित रूप से एक ही समय में और एक वर्ष से अधिक के अंतराल में बीज देती हैं। बांस की विभिन्न प्रजातियों का जीवनकाल तीन वर्ष से लेकर 120 वर्ष तक है और एक क्षेत्र की प्रत्येक प्रजाति के लगभग सभी पौधे फूल देते हैं और इस प्रकार काफी संख्या में बीज देकर खुद मर जाते हैं। ये बीच या तो शीघ्र अंकुरित होते हैं अथवा बरसात की शुरूआत में।
फूल देने के तरीके के आधार पर बांस के तीन प्रकार हैं। पहले प्रकार का पौधा वार्षिक आधार पर अथवा लगभग उतने ही समय में फूल देता है। भारत में अरूंदीनारिया और थाईलैंड में स्चीजोस्टाचियम ब्राचीक्लैडम इसका उदाहरण है। दूसरे प्रकार के बांस में फूल आने की घटना अनियमित रूप से होती है। एशिया के कटिबंधीय क्षेत्र में बम्बूसा और डेंड्रोकालामस और जापान में फिलोस्टाचिस आदि इसके उदाहरण हैं। तीसरे प्रकार के बांस में वे प्रजातियां हैं जिनमें फूल आने की घटना भिन्न-भिन्न प्रकार से होती हैं, अथवा फूल या तो एक छोटे क्षेत्र में आते हैं अथ्वा कुछेक तनों में। यद्यपि इन पौधों में फूल आने की घटना के अपने चक्र हैं जो एक क्षेत्र में तो समान अवधि के होते हैं किन्तु दूरस्थ स्थानों के लिए उनकी अवधि भिन्न-भिन्न होती हैं। पी.इडुलिस इसका उदाहरण है।
बांस की कुछ भारतीय प्रजातियों में फूल आने की घटना निम्नानुसार भिन्न-भिन्न चक्रों में होती हैं।
इंडोकैलेमस विटियानस,
ओक्लेंड्र स्क्रीप्टोरिया,
ओक्लेंड्र.स्ट्रीडुला नामक बांस की प्रजातियां
एक वर्ष के अंतराल में फूल देती हैं।
ओक्लेंड्र ट्रावेंकोरिया प्रजाति के पौधे 7 वर्ष की अवधि में एक बार फूल देते हैं।
थामनोकैलेमस स्पैथीपऊलोरस प्रजाति के पौधे 16-17 वर्षों में फ़ूल देती है।
जबकि डेंड्रोकैलेमस स्ट्रीक्टस 25-65 वर्षों में फूल देते हैं।
भारत में बांस की कुछ अन्य प्रजातियां भी हैं जिनमें से थेमेनोकैलेमस फाल्कोनेरी, चिमोनोबम्बूसा फाल्काटा 28-30 वर्षों में, ऑक्सीथेनांतेरा एबीसीनिका, मेलोकान्ना बेसीफोरा, बम्बूसा अरूंदीनेसिया 30 वर्षों के अंतराल में, डेंड्रोकैलेमस हेमिल्टोनी 30-40 वर्षो में, बम्बूसा टूल्डा 30-60 वर्षों में, बम्बूसा पॉलीमोर्फा 35-60 वर्षों में और चिमोनोबम्बूसा जैंसरेंसिस 45-55 वर्षों के अंतराल में फूल देती हैं। थायरोस्टेचिस ओलीवेरी प्रजाति के बांस के पौधे 47-48 वर्ष में, बम्बूसा कोपेलेंडी और स्यूडोस्टेचियम पॉलीमार्फम 48 वर्ष में और फाइलोस्टेचिस बम्बूसोइड्स 60 वर्षों में (जापान में 120 वर्षों) में पुष्पित होते हैं।
इंडोकैलेमस विटियानस,
ओक्लेंड्र स्क्रीप्टोरिया,
ओक्लेंड्र.स्ट्रीडुला नामक बांस की प्रजातियां
एक वर्ष के अंतराल में फूल देती हैं।
ओक्लेंड्र ट्रावेंकोरिया प्रजाति के पौधे 7 वर्ष की अवधि में एक बार फूल देते हैं।
थामनोकैलेमस स्पैथीपऊलोरस प्रजाति के पौधे 16-17 वर्षों में फ़ूल देती है।
जबकि डेंड्रोकैलेमस स्ट्रीक्टस 25-65 वर्षों में फूल देते हैं।
भारत में बांस की कुछ अन्य प्रजातियां भी हैं जिनमें से थेमेनोकैलेमस फाल्कोनेरी, चिमोनोबम्बूसा फाल्काटा 28-30 वर्षों में, ऑक्सीथेनांतेरा एबीसीनिका, मेलोकान्ना बेसीफोरा, बम्बूसा अरूंदीनेसिया 30 वर्षों के अंतराल में, डेंड्रोकैलेमस हेमिल्टोनी 30-40 वर्षो में, बम्बूसा टूल्डा 30-60 वर्षों में, बम्बूसा पॉलीमोर्फा 35-60 वर्षों में और चिमोनोबम्बूसा जैंसरेंसिस 45-55 वर्षों के अंतराल में फूल देती हैं। थायरोस्टेचिस ओलीवेरी प्रजाति के बांस के पौधे 47-48 वर्ष में, बम्बूसा कोपेलेंडी और स्यूडोस्टेचियम पॉलीमार्फम 48 वर्ष में और फाइलोस्टेचिस बम्बूसोइड्स 60 वर्षों में (जापान में 120 वर्षों) में पुष्पित होते हैं।
हालांकि बांसों के पुष्पित होने के बारे में अनेकानेक अनुसंधान और चर्चाएं जारी हैं फिर भी यह विषय वर्णनातीत होने के साथ-साथ रहस्यपूर्ण बना हुआ है। बांस में फूल आने और इसकी मौत होने के बारे में कई सिध्दांत प्रतिपादित किए गए हैं। इसके बार में एक रोग विज्ञान सिध्दांत है जो बताता है कि नीमैटोडों, फफूंदियों, कीटाणुओं और जीवाणुओं जैसे सूक्ष्म जीवों के कारण बांस के विनाश के लिए फूल निकल आते हैं। इसके बारे में सावधिक सिध्दांत के अनुसार अलैंगिक विधि द्वारा बांस के पुनर्जनन हेतु इसकी परिपक्वता होने पर इसका पुष्पित होना शुरू हो जाता है। बांसों के पुष्पित होने के बारे में एक रूपांतरण सिध्दांत है जिसके अनुसार यह घटना अलैंगिक प्रजनन की एक विधि है। इस बारे में पोषण सिध्दांत का कहना है कि बांसों का पुष्पित होना और उसमें फल आना सामान्य रूप से एक प्रकार के शारीरिक व्यवधान के परिणामस्वरूप है जो मुख्य रूप से वानस्पतिक कोशिकाओं के अल्प-विकास के कारण और कार्बन नाइट्रोजन अनुपात में असंतुलन के कारण उत्पन्न होता है। बांसों के फूल के बारे में एक मानवीय सिध्दांत भी है जो बताता है कि बांसों को काटने और जलाने जैसी मानवीय व्यवहारों के कारण ये पुष्पित होते हैं।