गिरगिट का रंग बदलना क्यो और कैसे?
प्रस्तुति- ओम प्रकाश पाटीदार
प्रस्तुति- ओम प्रकाश पाटीदार
हमने अक्सर सुना होगा कि गिरगिट की तरह रंग मत बदलो। क्या तुमने कभी सोचा है कि रंग बदलने के पीछे गिरगिट का ही नाम क्यों लिया जाता है। क्या गिरगिट के भीतर रंगों का भण्डार होता है, जो जरूरत के अनुसार कपड़ों की तरह उनका इस्तेमाल करता है। जी हां, यह बिल्कुल सच है कि गिरगिट अपना रंग बदलता है। उसकी यह खूबी है कि अपने शत्रु को भांपते ही वह अपना रंग बदल लेता है, जिससे वे अपने दुश्मन की आंखों में धूल झोंकने में कामयाब हो जाता है। दरअसल इस प्राणी की त्वचा में एक विशेष गुण होता है। वह गुण होता है उसकी विशेष प्रकार की कोशिकाएं यानी सैल। टेम्परेचर के कम या ज्यादा होने पर उसकी त्वचा में उसका असर दिखाई देने लगता है। इसके शरीर से विशेष प्रकार के हार्मोन के निकलने से कोशिकाएं उत्तेजित होने लगती हैं।
गिरगिट की त्वचा में ऊपर से नीचे पीली, भूरी, काली और सफेद रंग की कोशिकाएं होती हैं। इंटरमेडिन, एसीटिलकोलिन व एड्रीनेलिन नाम के हार्मोन ही उन कोशिकाओं को उतेजित करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। माना जाता है कि पेड़ पर चढ़ने वाले गिरगिट ही अधिक रंग बदलते हैं। और तुम्हें जान कर हैरानी होगी कि वे पेड़-पौधों के वातावरण के अनुसार खुद को ढाल लेते हैं और उसी के अनुसार रंग बदलने में देर नहीं लगाते।
गिरगिट विपरीत लिंग को रिझाने और शिकार व शिकारी को धोखा देने के लिए अपना रंग बदल लेता है. वैज्ञानिक लंबे समय से जानना चाहते थे कि गिरगिट ये सब कैसे कर लेता है. कुछ वैज्ञानिकों ने दावा किया कि गिरगिट की त्वचा में खास तरह के वर्णक (पिगमेंट) होते हैं जो रंग बदलते हैं.
लेकिन अब जिनेवा यूनिवर्सिटी के जीव विज्ञानियों ने इस दावे के खारिज कर दिया. रिसर्चर मिषेल मिलिनकोविच के मुताबिक, "हम अचंभित हो गए. पहले ये सोचा जाता था कि गिरगिट वर्णक के सहारे रंग बदलता है. लेकिन असली मामला पूरी तरह अलग है और इसके पीछे शारीरिक प्रक्रिया है."
शोध के दौरान जिनेवा यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों को पता चला कि वयस्क पैंथर गिरगिट माहौल के हिसाब से पहले हरे से पीला या नारंगी और नीले से सफेद होता है. इसके बाद वो काला पड़ने लगता है.
रंग बदलने वाले ज्यादातर जीवों में मेलनिन नामका वर्णक होता है. यह मेलानोफोरस नामक कोशिकाओं में घटता बढ़ता रहता है. इसी वजह से त्वचा का रंग बदलता है.
प्रकाश के परावर्तन का खेल
गिरगिट के मामले में ऐसा नहीं होता. प्रयोग के दौरान जिनेवा यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों को पता चला कि गिरगिट की त्वचा में फोटोनिक क्रिस्टल नामक अतिसूक्ष्म क्रिस्टलों की एक परत होती है. ये नैनो साइज के क्रिस्टल होते हैं. क्रिस्टलों की ये परत पिगमेंट कोशिकाओं के नीचे होती है. यही परत प्रकाश के परावर्तन को प्रभावित करती है और गिरगिट का बदला हुआ रंग दिखाई पड़ता है.
मिषेल मिलिनकोविच इसे समझाते हैं, "जब गिरगिट शांत होता है तो क्रिस्टल एक सघन नेटवर्क की तरह जमा हो जाते हैं और प्रकाश में मौजूद नीले तरंगदैर्घ्य को परावर्तित करते हैं. इसके उलट जब वो जोश में होता है तो नैनो क्रिस्टलों की परत ढीली पड़ जाती है, इससे पीला और लाल रंग परावर्तित होता है."
वैज्ञानिकों के मुताबिक गिरगिट में नैनो क्रिस्टलों की एक और परत भी होती है. इसके क्रिस्टल पहली परत के मुकाबले ज्यादा बड़े होते हैं. बहुत तेज प्रकाश होने पर ये गिरगिट को गर्मी से बचाते हैं.
गिरगिट के अलावा मेंढकों, छिपकलियों और मकड़ियों की भी कुछ प्रजातियां रंग बदलती है. वैज्ञानिकों को लगता है कि गिरगिट के रंग बदलने की प्रक्रिया समझने के बाद अब इन जीवों को भी बेहतर ढंग से समझा जा सकेगा.