क्या इंसान खुद को गुदगुदी (Tickle)कर सकता है?
Om Prakash Patidar
जब भी हम बच्चों के साथ मस्ती करते हैं तो उन्हें हंसाने के लिए हम गुदगुदी करते हैं जिससे वो खिलखिलाकर हंसने लगते हैं। बच्चे ही नहीं बल्कि बड़ों को भी शरीर के ख़ास हिस्सों में गुदगुदी करने से हंसी निकल ही पड़ती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है की आखिर ऐसा क्या है जो गुदगुदी होती है और गुदगुदी करने पर क्यों हमें हंसी आती है। तो चलिए आपको बताते हैं।
आखिर गुदगुदी क्यों होती है और गुदगुदी से हंसी क्यों आती है?
कई बार हम अपनी जिंदगी जीने में इस कदर मशगूल हो जाते हैं कि हम अपना बचपना तक भूल जाते हैं. हम कैसे खिलखिला कर हंसा करते थे...कैसे हमारे पेट में हंसते-हंसते बल पड़ जाया करते थे. कैसे हम अपने दोस्तों और छोटे भाई-बहनों को गुदगुदी किया करते थे।
आखिर गुदगुदी क्यों होती है और गुदगुदी से हंसी क्यों आती है?
कई बार हम अपनी जिंदगी जीने में इस कदर मशगूल हो जाते हैं कि हम अपना बचपना तक भूल जाते हैं. हम कैसे खिलखिला कर हंसा करते थे...कैसे हमारे पेट में हंसते-हंसते बल पड़ जाया करते थे. कैसे हम अपने दोस्तों और छोटे भाई-बहनों को गुदगुदी किया करते थे।
हम समय बीतने के साथ-साथ बड़े तो होते गए मगर कभी इस बात पर गौर नहीं किया कि आखिर हमें गुदगुदी क्यों होती है, और वह भी शरीर के किन्हीं विशेष हिस्सों मे. आखिर किन वजहों से किसी के पेट पर छूने से गुदगुदी होती है मगर सिर पर छूने से कुछ नहीं होता है।
आखिर क्या है गुदगुदी के पीछे का साइंस?
साइंटिस्ट कहते हैं कि हंसते तो हम किसी चुटकुले या मजाक पर भी हैं, मगर गुदगुदी की बात कुछ और होती है। त्वचा की सबसे बाहरी परत को बाह्य त्वचा (Epidermis)कहते हैं. एपिडर्मिस कई नसों से स्वत: जुड़ा होता है. उकसाने की स्थिति में यह दिमाग के दो हिस्सों से जुड़ती हैं. एक जो छुअन का एनालिसिस करता है और दूसरा जो आनंददायी चीजों का रेगुलेशन करता है। इस प्रक्रिया में हॉर्मोन्स महत्वपूर्ण होते है। हमारे शरीर मे हमे गुदगुदी ऐसे स्थानों पर अधिक होती है जो हड्डी से कम-से-कम घिरा होता है (पेट और पैर के तलवे). साइंटिस्ट मानते हैं कि गुदगुदी खुद को सुरक्षित रखने की प्रक्रिया है. ऐसा करने से शरीर सिकुड़ता है और शरीर कम-से-कम बाहरी संपर्क में आता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार गुदगुदी करने से शरीर सिकुड़ता है और गुदगुदी शरीर के उन हिस्सों में ज्यादा होती है जहाँ कम से कम हड्डियां हों जैसे पेट और पैर के तलवे। गुदगुदी दो तरह की होती है-
एक निसमेसिस और दूसरी गार्गालेसिस।
निसमेसिस में शरीर पर जब हलके से स्पर्श किया जाये या किसी पतली चीज़ से सहलाया जाये तो उस जगह की त्वचा मस्तिष्क तक सन्देश भेजती हैं और इससे त्वचा पर हलकी-हलकी खुजली का अहसास होता है जबकि गार्गालेसिस में पेट, बगल या गले पर उंगलियों से छूने पर खिलखिलाहट वाली हंसी छूट पड़ती है।
क्या इंसान खुद को गुदगुदी कर सकता है?
यह एक सामान्य सवाल है जो अक्सर लोगों के मन में आता है. हम दूसरों को गुदगुदी करने के बाद खुद पर भी वो सारे ट्रिक इस्तेमाल करते हैं, लेकिन अफसोस कि हमें वैसा कुछ भी महसूस नहीं होता.
दरअसल, गुदगुदी सरप्राइज का मामला है और एक इंसान खुद को सरप्राइज नहीं कर सकता. हमारा दिमाग इस बात को पहले ही जान जाता है कि हम खुद को गुदगुदाने जा रहे हैं. हम क्या हरकतें करेंगे वगैरह-वगैरह।
वैज्ञानिकों के अनुसार गुदगुदी होने पर दिमाग का वह हिस्सा सक्रिय होता है जिससे व्यक्ति को दर्द का अनुभव होता है और इसी कारण गुदगुदी करने पर मस्तिष्क व्यक्ति को पहले ही सतर्क कर देता है। यही कारण है कि जब कोई व्यक्ति बेहद गुस्से में होता है उस समय उस व्यक्ति को गुदगुदी का एहसास कम होता है और उसे हंसी नहीं आती।
इसके विपरीत जब हम कुछ को गुदगुदी करते हैं तो हमें किसी भी प्रकार का भय नहीं रह जाता है और ऐसे में हमारा दिमाग के दूसरे हिस्सों को मिलने वाले संवेदात्मक संकेतों को कण्ट्रोल कर लेते है जिस कारण हमे खुद को गुदगुदी करने पर हंसी नहीं होती। हालाँकि गुदगुदी करने पर हंसी आना दिमागी परिस्थिति पर भी निर्भर होता है।
अगर आप इसके बावजूद खुद को गुदगुदाने की कोशिश करेंगे तो गुदगुदी के बजाय कुछ और ही होगा. हालांकि अपने ही हाथों में किसी पंख को लेकर स्किन पर फिराने से आप खुद को गुदगुदा सकते हैं।
फिर भी ये गुदगुदी उस गुदगुदी के कमतर ही होगी जो दूसरों द्वारा होती है, और ऐसा मुश्किल से ही होता है कि आप हंसते-हंसते लोटपोट हो जाएं।
फिर भी ये गुदगुदी उस गुदगुदी के कमतर ही होगी जो दूसरों द्वारा होती है, और ऐसा मुश्किल से ही होता है कि आप हंसते-हंसते लोटपोट हो जाएं।