सूरज उगते और डूबते हुए लाल क्यों दिखायी देता है?
लाल तरंगों की लंबाई अधिक होती है। यानी आप रंग को काफ़ी दूर से देख पाते हैं। इसीलिए यह रंग ट्रैफिक लाइटों में भी सबसे ज़्यादा उपयोग होता है। वहीं दूसरी तरफ़ रीले का सिद्धांत है कि जितनी ज़्यादा किसी रंग की लंबाई(wavelength) होती है, उतना ही कम वह बिखरता(scattering) है, यानी लाल रंग की लंबाई ज़्यादा होने के कारण वह सभी रंगों में से सबसे कम बिखरता है। सूरज डूबते और चढ़ते वक्त धरती के सबसे नज़दीक होता है या यों कहें कि क्षितिज के सबसे ऩज़दीक होता है। पर फिर भी वह आसमान में ही दिखता है। वह इसलिए क्योंकि सूरज की रोशनी कई बार आसमान में मौजूद कणों(molecules) और पानी की बूँदों से अपवर्तित होकर(refract) धरती पर आती है जिससे हमे सूरज की सटीक स्थिति का आभास नहीं होता। सूरज की रोशनी में कई रंग होते हैं,और हर रंग की लंबाई अलग-अलग होने के कारण जब वह किसी पानी की बूँद या हवा की सतहों से गुज़रते हैं तो वह अलग-अलग रंगों में बँट जाते हैं। अपवर्तन के समय नीला रंग सबसे ज़्यादा बिखर जाता है क्योंकि उसकी लंबाई(wavelength) कम होती है, इसलिए हमे आसमान नीला दिखता है। पर लाल रंग सबसे कम बिखरता है, इसलिए वह हमारी आँखों को दिखायी पड़ता है। इसी कारण से हमे सूरज लाल दिखायी देता है।
दूसरे शब्दों में कहे तो सूर्य की किरणे सफेद दिखायी देती है लेकिन उसमे सभी सात रंग होते है। सूर्यास्त और सुर्योदय के समय सूर्य किरणो को ज्यादा दूरी तय करनी होती है। पृथ्वी के वातावरण मे सूर्य किरणो के प्रवेश करने पर माध्यम के बदलाव स्वरूप प्रकाश किरणो का अपवर्तन होता है, साथ ही वातावरण मे उपस्थित धूली कणो से इन किरणो मे बिखराव भी होता है। जब सूर्य आकाश के मध्य की स्थिति से क्षितीज की ओर बढता है उसकी किरणो को ज्यादा दूरी तय करनी होती है और उसका रंग नीले से पीले और अंत मे लाल होते दिखायी देता है क्योंकि पहले कम तरंग दैधर्य की नीली किरणे बिखर जाती है और ज्यादा तरंग दैधर्य वाली लाल किरणे बच जाती है और हमे सूर्य लाल दिखायी देता है।
यदि आप पहाड़ पर जाये तब आपको यह प्रभाव कम दिखेगा क्योंकि वहां पर वातावरण पतला होता है।
Om Prakash Patidar
लाल तरंगों की लंबाई अधिक होती है। यानी आप रंग को काफ़ी दूर से देख पाते हैं। इसीलिए यह रंग ट्रैफिक लाइटों में भी सबसे ज़्यादा उपयोग होता है। वहीं दूसरी तरफ़ रीले का सिद्धांत है कि जितनी ज़्यादा किसी रंग की लंबाई(wavelength) होती है, उतना ही कम वह बिखरता(scattering) है, यानी लाल रंग की लंबाई ज़्यादा होने के कारण वह सभी रंगों में से सबसे कम बिखरता है। सूरज डूबते और चढ़ते वक्त धरती के सबसे नज़दीक होता है या यों कहें कि क्षितिज के सबसे ऩज़दीक होता है। पर फिर भी वह आसमान में ही दिखता है। वह इसलिए क्योंकि सूरज की रोशनी कई बार आसमान में मौजूद कणों(molecules) और पानी की बूँदों से अपवर्तित होकर(refract) धरती पर आती है जिससे हमे सूरज की सटीक स्थिति का आभास नहीं होता। सूरज की रोशनी में कई रंग होते हैं,और हर रंग की लंबाई अलग-अलग होने के कारण जब वह किसी पानी की बूँद या हवा की सतहों से गुज़रते हैं तो वह अलग-अलग रंगों में बँट जाते हैं। अपवर्तन के समय नीला रंग सबसे ज़्यादा बिखर जाता है क्योंकि उसकी लंबाई(wavelength) कम होती है, इसलिए हमे आसमान नीला दिखता है। पर लाल रंग सबसे कम बिखरता है, इसलिए वह हमारी आँखों को दिखायी पड़ता है। इसी कारण से हमे सूरज लाल दिखायी देता है।
दूसरे शब्दों में कहे तो सूर्य की किरणे सफेद दिखायी देती है लेकिन उसमे सभी सात रंग होते है। सूर्यास्त और सुर्योदय के समय सूर्य किरणो को ज्यादा दूरी तय करनी होती है। पृथ्वी के वातावरण मे सूर्य किरणो के प्रवेश करने पर माध्यम के बदलाव स्वरूप प्रकाश किरणो का अपवर्तन होता है, साथ ही वातावरण मे उपस्थित धूली कणो से इन किरणो मे बिखराव भी होता है। जब सूर्य आकाश के मध्य की स्थिति से क्षितीज की ओर बढता है उसकी किरणो को ज्यादा दूरी तय करनी होती है और उसका रंग नीले से पीले और अंत मे लाल होते दिखायी देता है क्योंकि पहले कम तरंग दैधर्य की नीली किरणे बिखर जाती है और ज्यादा तरंग दैधर्य वाली लाल किरणे बच जाती है और हमे सूर्य लाल दिखायी देता है।
यदि आप पहाड़ पर जाये तब आपको यह प्रभाव कम दिखेगा क्योंकि वहां पर वातावरण पतला होता है।