Why do we cover our ears in winter
Om Prakash Patidar
सर्दी के दिनों में जब हम घर से बाहर निकलते है तो हम में से किसी को ठंड कान में लगती है तो किसी को पैर या माथे पर. इंसान की त्वचा ठंड लगने पर अलग अलग ढंग से मस्तिष्क को चेतावनी देने लगती है. चेतावनियां मिलते ही दिमाग इंसान को जिंदा रखने के लिए जबरदस्त इंतजाम करने लगता है.
हमारी त्वचा में तापमान भांपने वाले सेंसर होते हैं. इन्हें 'हीट सेंसर' कहा जाता है. सेंसर इंसानों को गर्मी, सर्दी या सुहाने मौसम का अहसास कराते हैं. किसी के कान में सबसे ज्यादा हीट सेंसर होते हैं, किसी के हाथ या पैर में और किसी के सिर में. जहां हीट सेंसर ज्यादा होंगे, ठंड का ज्यादा अनुभव पहले वहीं होगा.
जब हम गर्मी लगती है-
गर्मी लगने पर भी सेंसर सक्रिय होते हैं. उनके सिग्नल तुरंत दिमाग तक जाते हैं और शरीर खुद को ठंडा रखने के लिए पसीना छोड़ने लगता है.
जब हम ठंड लगती है-
जब हीट सेंसरों के जरिए शरीर को चेतावनी मिलने लगती है कि ठंड ज्यादा है और शरीर इससे प्रभावित हो रहा है. तब ठंड लगने पर बदन कांपना शुरू हो जाता है. त्वचा के रोम रोम में छोटे छोटे उभरे दाने बनने लगते हैं.
ठंड लगना, रोंगटे(बाल) खड़े होना इनका क्या संबंध है?
"शरीर पर जो बाल होते हैं उनमें बहुत ही छोटी मांसपेशी होती है. यह उस जगह पर होती है जहां बाल हमारी त्वचा से जुड़ा रहता है. जब ठंड लगती है तो मांसपेशी सिकुड़ने लगती है और बाल खडे हो जाते है."
शरीर पर खूब बाल हों तो ठंड से कुदरती सुरक्षा मिलती है. जानवरों के शरीर में बालों का फर गर्माहट की एक परत बनाता है, जो हवा रोक लेता है.
इंसान के शरीर में ज्यादा बाल नहीं होते, लिहाजा बाल खड़े होने से एक छोटी सी फरनुमा परत बनने लगती है.
बहुत अधिक ठंड लगने पर "जब शरीर को पता चलता है कि ज्यादा गर्माहट की जरूरत है तो मांसपेशियां खिंचनी शुरू हो जाती हैं."
हमारा निचला जबड़ा ढीला पड़कर किटकिटाने लगता है. जबड़ा सिर के साथ सिर्फ दो बिंदुओं पर जुड़ा रहता है. ठंड में शरीर ज्यादा से ज्यादा ऊर्जा बचाते हुए खून के बहाव को तेज करने की कोशिश करता है. जबड़े या हार पैरों के कांपने से खून का बहाव तेज होता है और शरीर गर्म होने लगता है
रोंगटे खड़े होना जीवो द्वारा अपनी जान बचाने की एक कला भी है।