गिलेन-बारे सिंड्रोम (Guillain-Barré Syndrome) क्या है?


ग़ीयान-बारे संलक्षण (गिलैन-बारे सिंड्रोम) / Guillain-Barré Syndrome क्या है?

Om Prakash Patidar

गिलैन बारे (गीयान-बारे) संलक्षण ऐसी विकृति है जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली परिधीय तंत्रिका तंत्र के कुछ हिस्सों पर हमला करती है। इस विकृति के लक्षणों में कम या ज्यादा कमजोरी या पैरों में झुनझुनी शामिल है. यह कमजोरी प्राय: हाथों और शरीर के ऊपरी हिस्सों में फैलती जाती है।
इन लक्षणों की तीव्रता बढ़ती जाती है और बढ़ते-बढ़ते स्थिति यह आ जाती है कि व्यक्ति अपनी पेशियों का बिलकुल भी उपयोग नहीं कर पाता और उसे एक तरह से पूरी तरह फालिज मार जाता है। और चिकित्सकीय दृष्टि से उसकी हालत गंभीर हो जाती है। मरीज को सांस लेने में सहूलियत देने के लिए उसे संवातक पर रखा जाता है।
बहरहाल, अधिकतर लोग गंभीर से गंभीर गिलैन- बारे संलक्षण से उबर जाते हैं, हालांकि कुछ लोगों में थोड़ी-बहुत अशक्तता बनी रह जाती है।
गिलैन-बारे संलक्षण विरलों में ही दिखाई देते हैं। आमतौर पर ये संलक्षण मरीज में श्वसन या जठरांत्रीय विषाणु संक्रमण के लक्षण दिखने के कुछ दिनों या हफ्तों बाद प्रकट होते हैं। कभी-कभार शल्यक्रिया या टीका लगाने से भी इसके लक्षण उभर जाते हैं। यह विकृति कुछ घंटों या कुछ दिनों में विकसित हो जाती है या इसके विकसित होने में तीन-चार हफ्ते भी लग सकते हैं। कुछ लोग गिलैन-बारे संलक्षण के शिकार क्यों होते हैं जबकि दूसरे नहीं होते, इसका कारण अभी तक ज्ञात नहीं है। वैज्ञानिकों को इतना अवश्य पता है कि शरीर की रोग प्रतिरक्षा प्रणाली कभी-कभी शरीर पर ही हमला करने लगती है।
ग्लेन-बारे संलक्षण का कोई ज्ञात उपचार नहीं है। लेकिन उपचार से ज्यदातर मरीजों की बीमारी की गंभीरता कम की जा सकती है और उनका स्वास्थ्यलाभ तेज किया जा सकता है। इसकी वजह से पैदा होने वाली जटिलताओं का उपचार कई तरह से किया जाता है। फिलहाल प्लैज्मा फेरेसिस और इन्यूनोग्लोबुलिन की बड़ी खुराकें दी जाती हैं।
वैज्ञानिक प्ररिक्षा प्रणाली की कार्यविधि समझने और यह जानने के प्रयास कर रहे हैं कि वे कोशिकाएं कौन-सी हैं जो तंत्रिका तंत्र पर हमला करती हैं।
स्रोत: नेशनल इंस्टीट्यूट आफ न्यूरोलाजिकल डिस्आर्डर्स ऐंड स्ट्रोक।

दैनिक भास्कर की नजर से
इंदौर. 22 साल की एमबीए छात्रा इशिता पुरोहित। 27 दिन पहले तक खिलखिलाती जिंदगी थी उसकी। तभी  अजीबोगरीब बीमारी गुलियन बेरी सिंड्रोम (जीबीएस) ने चपेट में ले लिया। हाथ-पैर में लकवा मार गया। दिल और आंखों में इन्फेक्शन हुआ। तब से वेंटीलेटर पर है। माता-पिता उसे देख बार-बार रोते हैं। लेकिन इशिता की हमउम्र एक लड़की है, जो उसका हौसला बढ़ाने रोज अस्पताल जाती है। वह इशिता को देखती है। उससे बात करती है। इस उम्मीद के साथ कि वह सुन रही होगी। दरअसल वह भी इसी बीमारी से पीड़ित थी। 56 दिन वेंटीलेटर पर रही। बीमारी को मात दी।  इशिता इंद्रलोक कॉलोनी (केसरबाग) निवासी जगदीश पुरोहित की बेटी है। कुछ दिन पहले तक सब कुछ ठीक था। रोज की तरह इशिता पानी लेने फ्लैट से नीचे आई। थकान लगी तो सोने चली गई। उठी तो गिर गई। चल नहीं पाई। परिजन अस्पताल लेकर दौड़े। डॉक्टर ने बताया कि पूरे शरीर को लकवा हो गया। इस बीमारी को गुलियन बेरी सिंड्रोम (जीबीएस) कहते हैं। तब से अस्पताल में है। उसकी टूटती उम्मीदों को 22 साल की ही हर्षिता जोशी जगा रही है।  
मैंने झेला है, मुझे है उसके दर्द का  अहसास 
हर्षिता एमई की छात्रा है। उसने बताया कि दो साल पहले उसे भी यही  बीमारी हुई थी। करीब दो महीने वेंटीलेटर पर रही। मेरे लिए यह कष्टदायक अनुभव था। इसलिए मैं इशिता के दर्द का अहसास समझ सकती हूं। मेरा मानना है एक मरीज दूसरे को मोटिवेट करें तो उससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता। 

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