क्या वाकई चमगादड़ अंधा होता है? यदि हा तो उनकी आंखें क्यो होती है?
लोगों का मानना है कि चमगादड़ अंधा होता है पर चमगादड़ की कोई भी जाति अंधी नहीं होती. कोई भी व्यक्ति पूरे अंधेरे में देख नहीं सकता. चमगादड़ों के साथ भी ऐसा है. चमगादड़ के कान बड़े ही संवेदनशील होते हैं. कान की वजह से चमगादड़ों को पता चल जाता है कि कौन सी वास्तु कहाँ है और वे उनसे बचकर निकल जाते हैं.
चमगादड़ रात्रि में भोजन करते हैं। वे अँधेरे में भी सुगमता और तेजी से उड़ते रहते हैं। बहुतों में इस प्रकार की आश्चर्यजनक शक्ति होती है कि वे अँधेरे में किसी अवरोध से टकरा नहीं पाते। गोधूली या प्रात:बेला में निकलनेवाले चमगादड़ों में दृष्टि अवश्य काम करती है, किंतु चमगादड़ की कुछ जातियाँ ऐसी हैं जो पथप्रदर्शन के लिये दृष्टिशक्ति पर बहुत कम निर्भर रहती हैं। चमगादड़ की आँखों पर पट्टी बाँध देने पर भी उसके उड़ने या अन्य क्रियाओं में अंतर नहीं पड़ता। हाल के शोधों से पता चला है कि चमगादड़ प्रतिध्वनि यंत्र (echo apparatus) का प्रयोग करते हैं। उनकी अपनी एक प्रकार की 'राडार' (radar) प्रणाली होती है। कान इस यंत्ररचना का प्रमुख अंग है। चमगादड़ उड़ने के पूर्व और उड़ते समय अपनेमुख या नासाद्वार से एक प्रकार की चीखतनी तीव्र गति से करता है कि वह मनुष्य की साधारण श्रवण शक्ति के बाहर होती है। यह चीख हवा में ध्वनितरंगें उत्पन्न करती है। जब ये ध्वनितरंगे किसी अवरोध से टकराती हैं, तब वे परावर्तित होकर चमगादड़ तक पहुँच जाती हैं और इन्हें वह तत्काल ग्रहण कर लेता है। इस प्रकार की प्रतिध्वनि से चमगादड़ किसी अवरोध की दूरी तथा स्थिति का सही सही पता लगा लेता है। चमगादड़ को प्रतिध्वनि का बोध किसी एक ज्ञानेंद्रिय द्वारा नहीं, बल्कि कई ज्ञानेंद्रियों की मिली जुली सहायता से होता है। इन इंद्रियों में श्रवण ज्ञानेंद्रिय अधिक प्रमुख है। कीटभक्षी चमगादड़ अधिक संवेदी और तीक्ष्ण होते हैं।
चमगादड़ रात्रि में भोजन करते हैं। वे अँधेरे में भी सुगमता और तेजी से उड़ते रहते हैं। बहुतों में इस प्रकार की आश्चर्यजनक शक्ति होती है कि वे अँधेरे में किसी अवरोध से टकरा नहीं पाते। गोधूली या प्रात:बेला में निकलनेवाले चमगादड़ों में दृष्टि अवश्य काम करती है, किंतु चमगादड़ की कुछ जातियाँ ऐसी हैं जो पथप्रदर्शन के लिये दृष्टिशक्ति पर बहुत कम निर्भर रहती हैं। चमगादड़ की आँखों पर पट्टी बाँध देने पर भी उसके उड़ने या अन्य क्रियाओं में अंतर नहीं पड़ता। हाल के शोधों से पता चला है कि चमगादड़ प्रतिध्वनि यंत्र (echo apparatus) का प्रयोग करते हैं। उनकी अपनी एक प्रकार की 'राडार' (radar) प्रणाली होती है। कान इस यंत्ररचना का प्रमुख अंग है। चमगादड़ उड़ने के पूर्व और उड़ते समय अपनेमुख या नासाद्वार से एक प्रकार की चीखतनी तीव्र गति से करता है कि वह मनुष्य की साधारण श्रवण शक्ति के बाहर होती है। यह चीख हवा में ध्वनितरंगें उत्पन्न करती है। जब ये ध्वनितरंगे किसी अवरोध से टकराती हैं, तब वे परावर्तित होकर चमगादड़ तक पहुँच जाती हैं और इन्हें वह तत्काल ग्रहण कर लेता है। इस प्रकार की प्रतिध्वनि से चमगादड़ किसी अवरोध की दूरी तथा स्थिति का सही सही पता लगा लेता है। चमगादड़ को प्रतिध्वनि का बोध किसी एक ज्ञानेंद्रिय द्वारा नहीं, बल्कि कई ज्ञानेंद्रियों की मिली जुली सहायता से होता है। इन इंद्रियों में श्रवण ज्ञानेंद्रिय अधिक प्रमुख है। कीटभक्षी चमगादड़ अधिक संवेदी और तीक्ष्ण होते हैं।