पॉलीग्राफ(झूठ पकड़ने का टेस्ट) परीक्षण क्या है?

पॉलीग्राफ टेस्ट क्या है?
Om Prakash Patidar


झूठ बोले कौवा काटे, काले कौवे से डरियो... 'बॉबी' फिल्म का यह गीत तो आपने सुना होगा लेकिन क्या झूठ पकड़ना इतना आसान है या ऐसी कोई युक्ति या मशीन है जो झूठ पकड़ सकती है?
हम अक्सर न्यूज़ चैनल या समाचार पत्रों आदि मे पालीग्राफी टेस्ट के बारे मे देखते या पढ़ते रहते हैं हमारे बीच ऐसे बहुत से लोग हैं जो यह समझते हैं कि ये झूठ पकड़ने वाली मशीन है, लेकिन वास्तविकता मे ऐसा नही है।
पॉलीग्राफ एक प्रकार का सत्य परीक्षण होता है। इसका प्रयोग आपराधिक मामलों की जांच हेतु किया जाता है।
पॉलीग्राफ का अन्वेषण अमेरिका मे कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय के मेडिकल छात्र 1921 मे जॉन ऑगस्टस लार्सन और बर्कले पुलिस विभाग ने कैलिफ़ोर्निया मे की थी।
पॉलीग्राफ की कार्यविधि – इसमे विभिन्न शारीरिक क्रियाओं जैसे रक्तचाप, श्वसन दर, त्वचा की चालकता को क्रमशः स्फिग्मोमैनोमीटर, न्युमोग्राफ और इलेक्ट्रोड से नापा जाता है। सबसे पहले जांचकर्ता सामान्य प्रश्न जिसका उत्तर आमतौर पर आदमी सच ही देता है, को पूछकर उपरोक्त शारीरिक क्रियाओं को देखता है और फिर मुद्दे के सवाल करता है और पुनः यंत्रों के माध्यम से उपरोक्त क्रियाओं को देखता है। आमतौर पर झूठ बोलने पर इन शारीरिक क्रियाओं की तीव्रता मे वृद्धि दर्ज की जाती है, यही इस पॉलीग्राफ टेस्ट का मूल आधार है।
क्या वास्तव में यह सभी प्रकार के झूठ पकड़ लेती है? –
पॉलीग्राफ परीक्षण जिन मनोवैज्ञानिक क्रियाओं पर आधारित है उनमे मे सच बोलते समय भी मनोवैज्ञानिक कारणों से वृद्धि हो सकती है क्योंकि उस दौरान व्यक्ति पर काफी मनोवैज्ञानिक दवाब होता है। इसका एक दूसरा पहलू ये भी है कि पेशेवर मुजरिम नियमित अभ्यास और दृढ इरादों के बल पर इस प्रकार के टेस्ट से आराम से बच सकते हैं। इसके साथ साथ प्रश्नकर्ता भी इसमे बहुत मायने रखता है कि वो किस तरह और किन सवालों को पूछ रहा है। प्रश्नकर्ता की मानसिकता भी यहाँ बहुत मायने रखती है। एक या दो साल पहले आई फिल्म तलवार जो नुपुर तलवार हत्याकांड पर बनी थी, मे इसे बखूबी दिखाया गया है क़िस प्रकार पॉलीग्राफ टेस्ट गलत हो सकता है।
इसलिए दुनिया मे किसी भी आधुनिक न्याय प्रणाली मे इसे बहुत विश्वसनीय नहीं समझा जाता है। अतः इस प्रकार का टेस्ट अपराधिक जाँच मे सहायक तो हो सकता है पर जाँच और उसके नतीजे सिर्फ इसी टेस्ट पर आधारित नहीं हो सकते। अपने देश के कई हाई प्रोफाइल मामलों में इस टेस्ट का इस्तेमाल किया गया है और इसकी मदद से सुबूत जुटाएं गये हैं।

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