बियर(Beer) की बोतल का रंग हरा व भूरा ही क्यों होता है?
बियर (Beer)क्या है?
बियर संसार का सबसे पुराना और सर्वाधिक व्यापक रूप से खुलकर सेवन किया जाने वाला मादक पेय है। सभी पेयों के बाद यह चाय और जल के बाद तीसरा सर्वाधिक लोकप्रिय पेय है। क्योंकि बियर अधिकतर जौ के किण्वन (फ़र्मेन्टेशन) से बनती है। जौ के अलावा बियर बनाने के लिए गेहू, मक्का और चावल का भी व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
बियर की बोतल का रंग हरा व भूरा ही क्यों होता है?
इसके पीछे क्या वैज्ञानिक कारण है?
आप अक्सर बियर की बोतल देखते होंगे पर क्या आपने शायद ही एक बात नोट की होगी कि बियर की बोतल का रंग हरा व भूरा ही क्यों होता है कोई ओर रंग क्यों नहीं होता। आज हम आपको बताते हैं कि बियर की बोतल का रंग हरा व भूरा ही क्यों होता है? कोई ओर क्यों नहीं होता है?
दरअसल पहले बियर की बोतल का रंग सफेद व पारदर्शी होता था लेकिन सुर्य की रोशनी में आते ही उसमें से गंध आने लगती थी। क्योंकि सफेद रंग सुर्य के प्रकाश को अवशोषित कर लेती थी। इसके पीछे एक बड़ा कारण है। पहले बीयर की कांच की पारदर्शी बोतलों में सर्व की जाती थी लेकिन फिर इसे भूरे रंग की बोतलों में परोसा जाने लगा।
जानिए क्या कारण है इसके पीछे-
पहले पारदर्शी बोतलों में आती थी बीयर
बीयर दुनिया की सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली ड्रिंक्स में से एक है। ये ड्रिंक पहले के समय में पारदर्शी कांच की बोतलों में ही आती थी लेकिन कुछ वक्त बाद ये देखा जाने लगा कि सूर्य की किरणों में आकर बीयर रिएक्ट कर रही है। बीयर में मौजूद एसिड जब सूर्य की अल्ट्रा वॉयलेट किरणों के संपर्क में आया, तो रिएक्शन होने लगा। इससे बीयर में एक अजीब गंध आ गई और उसका स्वाद भी खराब होने लगा।
बियर की सूर्य के प्रकाश के साथ होने वाली अभिक्रिया को रोकने के लिए चुनी गईं भूर रंग की बोतलें।
इस कारण से बीयर को दूसरे रंग की बोतल में डालना जरूरी हो गया। बीयर को रखने के लिए भूरे रंग की बोतल का चयन किया गया। इस रंग की बोतल पर अल्ट्रा वॉयलेट किरणों का असर नहीं होता था। इसलिए ये तय किया गया कि बोतलों को हरे रंग की बोतल में सर्व किया जाएगा। हरे रंग की बोतल के पीछे कारण है भूरे रंग की बोतलों की कमी। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भूरे रंग की बोतलों की कमी हो गई, इसलिए कंपनियों को कोई दूसरा रंग ढूंढना था।
दूसरे विश्व युद्ध के चलते आईं हरी बोतलें
कंपनियों को ऐसा रंग तलाशना था जिसमें सूर्य की किरणों से बीयर को नुकसान न हो। भूरा रंग काफी गहरा होता है और वो हानिकारक किरणों को ब्लॉक कर देता है, जिससे बीयर अधिक समय के लिए फ्रेश रहती है। दूसरे विश्न युद्ध के दौरान जब भूरे रंग की बोतलों की उपलब्धता में कमी आयी तो बाद में हरा रंग तय किया गया। तभी से बीयर या को हरे, या भूरे रंग की बोतलों उपलब्ध करवाई जाती है।
दूसरे विश्न युद्ध के दौरान जब भूरे रंग की बोतलों की उपलब्धता में कमी आयी ये बात अजीब लग रही है।
दूसरे युद्ध का भूरी बोतल से क्या सम्बन्ध है?
बात थोड़ी अटपटी लग रही है।
आपके मन मे ये प्रश्न जरूर आ रहा होगा।
वास्तव में रंगीन काचों के निर्माण के लिए विभिन्न प्रकार के वर्णकों को काच-मिश्रण में डाला जाता है। कांच में अलग अलग रंग देने के लिए कई पदार्थ अलग अलग मात्रा में मिलाएं जाते है जैसे-
दूसरे विश्न युद्ध के दौरान जब भूरे रंग की बोतलों की उपलब्धता में कमी आयी ये बात अजीब लग रही है।
दूसरे युद्ध का भूरी बोतल से क्या सम्बन्ध है?
बात थोड़ी अटपटी लग रही है।
आपके मन मे ये प्रश्न जरूर आ रहा होगा।
वास्तव में रंगीन काचों के निर्माण के लिए विभिन्न प्रकार के वर्णकों को काच-मिश्रण में डाला जाता है। कांच में अलग अलग रंग देने के लिए कई पदार्थ अलग अलग मात्रा में मिलाएं जाते है जैसे-
पीला -- कैडिमियम सल्फ़ाइड + गंधक
भूरा (amber) -- कार्बन + गंधक
हरा -- क्रोमियम आक्साइड
नीला -- कोबाल्ट आक्साइड
उपल—क्रायोलाइट
आसमानी -- क्यूप्रिक आक्साइड
लाल -- स्वर्ण क्लोराइड
लाल -- सिलीनियम
काच निर्माण के लिए पिसे कच्चे पदार्थों को तौलकर खूब मिलाया जाता है और तदुपरांत उन्हें भट्ठी में रखकर द्रवित किया जाता है, जिससे रंगीन कांच प्राप्त होता है।
जैसा कि भूरे रंग का कांच कार्बन और सल्फर को कांच के मिश्रण में मिलाकर बनाया जाता है,
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सल्फर का उपयोग बहुतायत में विस्फोटक पदार्थ, गोला-बारूद बनाने में किया जाता था, इस कारण सल्फर की कमी के कारण दूसरे विश्न युद्ध के दौरान जब भूरे रंग की बोतलों की उपलब्धता में कमी आयी थी।