बांझपन (Infertility) क्या है?

बाँझपन क्या होता हैं? और इसके क्या-क्या कारण होते हैं
Om Prakash Patidar

अपने घर-आंगन में एक नन्हे-मुन्ने की किलकारी सुनने की चाह ज्यादातर शादी-शुदा कपल्स को होती है। कभी-कभी सेहत से जुड़ी किसी समस्या की वजह से यह चाह एक सपना लगने लगती है। हालांकि वक्त पर सही इलाज हो तो ज्यादातर मामलों में यह चाहत पूरी हो सकती है। 
कौन-सी वजहें इस सपने की राह में रोड़े अटकाती हैं? और उनका इलाज क्या हैं?

इनफर्टिलिटी का मतलब है बच्चा पैदा करने की क्षमता न होना। इनफर्टिलिटी महिला और पुरुष, दोनों में हो सकती है। आमतौर पर महिलाओं में 20 से 35 साल की उम्र को रिप्रोडक्टिव एज यानी प्रजनन की उम्र माना जाता है। इसमें भी 23 से 28 साल की उम्र को गर्भधारण के लिहाज से बेहतरीन माना जाता है। 35 साल की उम्र के बाद गर्भधारण करने पर कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं, मसलन बच्चे का वजन कम होना, बच्चे में जन्मजात बीमारी होना, जल्दी डिलिवरी होना आदि। शादी के एक-डेढ़ साल तक किसी गर्भनिरोधक का इस्तेमाल न करने के बावजूद अगर महिला गर्भधारण नहीं कर पाती है तो उसे इनफर्टिलिटी कहा जाता है। अगर संतान जन्मजात वजहों से नहीं हो सकती तो उसे स्टरलिटी कहा जाता है। इसमें प्रमुख हैं : महिला में योनिद्वार या बच्चेदानी का न होना और पुरुष में स्पर्म्स का नहीं बनना। इनका इलाज मुमकिन नहीं है। दूसरी अवस्था, वह है जिसमें इलाज के बाद गर्भधारण हो सकता है। यह अवस्था भी दो तरह की होती है : 

1. प्राइमरी इनफर्टिलिटी: जिसमें महिला ने कभी गर्भधारण न किया हो। 
2. सेकेंडरी इनफर्टिलिटी: जिसमें महिला ने गर्भधारण किया लेकिन अबॉर्शन हो गया। 

बच्चा न होने की वजह मोटे तौर पर 30 फीसदी मामलों में महिला में कमी, 30 फीसदी मामलों में पुरुष में कमी और 40 फीसदी मामलों में दोनों में कमी बच्चा न होने की वजह बनती है। 

महिलाओं में समस्याएं 
- फैलोपियन ट्यूब का बंद होना 
- यूटरस संबंधी समस्या होना मसलन गर्भाशय छोटा होना, इसमें गांठ, रसौली/कैंसर या टीबी होना 
- एग का नहीं बनना या फर्टाइल न होना 
- पीसीओडी (पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम) 
- ल्यूकोरिया, डायबीटीज, अनीमिया, मोटापा आदि 

पुरुषों में समस्याएं 
- स्पर्म कम होना (आमतौर पर पुरुष में 15 मिलियन/मिली स्पर्म्स सामान्य माने जाते हैं) 
- स्पर्म की क्वॉलिटी खराब होना 
- इजेकुलेट न होना 
- सिफलिस या गनोरिया जैसी बीमारी होना 

कुछ और वजहें 
करीब 10 फीसदी मामलों में इनफर्टिलिटी की वजह पता नहीं चल पाती। हालांकि देर से शादी, देर रात या पूरी रात काम करना, ज्यादा स्मोकिंग या ड्रिंक करना, बेहद तनाव में रहना, मोटापा जैसी लाइफस्टाइल से जुड़ी वजहें अक्सर इसके पीछे होती हैं। कई बार कामशीतलता (फ्रिजिडिटी) या अधिक कामुकता (निम्पोमैनिया) जैसे मनोविकार भी इनफर्टिलिटी की वजह बनते हैं। 

जांच/इलाज की जरूरत कब 
- महिला की उम्र 18 से 25 साल हो और वह दो साल के सामान्य शारीरिक संबंधों के बाद भी गर्भधारण नहीं कर पाए। 
- महिला की उम्र 25 से 35 साल हो और वह एक साल के सामान्य शारीरिक संबंधों के बाद भी गर्भधारण नहीं कर पाए। 
- महिला की उम्र 35 साल से ज्यादा हो और वह 6 महीने के सामान्य शारीरिक संबंधों के बाद भी गर्भधारण नहीं कर पाए। 

जांच और इलाज 

महिलाओं के लिए 
- ब्लड और हॉर्मोन टेस्ट: महिलाओं के लिए शुरुआती जांच में ब्लड टेस्ट और हॉर्मोन टेस्ट कराया जाता है। ब्लड टेस्ट से एनीमिया चेक किया जाता है। हॉर्मोन प्रोफाइल टेस्ट पीरियड्स के दूसरे दिन कराया जाता है। इसमें फीमेल हॉर्मोंस एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन की जांच की जाती है कि ये सही मात्रा में हैं या नहीं। अगर गड़बड़ी लगती है तो दवा दी जाती हैं। 

- HSG टेस्ट: अगर हॉर्मोन टेस्ट ठीक होता है तो एचएसजी टेस्ट करवाते हैं। यह टेस्ट पीरियड्स खत्म होने के दो दिन बाद होता है। इसके जरिए यूटरस कैविटी व मेंबरेन और फैलोपियन ट्यूब्स की जांच की जाती है। फैलोपियन ट्यूब्स में डाई डालकर देखते हैं कि उनमें ब्लॉकेज तो नहीं हैं। अगर ट्यूब बंद है तो लेप्रोस्कोपिक ट्यूबल कोनैलाइजेशन करते हैं। इसमें करीब आधे घंटे का वक्त लगता है और एक दिन महिला को अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता है। 

- फॉलिक्यूलर मॉनिटरिंग: अल्ट्रासाउंड कर देखा जाता है कि एग बन रहे हैं या नहीं और अगर एग बन रहे हैं तो वे फर्टाइल कब होते हैं। अगर एग नहीं बन रहे तो हॉर्मोन की दवा देकर एग प्रड्यूस किए जाते हैं। फिर अल्ट्रासाउंड करके देखते हैं कि एग फर्टाइल कब होता है। एग फर्टाइल होने के बाद के 12 से 24 घंटे गर्भ धारण के लिहाज से सबसे कारगर होते हैं। 

- IUI (इन्ट्रायूट्राइन इनसेमिनेशन) : अगर नेचरली गर्भधारण नहीं हो पा रहा तो स्पर्म्स को साफ कर आर्टिफिशल तरीके से यूटरस में सीधा डाला जाता है। जिन पुरुषों में इजेक्शन नहीं होता या स्पर्म्स की क्वॉलिटी खराब होती है या महिला को सर्विक्स संबंधी समस्या होती है, उनमें इस तरीके का इस्तेमाल किया जाता है। आजकल लेटेस्ट तकनीक आईवीएफ आईसीएसआई इस्तेमाल की जाने लगी है, जिसमें स्पर्म को जबरन एग के साथ मिलाते हैं। इसमें 70 फीसदी तक कामयाबी की गुंजाइश होती है। 

पुरुषों के लिए 
- सीमेन टेस्ट : सीमेन अनालिसिस टेस्ट में स्पर्म्स की क्वॉलिटी देखी जाती है। - VDRL या वासरमैन टेस्ट : गनोरिया और सिफलिस का पता लगाने के लिए यह टेस्ट होता है। - LH/FSH टेस्ट : इस टेस्ट से सेक्स हॉर्मोन टेस्टोस्टेरॉन की जांच की जाती है। 

1 टिप्पणियाँ

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