Nilkanth (Indian Roller Bird) symbolizes Indian culture, environment, ecology
भारतीय सनातन संस्कृति में प्रकृति, पर्यावरण, नदी, पशु,पक्षी सभी का संरक्षण के उद्देश्य का साथ हर परंपरा और त्योहार पारिस्थितिकी के इन घटको के बिना अधूरा है। जैसे दशहरे के पर्व की शरुआत नीलकंठ पक्षी के दर्शन से होती है। आइये नीलकंठ पर चर्चा कर लेते है।
Om Prakash Patidar
भारतीय सनातन संस्कृति में प्रकृति, पर्यावरण, नदी, पशु,पक्षी सभी का संरक्षण के उद्देश्य का साथ हर परंपरा और त्योहार पारिस्थितिकी के इन घटको के बिना अधूरा है। जैसे दशहरे के पर्व की शरुआत नीलकंठ पक्षी के दर्शन से होती है। आइये नीलकंठ पर चर्चा कर लेते है।
नीलकंठ (Indian Roller Bird)-
नीलकंठ (Coracias benghalensis), जिसे इंडियन रोलर बर्ड या ब्लू जे कहते थे, एक भारतीय पक्षी है। यह उष्णकटिबन्धीय दक्षिणी एशिया में ईराक से थाइलैंड तक पाया जाता है। इसका आकार मैना के बराबर होता है। इसकी चोंच भारी होती है, वक्षस्थल लाल भूरा, उदर तथा पुच्छ का अधोतल नीला होता है। पंख पर गहरे और धूमिल नीले रंग के भाग उड़ान के समय चमकीली पट्टियों के रूप मे दिखाई पड़ते हैं। नीलकंठ पक्षी का कंठ नीला नहीं बादामी रंग का होता है। सर के ऊपर का हिस्सा, पंख और पूंछ का रंग ज़रूर नीला होता है।
यह अक्सर खेतों में, बिजली के तारों पर बैठा दिख जाता है। खेतों में उड़ने और मिलने वाले कीटों, टिड्डों और झींगुरों को यह बड़े मजे से खाता है। इस तरह से ये भारतीय किसानों का सच्चा मित्र है। लेकिन यह कृषक मित्र पक्षी भारतीय किसानों द्वारा कीटनाशकों के प्रयोग के कारण आज खतरे में है। पहले ये खेतों में आसानी से दिख जाते थे, लेकिन दिनों दिन इनकी संख्या में गिरावट हुई है।
दशहरे पर नीलकंठ के दर्शन को शुभ क्यो माना जाता है?
सनातन धर्म मे नीलकंठ के दर्शन को शुभ माना जाता है, क्योकि भगवान शिव को भी नीलकंठ कहा जाता है। इसी प्रतीकात्मक रूप के कारण नीलकंठ के दर्शन का धार्मिक महत्व है।
क्या सिर्फ इसे देखने को महत्वपूर्ण माने या इसके संरक्षण के प्रयास को महत्वपूर्ण माने अब आज हालात ऐसे हैं कि नीलकंठ अब तलाशने के बावजूद भी नहीं दिख रहें हैं।
दशहरा और समृद्धि-कृषि और पर्यावरण
दशहरे पर नीलकंठ के दर्शन को शुभ माना गया है, कृषि और पर्यावरण की दृष्टि से देखे तो मध्यभारत में दशहरे के समय रबी की फसल की बोनी हेतु खेतो में सिंचाई का समय होता है इस दौरान बड़ी संख्या में फसल को नुकसान पहुचाने वाले कीटो के अंडों से उन कीटो के प्यूपा निकलते है। इस दौरान ये नीलकंठ इन हानिकारक किटो के प्यूपा को खा जाते है। जो किसान को समृद्ध बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होते है।
क्यो दुर्लभ हो रहे हैं पक्षी के दर्शन?
इस पक्षी का नाम, शारीरिक रंग के नीला होने के कारण नीलकंठ पड़ा है। यह पक्षी हमारी संस्कृति में इतना ज्यादा रचा बसा है कि इसे भारत के चार राज्यों में बिहार, कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश और ओडिशा में राज्य पक्षी घोषित किया गया है।
कीटनाशक के प्रयोग का दुष्प्रभाव इसकी संख्या में कमी का प्रमुख कारण-
यह एकांतप्रिय पक्षी किसानों की फसलों के कीड़ों को पलक झपकते ही अपना आहार बना लेता है। खेतों के कीटों, और झींगरों को यह पक्षी बड़े ही मजे से खाता है। इसलिए इसे भारतीय किसानों का सच्चा मित्र भी कहा जाता है। यह कृषक मित्र पक्षी किसानों द्वारा कीटनाशकों के प्रयोग के कारण आज खतरे में है। किसान अधिक उपज पाने के लिए फसलों में अधिक कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल करते हैं। खेतों में कीटनाशक दवाओं का अंधाधुंध प्रयोग नीलकंठ पक्षी के लिए जानलेवा साबित हो रहा है।