वायुमंडल में ओजोन छिद्र (Ozone Hole) धुर्वीय क्षेत्र में ही क्यों हुआ, जबकि इसके कारक तो पृथ्वी के सभी भागों में पाए जाते हैं?

वायुमंडल में ओजोन छिद्र (Ozone Hole) धुर्वीय क्षेत्र में ही क्यों हुआ?
Om Prakash Patidar
Ozone परत में ध्रुवीय क्षेत्र में  हुआ इसे जानने के पहले आइये जानते है कि आखिर ये ओजोन परत क्या है? और इसमें छिद्र कैसे हुआ?

ओज़ोन परत (Ozone Layer) क्या है?


  • सूर्य से निकलनें वाली पराबैंगनी हानिकारक किरणों को अवशोषित कर पृथ्वी ग्रह पर बसने वाले जीवों की रक्षा करता है। पिछले करीब 50 वर्षों में औध्योगिक क्रांति के कारण वातावरण में हानिकारक जहरीले धुएँ और अन्य रसायण पदार्थों को छोड़ कर पृथ्वी के इस वातावरण आवरण को काफी क्षति पहुंचाई है और वर्तमान समय में भी यह घटना जारी है।
  • वातावरण ओज़ोन परत की खोज सर्व प्रथम वर्ष 1839 में एफ स्कोनबिअन के द्वारा की गयी थी।

ओजोन परत क्षय के कारण:


  • वातावरण की ओजोन परत के बढ़ते क्षय का प्रमुख कारण मानवीय क्रियाएं हैं। मानवीय क्रियाकलापों ने अज्ञानता के चलते वायमंडल में कुछ ऐसी गैसों की मात्रा को बढा दिया है जो धरती पर जीवन रक्षा करने वाली ओजोन परत को धीरे धीरे नष्ट कर रही हैं।
  • वैज्ञानिको ने ओजोन परत से जुड़े एक विश्लेषण में यह पाया है कि क्लोरो फ्लोरो कार्बन ओजोन परत में होने वाले विघटन के लिए प्रमुख रूप से उत्तरदायी है।
  • मिथाइल क्लोरोफॉर्म हैलोजन, , कार्बन टेट्राक्लोरिडे आदि रसायन पदार्थ भी ओजोन को धीरे धीरे नष्ट करने में सक्षम हैं। इन रसायन पत्रथो को “ओजोन क्षरण पदार्थ” कहा गया है। इनका उपयोग हम मुख्यत: अपनी दैनिक सुख सुविधाओ में करते हैं जैसे फोम, रंग, प्लास्टिक एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर,इत्यादि।

ओज़ोन परत क्षय होने के प्रभाव –

  1. Ozone layer के बर्बाद होने से सूर्य से आने वाली पेराबैंगनी किरणें वातावरण में घुस कर प्रलय मचा सकती हैं।
  2. बे हद गरम पेराबैंगनी किरणें पैड पौधों को जला सकती हैं। जीव जंतुओं को हानी पहुंचा सकती हैं।
  3. Ozone Layer तबाह होने पर गरमी बढ्ने से मानव जाती भी त्वचा रोग, अल्सर, मोतिया बिन्द, कैंसर और दूसरी गंभीर बीमारियों का शिकार होने लगेंगी।

आइये अब जानने का प्रयास करते है कि- 
वायुमंडल में ओजोन छिद्र (Ozone Hole) धुर्वीय क्षेत्र में ही क्यों हुआ, जबकि इसके कारक तो पृथ्वी के सभी भागों में पाए जाते हैं?

वायुमण्डल  में स्ट्रैटोस्फ़ियर के निचले भाग में ओज़ोन परत होती है जो कि पराबैंगनी (Ultra Voilet) किरणों को सोख कर पृथ्वी पर जीवन को सुरक्षित रखती है। जब आज़ोन परत और उसमें छेद की बात होती है तो किसी के मन में ऐसी अवधारणा हो सकती है कि यह परत पूरी तरह से पृथ्वी को घेरे है और कहीं-कहीं छिद्र हो गये हैं। दरअसल यह परत किसी कम्बल की तरह पृथ्वी को ढाँके हुए नहीं है। बल्कि पृथ्वी की सतह से 20-30 किलोमीटर ऊपर वायु में ओज़ोन कणों की सान्द्रता (कॉन्सेंट्रेशन) अन्य ऊंचाइयों की तुलना में ज़्यादा होती है (लगभग 10 PPM., जबकि औसतन वायुमण्डल में ओज़ोन की मात्रा 0.3 PPM. होती है)।

अब ओज़ोन छिद्र की बात करें।
ओजोन क्या है? और ध्रुवीय क्षेत्र में ही क्यों होता है?

किसी प्राकृतिक या मानवीय कारको से स्ट्रैटोस्फीयर में मौजूद ओज़ोन की मात्रा में कमी आती है। इसी को ओज़ोन छिद्र कहते हैं। अर्थात असल में कोई छेद नहीं होता, मात्र उस जगह पर ओज़ोन की सघनता कम हो जाती है।
इसी को ओजोन क्षरण या ओजोन परत में छिद्र होना कहते है।


वायुमण्डल में ऑक्सीजन से ओज़ोन और वापस ऑक्सीजन बनने की क्रिया सतत चलती रहती है। वायुमंडल में उपस्थित ऑक्सीजन के परमाणु आपस मे मिलकर अजोन गैस बना लेते है। यह प्रक्रिया सूर्य की पराबैंगनी किरणों का इस्तेमाल करती है और हमको बचाए रखती है।

यह संतुलन हमने औद्योगिक प्रगति के चलते बिगाड़ दिया है। पिछली शताब्दी से हमने कुछ ऐसे रसायनिक पदार्थ इजाद किये जिन्हें हेलोकार्बन कहा जाता है। इस श्रेणी में क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स (CFCs) प्रमुख हैं। ये अत्यन्त स्थिर होते हैं और बहुत लम्बे समय तक वायुमण्डल में बने रहते हैं। इनमें से क्लोरीन फ़्री रैडिकल उत्पन्न होते हैं जो ओज़ोन के अणुओं से क्रिया कर के उन्हें तोड़ कर ऑक्सीजन में तब्दील कर देते हैं। यह एक चेन रिएक्शन होता है, जिसमें एक फ़्री रैडिकल एक के बाद एक, एक लाख ओज़ोन अणुओं को तोड़ देता है। इसी से ओज़ोन की मात्रा में अत्यधिक कमी हो जाती है जिसे हम ओज़ोन छिद्र कहते हैं।

अब बात आती है कि यह ओज़ोन छिद्र ध्रुवीय क्षेत्र में ही क्यों होता है ? ख़ासकर तब जबकि इसके कारक पदार्थ (ओज़ोन डिप्लीटिंग सब्स्टांसेज़ या ODS ) का उत्पादन एवं उत्सर्जन तो पृथ्वी में सभी जगह होता है। नहीं होता है तो अंटार्क्टिका और आर्क्टिक क्षेत्रों में, जहाँ जनसंख्या ना के बराबर है। फिर यह कुछ अटपटा सा लगता है। यह और भी अटपटा लगेगा जब आपको यह पता चलेगा की भूमध्यरेखीय और उष्णकटिबंधीय (इक्वेटोरियल और ट्रॉपिकल) क्षेत्रों में ओज़ोन परत की मात्रा अमूमन कम होती है और ध्रुवीय क्षेत्रों में सर्वाधिक! फिर यह असंगति कैसे?

इसके चार परमुख कारण हैं —
1) पोलर वोर्टेक्स (ध्रुवीय चक्रवात)-
पृथ्वी के भौगोलिक ध्रुवों के पास लगातार चलने वाले व्यापक चक्रवात को पोलर वॉर्टेक्स कहा जाता है। सर्दियों में बेहद ठंडा एवं कम दबाव वाला यह क्षेत्र काफी मजबूत हो जाता है, जबकि गर्मियों में कमजोर पड़ जाता है। ऐसा भूमध्यरेखा एवं ध्रुव के बीच तापमान के अंतर के कारण होता है। यह चक्रवाती तूफान की तरह नहीं होता, जो विकसित होने के कुछ देर बाद खत्म हो जाता है, बल्कि यह ध्रुवीय जलवायु की सामान्य विशेषता है।

अधिकतर पदार्थ जो वायुमण्डल में होते हैं वह ट्रोपोस्फ़ियर तक सीमित रहते हैं और वहीं चलने वाली हवाओं के साथ बहते रहते हैं तथा सभी जगह पृथ्वी पर पहुंचते हैं जिससे उन्हें एक जगह पर अधिक मात्रा में इकट्ठा होने का मौका नहीं मिलता। परन्तु स्ट्रैटोस्फ़ियर में हवाएं सिर्फ़ एक ही दिशा में बहती हैं— पश्चिम से पूर्व की ओर, इन्हें हम जेटस्ट्रीम कहते हैं। इसके कारण स्ट्रैटोस्फ़ियर तक पहुंच जाने वाले पदार्थ धीरे-धीरे ध्रुवों की तरफ़ एकत्रित होने लगते हैं— ठीक एक सेंट्रीफ्यूज की तरह। इस प्रक्रिया में जेटस्ट्रीम मदद करती हैं जो मौसम के अनुसार कभी तो सीधी रेखा में बहती हैं, और कभी घुमावदार (सिनुसाइडल) पथ में। ठण्ड के मौसम में ध्रुव पर बनने वाले वोर्टेक्स अत्यंत मजबूत हो जाते हैं जो कि वहाँ पहुंचने वाले पदार्थों को वहीं क़ैद कर लेते हैं। इसी कारणवश हेलोकार्बन अणु भी पृथ्वी के हर भाग से उठकर धीरे-धीरे ट्रोपोस्फ़ीयर के ऊपरी हिस्से तक और फिर स्ट्रैटोस्फ़ियर में प्रवेश कर जाते हैं और फिर ध्रुवों पर एकत्रित होने लगते हैं। जब ओज़ोन का ह्रास करने वाले पदार्थ ध्रुवों पर ही सर्वाधिक हैं तो ज़ाहिर है कि वहीं सबसे ज़्यादा नुकसान होगा।

2) पोलर स्ट्रैटोस्फ़ेरिक क्लाउड (PSC)-
वैसे तो स्ट्रैटोस्फ़ियर के अत्यंत शुष्क होने की वजह से यहाँ बादल नहीं बनते। पर ध्रुवों पर सर्दियों में तापमान इतना गिर जाता है कि यहाँ पोलर स्ट्रैटोस्फ़ेरिक क्लाउड नामक मेघ बन जाते हैं। इसके लिए तापमान का -78 डिग्री सेल्सियस (C) के नीचे जाना आवश्यक है। तब नाइट्रिक एसिड और पानी के कण संघनित (कंडेन्स) होकर पोलर स्ट्रैटोस्फ़ेरिक क्लाउड बनाते हैं।
अत्यंत सुन्दर दिखने वाले यह मेघ बड़े नुकसानदायक भी हैं। पोलर स्ट्रैटोस्फ़ेरिक क्लाउड की सतह पर कुछ ख़ास रिएक्शन होते हैं जिनकी वजह से ध्रुवीय वायुमण्डल में पहले से एकत्रित हेलोकार्बन पदार्थों से क्लोरीन मोनोऑक्साइड (ClO) नामक पदार्थ बनता है। यह ओज़ोन को नष्ट करने वाले पदार्थों में सर्वाधिक सक्षम है। ध्रुवों पर सर्दियों में क्लोरीन मोनोऑक्साइड (ClO) के आधिक्य के कारण भी यहीं पर ओज़ोन छिद्र देखा जाता है। इन्ही बादलों के कारण ओज़ोन छिद्र शीतकाल और उसके ठीक बाद में ही सबसे ज़्यादा प्रखर होता है।
3) ज्वालामुखीय पदार्थ-
उत्तरी गोलार्ध में अनेक जवालामुखीय क्षेत्र है इन जवालामुखीय क्रेटर से मीथेन (CH4) तथा ऑर्गन (Ar) सहित अन्य गैसे निकलती जो ओजोन परत को क्षति पहुचाती है।
जबकि दक्षिणी गोलार्ध के क्षेत्रों में सबसे बड़ा 26 लाख वर्ग फ़ीट का ओजोन छिद्र पाया गया इसे अंटार्कटिक ओजोन छिद्र कहा जाता है के प्रमुख कारण है-
4) टेक्टोनिक प्लेट- 
टेक्टोनिक गतिविधि से दक्षिणी क्षेत्र में बड़ी दरारे हो जाने से भूगर्भीय मीथेन और ऑर्गन गैस के कारण ओजोन गैस में छिद्र हुआ है जबकि इस क्षेत्र में CFC का उत्सर्जन बिल्कुल भी नही है।

ग़ौरतलब है कि -78 डिग्री सेल्सियस (C) या कम तापमान दक्षिणी ध्रुव पर लगभग 4-5 माह तक रहता है, जबकि उत्तरी ध्रुव पर 10-60 दिन ही, और कभी कभी बिल्कुल भी नहीं। यही वजह है कि दक्षिणी ध्रुव पर छिद्र बड़ा होता है और उत्तरी ध्रुव पर छोटा, और कभी तो न के बराबर।

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