वाहनों के टायर (Tyre) का रंग सिर्फ काला ही क्यों होता है?

वाहनों के टायर का रंग सिर्फ काला ही क्यों होता है?
Om Prakash Patidar

आपने गाड़ियां बहुत देखी होंगी या फिर चलाई भी होगी। ये तो आप भी जानते हैं कि गाड़ी का सबसे महत्वपूर्ण पार्ट होता है टायर। बिना टायर के वहां चलाना बहुत ही मुश्किल काम है चाहे वो दो पहिया हो या ही चार पहियों वाला।

पर क्या कभी आपने गौर किया है की टायर हमेशा काले रंग के ही क्यों होते है ? जब गाड़ियाँ अलग अलग तरह की हो सकती है तो टायर क्यों हमेशा एक ही रंग के होते है ?

यह तो आप जानते ही होंगे की टायर रबड़ से बनता है लेकिन प्राकृतिक रबड़ का रंग तो स्लेटी (Gray) होता है तो फिर टायर काला (Black) कैसे ? 
दरअसल बनाते वक़्त इसका रंग बदला जाता है और ये स्लेटी से काला हो जाता है टायर बनाने की प्रक्रिया को वल्कनाइजेशन (Vulcanization) कहते हैं ।

वल्कनीकरण (Vulcanization) क्या है?
प्राकृतिक रबड़ अपनी प्रकृति में थर्मोप्लास्टिक है अतः यह गर्मियों में मुलायम व चिपचिपी हो जाती है और सर्दियों में कठोर हो जाती है | इसी समस्या के समाधान के लिए प्राकृतिक रबड़ के सैम्पल को गर्म कर उसमें सल्फर ( Sulpher) लिथार्ज (लेड ऑक्साइड,PbO) मिलाने से रबड़ जैसे ही पदार्थ का निर्माण होता है जिसकी प्रकृति थर्मोस्टेट या थर्मोस्टेटिंग पॉलीमर जैसी होती है ।इस प्रक्रिया को वल्कनीकारण (Vulcanization) कहते हैं|   
टायर बनाने के लिए उसमें काला कार्बन मिलाया जाता है जिससे रबर जल्दी नहीं घिस सके। अगर सादा रबर का टायर 10 हज़ार किलोमीटर चल सकता है।तो कार्बन युक्त टायर एक लाख किलोमीटर या उससे अधिक चल सकता है। अगर टायर में साधारण रबर लगा दिया जाये तो यह जल्दी ही घिस जाएगा और ज्यादा दिन नहीं चल पाएगा इसलिए इसमें काला कार्बन और सल्फर मिलाया जाता है जिससे कि टायर काफी दिनों तक चल सके।

काले कार्बन कि भी कई श्रेणियां होती हैं और रबर मुलायम होगी या सख़्त यह इसपर निर्भर करेगा कि कौन सी श्रेणी का कार्बन उसमें मिलाया गया है। मुलायम रबर के टायरों की पकड़ मज़बूत होती है लेकिन वो जल्दी घिस जाते हैं जबकि सख़्त टायर आसानी से नहीं घिसते और ज्यादा दिन तक चलते है।




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