मस्कुलर डिस्ट्रॉफी बीमारी जिसमे मरीज मांगते है मौत

What is Muscular Distrophy?
कक्षा 4 में पढ़ने वाले हर्ष ने एक दिन स्कूल बस से उतरते समय महसूस किया कि उसे पैर नीचे रखने में दिक्कत हो रही है। उसने सोचा ऐसे ही पैर सो गया होगा। पर अगले दिन सीढ़िया चढ़ते समय उसे सीढ़ियां चढ़ने में दिक्कत हो रही है। सीढ़िया चढ़ते समय उसे पैर को हाथ से सहारा देना पड़ रहा है। स्कूल से लौट कर उसने यह बात अपने पापा को बताई। पापा उसे डॉक्टर के पास ले गए। डॉक्टर ने लक्षण समझने के बाद मस्कुलर डिस्ट्रॉफी होने की आशंका व्यक्त की। कुछ टेस्ट कराए। टेस्ट रिपोर्ट देखने के बाद डॉक्टर ने बताता की हर्ष को मस्कुलर डिस्ट्रॉफी नामक समस्या है आने वाले एक दो साल में हर्ष को 24 घंटे पलँग पर ही आराम (Bed rest) करना होगा और 20 से 22 साल की उम्र होते होते हर्ष इसदुनिया से अलविदा हो जाएगा।

मस्कुलर डिस्ट्रॉफी क्या है?

मस्कुलर डिस्ट्रॉफी एक आनुवांशिक बीमारी है। इसके जीन एक X गुणसूत्र पर पाए जाते है। पुरुषों में एक X गुणसूत्र होने के कारण पुरुष इससे पीड़ित होते है, जबकि महिला के X गुणसूत्र पर इसके जीन होने पर दूसरा X जिस पर इसके जीन नही होते वह इसके लक्षणों को दबा देता है, इस कारण से महिलाएं इस लक्षण की वाहक (Career) हो सकती है।

इसमें शरीर की मांसपेशियां धीरे-धीरे कमजोर होती जाती हैं और एक सीमा के बाद बेकार हो जाती हैं। उम्र बढ़ने के साथ-साथ यह बीमारी पूरे शरीर में फैलती जाती है।


मस्कुलर डिस्ट्रॉफी यह एक अनुवांशिक बीमारी है, जो खासतौर से बच्चों में होती है. इस बीमारी की वजह से किशोर होते-होते बच्चा पूरी तरह विकलांग हो जाता है. ऐसी स्थिति में वह न तो चल सकता है और न बैठ सकता है. यह विकृति मांसपेशियों की कोशिकाओं और ऊत्तकों के मृत होने का परिणाम होती है, जिससे मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं. जिससे बच्चे के लिए सामान्य रूप से चलना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में बच्चे उठने के लिए अपने हाथों का सहारा लेते हैं. बारह साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते बच्चा पूरी तरह विकलांग हो जाता है।


मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के लक्षण-
संतुलन बनाने में दिक्कत आती है। जैसे व्यक्ति बिना सहारे के खड़े होने, पीठ टिकाएं बिना बैठने में दिक्कत महसूस करता है। पलके लटक जाती हैं। रीढ़ की हड्डी झुकने लगती है। चलने-फिरने में दिक्कत होती है। श्वांस संबंधी दिक्कते होने लगती हैं। जोड़ों में तकलीफ होती है। हृदय संबंधी रोग भी हो जाते हैं। मस्कुलर डिस्ट्राफी सिर्फ लड़कों में ही उजागर होती है और लड़कियां, जीन विकृति होने पर कैरियर (वाहक) का कार्य करती हैं या अपनी संतान को भविष्य में ये बीमारी दे सकती हैं, जबकि लड़कियों में किसी प्रकार के लक्षण उत्पन्न नहीं होते हैं.

ज्यादातर बच्चों में 4 से 8 वर्ष की आयु में ही पैरों में कमजोरी शुरू हो जाती है.

- दौड़ते समय गिर जाना.

- जल्दी थक जाना.

- पैरों की मांसपेशियों का फूल जाना.

- जमीन से उठते समय घुटने पर हाथ रखना या न उठ पाना.

मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के प्रकार:
यह कई प्रकार की होती है। इसका सबसे प्रमुख प्रकार हैं-
Duchenne muscular dystrophy (DMD): मस्कुलर डिस्ट्रॉफी का यह सबसे प्रचलित प्रकार है, जो शरीर में डिस्ट्रॉफिन प्रोटीन को बनाने वाले जीन की खराबी के कारण होता है। यह प्रोटीन शरीर में मांसपेशियों को मजबूत करने का कार्य करता है। इसकी कमी से मांसपेशियां क्षतिग्रस्त होने लगती हैं और व्यक्ति धीरे-धीरे कमजोर होता जाता है। डीएमडी ज्यादातर लड़कों में होती है। 2 से 6 साल की उम्र के बीच इसके लक्षण दिखाई देने लगते हैं। इससे पीड़ित बच्चों को 10-12 साल का होते तक व्हीलचेयर का इस्तेमाल करना पड़ता है। कई बार हृदय संबंधी दिक्कतें भी रोगी को परेशान करती हैं। कुछ रोगियों में माइल्ड मेंटल रिटारडेशन भी देखने को मिलता है। इस लेख में इसी DMD के बारे में चर्चा की गई है।

Muscular Distrophy के अन्य प्रकार-

BMD: इसके लक्षण देर से उभरते हैं और अपेक्षाकृत कम खतरनाक होते हैं। मांसपेशियों का कमजोर होना और टूटना इसके प्रमुख लक्षण हैं, जो आमतौर पर 10 साल की उम्र तक दिखाई नहीं देते। कई बार ये व्यस्क तक भी दिखाई नहीं देते। इससे ग्रस्त लोगों को दिल, सांस, हड्डियों, मांसपेशियों व जोड़ों की तकलीफ होती है

EDMD: यह भी मस्कुलर डिस्ट्रॉफी का एक प्रकार है और अधिकांशत: लड़कों को गिरफ्त में लेता है। आमतौर पर इसके लक्षण बाल्यवस्था खत्म होने, किशोरावस्था की शुरुआत या युवावस्था में दिखाई देते हैं। यह कंधों, बांहों व जांघों को प्रभावित करता है।

LGMD: यह स्त्री-पुरुष दोनों में होती है और रोगी की बांहों, कंधों, जांघों और कूल्हों की मांसपेशियों को कमजोर कर देती है।  इसका असर धीरे-धीरे बढ़ता है। 

FSHD: इसमें चेहरे, कंधों और पैरों के निचले हिस्से प्रभावित होते हैं। इससे परेशान व्यक्ति को हाथ उठाने, सीटी बचाने व कस कर आंखें बंद करने में परेशानी होती है। इसमें रोग की गंभीरता व्यक्ति-व्यक्ति पर निर्भर करती है।
MMD: किशोरों में यह ज्यादा परेशानी का सबब बनती है। इसमें मांसपेशियों में कमजोरी और आंख व दिल संबंधी परेशानियां शामिल है। व्यक्ति निगलने में भी दिक्कत महसूस करता है।

मस्कुलर डिस्ट्रॉफी का उपचार:

मस्कुलर डिस्ट्रॉफी प्रारंभिक अवस्था में रहती है तो इसे काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है. लेकिन इसका असर अगर बहुत ज्यादा हो जाता है तो उस समय हाथ, पैर और पूरा शरीर एक लौथड़े की तरह हो जाता है।

मस्कुलर डिस्ट्रॉफी का कोई संतोषजनक उपचार अभी तक नहीं मिल पाया है. वैज्ञानिक इस बीमारी के लिए जिम्मेदार डिफेक्टिव जीन्स की खोज में लगे है. हालांकि शुरुआती दौर में इस रोग की पहचान हो जाने पर इसके इलाज में काफी मददगार हो सकती है.

संकलन-
ओम प्रकाश पाटीदार

1 टिप्पणियाँ

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  1. क्या मस्कुलर डिस्ट्राफी के लक्ष्ण 30 साल जैसी बड़ी उम्र में दिख सकते हैं

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