पलाश वृक्ष (Butea monosperma) एक परिचय
Om Prakash Patidar
यह वृक्ष भारत और दक्षिण पूर्वी एशिया के बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान, थाईलैंड, कम्बोडिया, मलेशिया, श्रीलंका आदि में बहुतायत में देखा जा सकता है।
इसके पाँचों अंगों- तना, जड़, फल, फूल और बीज से दवाएँ बनाने की विधियाँ दी गयी हैं।
पलाश वृक्ष को 'पलास', 'परसा', 'ढाक', 'टेसू' तथा खाखरा के नाम से जाना जाता है।भारत के सुंदर फूलों वाले प्रमुख वृक्षों में से एक है। आयुर्वेद में पलाश के अनेक गुण बताए गए हैं और इसके पाँचों अंगों- तना, जड़, फल, फूल और बीज में औषधीय गुण पाए जाते है।यह वृक्ष आयुर्वेद के लिए विषेश उपयोगी हैं. इसके गोंद, पत्ता, पुष्प, जड़ सभी औशधियों गुणो से परिपूर्ण है. इसीलिए इसका पुष्प उत्तर प्रदेश सरकार का राजकीय पुष्प भी कहलाता है. यह पुष्प अपने औशधी गुण के कारण भारतीय डाक टिकट पर भी शोभायमान हो चुका है.
पलाश का पेड़ मध्यम आकार का, क़रीब 12 से 15 मीटर लंबा होता है। इसका तना सीधा, अनियमित शाखाओं और खुरदुरे तने वाला होता है। इसके पल्लव धूसर या भूरे रंग के रेशमी और रोयेंदार होते हैं। छाल का रंग राख की तरह होता है। इसकी विकास दर बहुत धीमी होती है। छोटा पलाश का पेड़ प्रति वर्ष लगभग एक फुट तक बढ़ जाता है। पूरी तरह खिलने के बाद जब यह अपने सारे पत्ते गिरा देता है, तब ये चटक फूल प्रकृति की अनूठी रचना बनकर इस प्रकार खिल उठते हैं, मानो बेरंग मौसम में रंग भर रहे हों। पलाश का वृक्ष भारत और दक्षिण पूर्वी एशिया के बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान, थाईलैंड, कम्बोडिया, मलेशिया, श्रीलंका और पश्चिम इंडोनेशिया में बहुतायत में देखा जा सकता है। इतिहास और साहित्य में गंगा-यमुना के दोआब से लेकर मध्य प्रदेश तक पलाश वृक्ष के जंगल होने की पुष्टि होती है, लेकिन 19वीं शती के प्रारंभ में इनकी तेजी से कटाई होने के कारण अब ये कहीं-कहीं ही दिखाई देते है। इसे परसा, ढाक, टेसू, किशक, सुपका, ब्रह्मवृक्ष और फ्लेम ऑफ फोरेस्ट के नाम से भी जाना जाता है।
पुष्पन (Flowering)
बसंत ऋतु में इनका फूलना शुरू हो जाता है. बंसत पंचमी के बाद से ही जंगल मे पलास के चटकीले पुष्प नजर आने लगते है।. कहा जाता है कि ऋतुराज बंसत का आगमन पलाश के बगैर पूर्ण नहीं होता, अर्थात इसके बिना बसंत का श्रृंगार नहीं होता है।
औषधीय महत्व (Medicinal Importance)
पलाश के पत्ता में बहुमूल्य पोशक तत्व होते है. जो गर्म खाने में मिल जाते है. जो शरीर के लिए बेहद फायेदेमंद है. इसके पेड़ से निकलने वाला गोंद हड्डियों को मजबूत बनाने में बहुत काम आता है। आयुर्वेद की माने तो टेसू के फूलों के रंग होली मनाने के अलावा इसके फूलो को पीसकर चेहरे में लगाने से चमक आती है। टेसू की फलियां कृतिमनाशक के काम के साथ-साथ अन्य बीमारियों तथा मनुष्य का बुढ़ापा भी दूर करती है। पलाश के फूल के पानी से स्नान करने से लू नही लगती तथा गर्मी का एहसास नहीं होता हैं। इसकी जड़ो से रस्सी बनाई जाती है तथा नाव की दरारें भरी जाती है।
संरक्षण (Conservation)-
उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड तथा मध्य प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में ही इन वृक्षों का अस्तित्व बचा हुआ है लेकिन पलास के वनो का क्षेत्रफल घट रहा है. संरक्षण नहीं होने के कारण यह खत्म होने की कगार पर पहुंच चुके है. पलाश के पेड़ो की अंधाधुन कटाई और बेचे जाने के कारण तथा दूसरा कारण वर्षा की कमी के कारण इसका अस्तित्व खतरे के कगार पर है.