विषाणु (वायरस) क्या है?

What is Virus?
Om Prakash Patidar

विषाणु (Virus) किसी जीवित परपोषी के अंदर प्रजनन करने वाले अतिसुक्ष्म, अकोशिकीय, अविकल्प परजीवी तथा विशेष प्रकार के न्यूक्लिओ प्रोटीन के कण होते हैं। विषाणुओं को सजीव एवं निर्जीव के बीच की माना जाता हैं। क्योंकि विषाणु में आनुवंशिक पदार्थ (RNA व DNA) उपस्थित होता हैं तथा गुणन पाया जाता हैं, जो सजीवों के लक्षण प्रकट करते हैं तथा श्वसन, उत्सर्जन एवं जैविक क्रियाएं तथा जीवद्रव्य व कोशिकांगों की कमी के कारण ये निर्जीव के लक्षण प्रकट करते हैं। विषाणु के भी क्रिस्टल निर्जीवों के समान बनाए जा सकते हैं। विषाणु में केवल कोशिका के अंदर गुणन होता हैं |

विषाणु की संरचना-
विषाणु कि खोज 1892 में डी. इवनोवोसकी (Dmitry Ivanovsky) ने तम्बाकू में तम्बाकू मोज़ेक वायरस (TMV) के रूप में की थी।
विषाणु प्रोटीन के आवरण से घिरी रचना होती हैं, जिसमें न्यूक्लिक अम्ल उपस्थित होता हैं। अनेक प्रोटीन इकाइयाँ (Capsomeres) वाइरस के बाहरी आवरण या कैप्सिड (Capsid) में उपस्थित होती हैं। इस पूरे कण को 'विरिऑन' (Viron) कहते हैं, जिनका आकार 10–500 मिलीमाइक्रॉन होता हैं। DNA या RNA में से कोई एक न्यूक्लिक अम्ल में पाया जाता हैं। पतली पूँछ के रूप में प्रोटीन कवच होता हैं।
विषाणु (virus) अकोशिकीय अतिसूक्ष्म जीव हैं जो केवल जीवित कोशिका में ही वंश वृद्धि कर सकते हैं। वायरस नाभिकीय अम्ल (Nuclic Acid) और प्रोटीन से मिलकर बने होते हैं। विषाणु किसी पोषक जीव के शरीर के बाहर तो ये मृत-समान होते हैं परंतु किसी पोषक के शरीर के अंदर जीवित प्राणी की तरह व्यवहार करते है। इस कारण इन्हें न तो सजीव और न ही निर्जीव माना जा सकता है। इसे समझने के लिए हम किसी बीज का उदाहरण लेकर देखते है-
जिस प्रकार पौधे के बीज को धुप, पानी, मिटटी और हवा न दी जाये तो उसे काफी समय तक रखा जा सकता है, उसी प्रकार एक वायरस भी जीवित पोषक के बाहर कई हजार वर्षों तक सुषुप्तावस्था (Dormant) में रह सकता है. जैसे एक बीज को हवा, पानी, मिट्टी और धुप मिलते ही वो पौधे का रूप लेने लगता है उसी प्रकार वायरस भी जीवित कोशिका में प्रवेश करते ही, गुणन करने लगता है और अपने वंश को बढ़ाने लगता है।
जब वायरस किसी जीवित कोशिका में प्रवेश करता है तो वो मूल कोशिका के RNA और DNA की जेनेटिक संरचना को अपनी जेनेटिक संरचना के अनुसार बदल लेता है. और फिर एक संक्रमित कोशिका और संक्रमित कोशिकाओं का उत्पादन करने लगती है।
इन्ही गुणों के आधार पर विषाणु को न तो जीवित प्राणी माना जा सकता है और न ही निर्जीव वस्तु वायरस में निर्जीव व सजीव दोनों के गुण होने के कारण इन्हें जीवित और निर्जीव के मध्य संयोजक कहा जाता है।
वायरस जीवित और गैर-जीवित दोनों तरह के गुण प्रदर्शित करते हैं।

विषाणुओं के सजीव होने के लक्षण-
विषाणु प्रोटीन कैप्सूल के अंदर न्यूक्लिक एसिड के एकल स्ट्रैंड से बने होते हैं। यह पोषक (Host) में प्रवेश करने पर सक्रिय हो जाते है और जीवित जीवों की तरह गुणों को प्रदर्शित करता है, जैसे कि जनन/वृद्धि करना, पोषक से पोषण प्राप्त करना, तथा पोषक जीव में अपने न्यूक्लिक अम्ल की प्रतिलिपी (copy) तैयार करना आदि

विषाणुओं के निर्जीव होने के लक्षण-
विषाणुओं में अधिकांश आंतरिक संरचना और अंगों का अभाव होता है। 
एक उपयुक्त होस्ट सेल के बिना, वायरस एक निर्जीव वस्तु (संरचना) की तरह व्यवहार करते है। इस समय के दौरान वायरस के भीतर कोई आंतरिक जैविक गतिविधियां नहीं होती हैं, और संक्षेप में यह वायरस एक स्थिर कार्बनिक कण से अधिक नहीं है। प्रजनन के लिए उसे एक उपयुक्त होस्ट सेल को संक्रमित करना होगा। वायरस को रासायनिक पदार्थों की तरह शुद्ध और क्रिस्टलीकृत रूप में लंबे समय तक रखा जा सकता है।
विषाणुओं में निर्जीव व सजीव दोनों के गुण होने के कारण इन्हें जीवित और निर्जीव जीवों के बीच की कड़ी (chain) कहा जाता है।

विषाणुओं का वर्गीकरण-

पोषण के आधार पर विषाणु मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं-

1. पादप विषाणु (Plant Virus)-

इनमें न्यूक्लिक अम्ल के रूप में RNA होता हैं।
जैसे – टोबेको मोज़ेक वायरस  ( T.M.V. ),
पीला मोजैक विषाणु ( Y.M.V. ) आदि |

2. जन्तु विषाणु (Animal Virus)-

इनमें न्यूक्लिक अम्ल के रूप में DNA तथा कभी – कभी  RNA पाया जाता हैं, जो प्रायः गोल होते हैं।
जैसे – इन्फ्लूएंजा, मम्पस तथा कोरोना वाइरस आदि |

3. जीवाणुभोजी (Bacteriophage)-

इनमें DNA होता हैं तथा ये केवल जीवाणुओं के ऊपर आश्रित होते हैं |



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