क्या था चिपको (Chipko) आंदोलन?
1962 में चीन से युद्ध के बाद भारत सरकार ने अपनी सीमाओं पर सड़कें बनाने का काम शुरू हुआ. उस वक्त उत्तर प्रदेश (अब उत्तराखंड) के चमोली जिले में भी सड़क निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई. सड़क बनाने के लिए बड़े पैमाने पर जंगल की कटाई शुरू हुई. 1972 आते-आते ये कटाई काफ़ी तेज हो गई. पेड़ों को काटने का स्थानीय लोगों ने विरोध किया. सुंदरलाल बहुगुणा और चंडी प्रसाद भट्ट तथा स्थानीय महिलाएं भी जंगल कटाई के खिलाफ मैदान में उतर आईं. महिलाओं का नेत्रत्व गौरा देवी ने किया। महिला दल की महिलाएं घर-घर घूमकर लोगों को पेड़ों का महत्व समझातीं और पर्यावरण के लिए जागरूक करतीं. 1973 की शुरुआत में तय हुआ कि रैणी गांव के ढाई हजार पेड़ काटे जाएंगे. इसके विरोध में पूरा गांव खड़ा हो गया. 23 मार्च 1973 को पेड़ों की कटाई के विरोध में रैली निकाली गई. लेकिन इस सबका सरकार पर कोई असर नहीं पड़ा. पेड़ काटने का ठेका भी दे दिया गया. ठेकेदार पेड़ काटने पहुंच गए. तभी गौरा देवी के नेतृत्व में रैणी गांव की महिलाएं पेड़ों से चिपक गईं. उनका कहना था, इस कारण से इस आंदोलन को चिपको आंदोलन का नाम दिया गया.
चिपको आंदोलन का प्रभाव:
चिपको आंदोलन पर्यावरण से जुड़ा होने व धीरे धीरे आम लोगो के जुड़ने के कारण देश-दुनिया में प्रसिद्ध हो गया. पूरी दुनिया के पर्यावरण प्रेमी और पर्यावरण संरक्षण में लगे लोग इससे प्रेरित हुए. इस आंदोलन का असर यह हुआ कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को वन संरक्षण कानून लाना पड़ा. इसके जरिए इस इलाके में पेड़ों की कटाई पर 15 साल के लिए बैन लगा दिया गया. यहां तक कि केन्द्र सरकार ने अलग से वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भी बना दिया.
सुंदरलाल बहुगुणा जीवनयात्रा-
सुन्दरलाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी सन 1927 को देवों की भूमि उत्तराखंड के 'मरोडा नामक स्थान पर हुआ और उनकी मृत्यु 21 मई 2021 को ऋषिकेश मे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, ऋषिकेश मे हुई। अपनी प्राथमिक शिक्षा के बाद वे लाहौर चले गए और वहीं से बी.ए. की उपाधि प्राप्त की। सन 1949 में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा के सम्पर्क में आने के बाद ये दलित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए प्रयासरत हो गए तथा उनके लिए टिहरी में ठक्कर बाप्पा होस्टल की स्थापना भी किए। दलितों को मन्दिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने आन्दोलन छेड़ दिया अपनी पत्नी श्रीमती विमला नौटियाल के सहयोग से इन्होंने सिलयारा में ही 'पर्वतीय नवजीवन मण्डल' की स्थापना भी की। सन 1971 में शराब की दुकानों को खोलने से रोकने के लिए सुन्दरलाल बहुगुणा ने सोलह दिन तक अनशन किया। चिपको आन्दोलन के कारण वे विश्वभर में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए। सुन्दरलाल बहुगुणा के अनुसार पेड़ों को काटने की अपेक्षा उन्हें लगाना अति महत्वपूर्ण है। बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेण्ड ऑफ़ नेचर नामक संस्था ने 1980 में इनको पुरस्कृत भी किया। इसके अलावा उन्हें कई सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।पर्यावरण को स्थाई सम्पति माननेवाला यह महापुरुष आज 'पर्यावरण गाँधी' बन गया है।
क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार।
मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार।
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