हमारी नाक में दो छिद्र क्यों होते है?
हमारी शरीर में दो
आंखे होती है जिनसे दूरी का सटीक अंदाजा लगाया जा सकता है, दो कान होने पर हम दो अलग-अलग दिशा की बात एक साथ सुन पाते है और आवाज किस दिशा से आ रही है, यह पहचान पाते हैं। लेकिन क्या कभी यह सवाल आपके मन में आया होगा कि हमारी नाक तो एक ही है, फिर उसमे दो- दो नासिका छिद्र क्यों
होते हैं? आइये इस प्रश्न का उत्तर जानने का प्रयास करते है।
स्टेनफोर्ड
यूनिवर्सिटी में सूंघने की क्षमता और इस प्रक्रिया को समझने को लेकर एक अध्ययन किया गया है। इस अध्ययन में उन्होंने पाया कि पूरे दिन में हमारे दोनों नासिका छिद्र में से एक नासिका छिद्र दूसरे की तुलना
में बेहतर और ज्यादा तेजी से सांस लेता है। प्रतिदिन या दिन में कभी भी दोनो नासिका छिद्र
की यह क्षमता बदलती रहती है। यानी हमेशा दोनों नासिका छिद्र से एक नासिका छिद्र बेहतर और एक थोड़ा कम सांस खिचता है और सांस खीचने की यह दो अलग-अलग क्षमताएं हमारे जीवन के लिए बेहद जरूरी है।
हम जिस गंध को प्रतिदिन
सूंघते है तंत्रिका अनुकूलन (Neural Adaptation) के कारण वह गंध हमे
ज्यादा महसूस नही होती है। यानी हमारी नाक ऐसी गंध के प्रति उदासीन हो जाती है, जबकि किसी नई गंध का हमे तुरंत अहसास हो जाता है। इस
नई गंध के लिए नाक के दो नासिका छिद्र बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
गंध तथा कणों को
हमारी नाक की संवेदी त्वचा अलग-अलग मात्रा में ग्रहण करती है। कुछ चीजो की गंध जहा
तुरंत हमारी नाक से होते हुए मस्तिष्क तक जाती है, वही कुछ चीजो की गंध धीरे-धीरे
महसूस होती है। ऐसी महक को पहचानने के लिए हमे थोड़े समय की आवश्यकता होती है।
यानि हमारी नाक के
दो नासिका छिद्र में से एक तेज गति से सूघने का कार्य करता है जबकि दूसरा छिद्र
गंध को धीरे-धीरे आगे बढाता है जिससे हमे उस गंध को भली-भांति समझने में सुविधा हो
जाती है अर्थात यह दो नासिका छिद्रों की वजह से ही हम नई गंध को आसानी से पहचान पाते है। इसके अतिरिक्त नाक
के दो नासिका छिद्र होने से जुकाम या किसी दुर्घटना के दौरान नाक का एक हिस्सा
चोटिल हो जाने श्वास की क्रिया बाधित न हो इस कारण से भी हमारी नाक में दो छिद्र
होते है।