Mutual Fund क्या है?


Mutual Fund क्या है?

ज़्यादातर लोगों को म्यूच्यूअल फंड्स के बारे में विस्तृत जानकारी नही होती है। सरल शब्दों में में कहे तो बहुत सारे निवेशकों की धनराशि जमा होकर निवेशित होने को म्यूच्यूअल फंड कहते है| इस फंड के प्रबंधन के लिए फंड प्रबंधक नियुक्त होते हैं|

म्यूच्यूअल फण्ड क्या है? म्युचुअल फंड में अलग-अलग निवेशकों से पैसे इकट्ठा करके कई प्रकार की प्रतिभूतियों जैसे स्टॉक, बांड, इत्यादि में Invest किया जाता है। म्युचुअल फंड में स्टॉक मार्केट की तुलना में कम जोखिम और हाई रिटर्न के अवसर होते हैं।

इस Fund को प्रबंधित करने का काम एक पेशेवर व्यक्ति द्वारा किया जाता है जिसको पेशेवर फंड मैनेजर (Professional Fund Manager) कहा जाता है.

Mutual Funds SEBI (सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया) के अंतर्गत Registered हैं निवेशकों के पैसो को बाजार में सुरक्षित रखने का काम SEBI के द्वारा किया जाता है. SEBI यह देखती है की कही कोई कंपनी लोगों को धोखा तो नहीं दे रही. Mutual Fund में कोई भी 500 रुपए से लेकर लाखों, करोड़ों रुपए तक का निवेश किया जाता है।

ये एक ऐसा ट्रस्ट है जो बड़ी संख्या में ऐसे निवेशकों की धनराशि एकत्रित करता है, जिन निवेशकों का एक उभय निष्ठ/एकसा उद्देश्य है| तत्पश्चात, विभिन्न विकल्पों जैसे इक्विटी, बांड, मुद्रा बाज़ार के साधनों, और/अथवा अन्य सिक्योरिटीज में ये राशि निवेश करती है| हर निवेशक इकाइओं का मालिक होता है जो फंड के मल्कियत के एक हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं| इस सामूहिक निवेश से जो आमदनी /लाभ उत्पन्न होता है, उसे सही अनुपात में निवेशकों में वितरित कर दिया जाता है, स्कीम के ‘नेट एसेट वैल्यू’ या NAV की गणना के पश्चात कुछ व्यय उस राशि में से घटा भी लिए जाते हैं|  सीधे शब्दों में गर कहें, एक आम आदमी के लिए म्यूच्यूअल फंड सबसे साध्य विकल्प है जो उसे विभिन्न प्रकार के, व्यावसायिक द्वारा प्रबंधित सिक्योरिटियों में निवेश करने का अवसर प्रदान करता है, और जिसकी लागत भी अपेक्षाकृत कम है|

म्यूचुअल फंड के उद्देश्य Objectives Of Mutual Funds

म्यूचुअल फंड का प्राथमिक उद्देश्य उन प्रतिभूतियों में निवेश करना है जिनका मूल्य समय के साथ बढ़ सकता है, जिससे निवेशकों को पूंजीगत लाभ हो सकता है। वे विकास क्षमता वाली कंपनियों के शेयरों में निवेश करके पूंजी वृद्धि पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

  • मुद्रास्फीति ने रिटर्न को मात दी

म्यूचुअल फंड स्कीम को समय के साथ मुद्रास्फीति को मात देने वाला रिटर्न देने में सक्षम होना चाहिए। यदि आपके निवेश पर रिटर्न मुद्रास्फीति को मात देने में विफल रहता है, तो आप अपने निवेश का मूल्य खो रहे हैं। हालाँकि, बाजार में नकारात्मक धारणा होने पर या किसी महामारी के कारण म्यूचुअल फंड या अन्य वित्तीय उपकरण अच्छा परिणाम नहीं दे सकते हैं।

  • पूंजी सुरक्षित रखें

डेट म्यूचुअल फंड और मनी मार्केट म्यूचुअल फंड सहित कुछ म्यूचुअल फंड योजनाएं आपकी पूंजी को संरक्षित करने में मदद करती हैं और साथ ही सावधि जमा की तुलना में बेहतर रिटर्न देती हैं। ये फंड उन लोगों के लिए उपयुक्त हैं जो रिटायर होने वाले हैं या कम जोखिम उठाने की क्षमता रखते हैं।

  • विकास

म्यूचुअल फंड में निवेश करने से आपको समय के साथ अपनी संपत्ति बढ़ाने में मदद मिलती है। उदाहरण के लिए, ग्रोथ म्यूचुअल फंड ग्रोथ स्टॉक पर ध्यान केंद्रित करते हैं क्योंकि उनमें आने वाले वर्षों में बढ़ने की क्षमता होती है। इसलिए, यह अन्य म्यूचुअल फंड योजनाओं की तुलना में अधिक रिटर्न देता है।

  • आय उत्पन्न करें

डिविडेंड स्टॉक जैसे म्यूचुअल फंड प्रकार के म्यूचुअल फंड आपको नियमित आय अर्जित करने में मदद करते हैं। आम तौर पर, लाभांश स्टॉक स्थिर होते हैं, और इसमें जोखिम कम होता है। यह म्यूचुअल फंड उन लोगों के लिए उपयुक्त है जो नियमित आय अर्जित करना चाहते हैं।

  • विविधीकरण से लाभ

अधिकांश लोग विविधीकरण लाभ प्राप्त करने के लिए म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं। एक विविध पोर्टफोलियो बाजार की अस्थिरता या किसी आर्थिक मंदी के दौरान आपके निवेश की सुरक्षा करता है।

 म्यूचुअल फंड के कार्य Functions Of Mutual Funds

म्यूचुअल फंड का सबसे महत्वपूर्ण कार्य यह है कि यह निवेशकों को प्रतिभूतियों के विविध पोर्टफोलियो तक पहुंच प्रदान करता है। कई निवेशकों से पैसा इकट्ठा करके, म्यूचुअल फंड स्टॉक, बॉन्ड, कमोडिटी और रियल एस्टेट सहित विभिन्न परिसंपत्तियों में निवेश कर सकते हैं। यह विविधीकरण एकल सुरक्षा में निवेश से जुड़े जोखिम को कम करने में मदद करता है।

  • धन का एकत्रीकरण

एक बार जब म्यूचुअल फंड कंपनी एनएफओ जारी कर देती है, तो इच्छुक निवेशक अपना पैसा म्यूचुअल फंड योजना में निवेश कर सकते हैं। म्यूचुअल फंड कंपनी इन निवेशकों से पैसा इकट्ठा करती है और विभिन्न स्टॉक, बॉन्ड और अन्य प्रतिभूतियों में निवेश करती है। निवेशक अपनी निवेश क्षमता के अनुसार म्यूचुअल फंड यूनिट खरीद सकते हैं। फंड के उद्देश्य और फंड की प्रतिष्ठा पर शोध करना सुनिश्चित करें।

  • व्यावसायिक प्रबंधन

म्यूचुअल फंड का प्रबंधन अनुभवी और योग्य फंड प्रबंधकों द्वारा किया जाता है जो निवेश संबंधी निर्णय लेते हैं। ये फंड मैनेजर फंड के निवेश उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए अनुसंधान करते हैं, बाजार के रुझानों का विश्लेषण करते हैं और सक्रिय रूप से पोर्टफोलियो का प्रबंधन करते हैं।

  • लिक्विडिटी

म्यूचुअल फंड निवेशकों को तरलता प्रदान करते हैं क्योंकि वे किसी भी व्यावसायिक दिन पर म्यूचुअल फंड यूनिट खरीद या बेच सकते हैं। निवेशक अपनी इकाइयों को फंड के मौजूदा नेट एसेट वैल्यू (एनएवी)पर भुना सकते हैं। यह तरलता सुविधा निवेशित पूंजी तक पहुंच में लचीलापन और आसानी प्रदान करती है।

  • वापस करना

जब म्यूचुअल फंड का एनएवी मूल्य बढ़ता है तो निवेशक रिटर्न कमाते हैं। म्यूचुअल फंड से कमाई करने के विभिन्न तरीके हैं: ऐसा ही एक तरीका लाभांश म्यूचुअल फंड में निवेश करना है, जहां निवेशकों के बीच लाभांश साझा किया जाता है। दूसरा तरीका ग्रोथ म्यूचुअल फंड में निवेश करना है, जहां रिटर्न को वापस फंड में निवेश किया जाता है।

म्यूचुअल फंड का स्कोप Scope Of Mutual Funds

  • पिछले कुछ वर्षों में म्यूचुअल फंड का स्कोप काफी बढ़ गया है। नई एएमसी (एसेट मैनेजमेंट कंपनियों) के उद्भव और नवीन म्यूचुअल फंड उत्पादों के विकास के साथ, निवेशकों के पास अब चुनने के लिए म्यूचुअल फंड योजनाओं की एक विस्तृत श्रृंखला है।
  • म्यूचुअल फंड उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जिनके पास शेयर बाजार पर शोध करने और नियमित रूप से अपने निवेश पर नज़र रखने का समय नहीं है।
  • निवेशक विभिन्न प्रकार के म्यूचुअल फंडों में से चुन सकते हैं जो विभिन्न निवेश उद्देश्यों और जोखिम के स्तरों की पेशकश करते हैं। उदाहरण के लिए, इक्विटी या स्टॉक फंड सार्वजनिक रूप से कारोबार वाले शेयरों में निवेश करते हैं, जबकि बॉन्ड फंड सरकारी और कॉर्पोरेट बॉन्ड में निवेश करते हैं। मनी मार्केट फंड अल्पकालिक, कम जोखिम वाली प्रतिभूतियों में निवेश करते हैं, जबकि संतुलित फंड स्टॉक और बॉन्ड के मिश्रण में निवेश करते हैं। आप अपनी आवश्यकताओं के आधार पर चयन कर सकते हैं।
  • कुछ विशेष म्यूचुअल फंड स्वास्थ्य सेवा, आईटी, एफएमसीजी, हरित ऊर्जा या सोना जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में निवेश करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप आईटी क्षेत्र को लेकर आशावादी हैं और मानते हैं कि आने वाले वर्षों में इसमें वृद्धि होगी, तो आप आईटी विषयगत म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं।
  • आजकल, कोई भी भारत से वैश्विक म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकता है। S&P 500 और NASDAQ जैसे वैश्विक म्यूचुअल फंड आपको अंतरराष्ट्रीय कंपनियों में निवेश करने की अनुमति देते हैं।
  • उपलब्ध विकल्पों की विशाल श्रृंखला के साथ, निवेशकों को म्यूचुअल फंड चुनने से पहले सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करना चाहिए। वित्तीय सलाहकार के साथ उचित शोध और परामर्श से निवेशकों को सूचित निर्णय लेने और अपने रिटर्न को अधिकतम करने में मदद मिल सकती है।

 

म्यूच्यूअल फंड कितने प्रकार के होते है?

अलग लोगों की अलग जरूरतों को पूरा करने के लिए विभिन्न प्रकार के म्यूचुअल फंड मौजूद हैं। मोटे तौर पर ये तीन प्रकार के होते हैं।


इक्विटी या ग्रोथ फंड्स

ये अधिकांश रूप से इक्विटी अर्थात कंपनियों के शेयर में निवेश करते हैं 

इनका मूल्य उद्देश्य संपदा निर्माण या पूंजी वृद्धिहोता है।

उनमें उच्च लाभ देने की अच्छी संभावनाएं होती हैं और दीर्घकालीन निवेश के लिए वे सर्वश्रेष्ठ हैं।

उदाहरण के लिए

“लार्ज कैप” फंड वे हैं जो उन कंपनियों में प्रमुखता से निवेश करते हैं जो वड़े स्थापित व्यवसाय वाली हैं

मिड कैप” फंड जो मध्यम आकार की कंपनियों में निवेश करते हैं।

स्मॉल कैप” फंड जो छोटे आकार की कंपनियों में निवेश करते हैं

मल्टी कैप” फंड जो बड़ी, मध्यम व छोटी कंपनियों के मिश्रण में निवेश करते हैं।

सेक्टर” फंड उन कंपनियों में निवेश करते हैं तो एक प्रकार के व्यवसाय से संबंधित होती हैं। जैसे प्रौद्योगिकी फंड वे हैं जो प्रोद्योगिकी कंपनियों में ही निवेश करते हैं

थेमेटिक” फंड वे हैं जो साझा थीम में निवेश करते हैं। जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर फंड जो उन कंपनियों में निवेश करते हैं जो इंफ्रास्ट्रक्चर सेगमेंट की वृद्धि से लाभ हासिल करती हैं

Tax Saving Fund कर-बचत फंड

ELSS एक प्रकार का इक्विटी फंड है और यह एकमात्र म्यूचुअल फंड है,जिसमें आयकर अधिनियम की धारा 80 C के तहत 1.5 लाख रुपये तक की टैक्स छूट मिलती है।

आय या बॉन्ड या नियत आय फंड

ये नियत आय प्रतिभूतियों जैसे सरकारी प्रतिभूतियां या बॉन्ड, कॉमर्शियल पेपर या डिबेंचर, डिपॉज़िट के बैंक सर्टीफिकेट और ट्रेजरी बिल, कॉमर्शियल पेपर जैसे मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करते हैं।

ये तुलनात्मक रूप से सुरक्षित निवेश होते हैं और आय निर्माण के लिहाज से उपयुक्त होते हैं।

लिक्विड, लघु अवधि, फ्लोटिंग दर, कारपोरेट ऋण, डायनामिक बॉन्ड, गिफ्ट फंड आदि उदाहरण हो सकते हैं।

हाइब्रिड फंड

ये इक्विटी और नियत आय दोनो में निवेश करते हैं, इस प्रकार से ये वृद्धि संभावनाओं के साथ-साथ आय निर्माण का सर्वश्रेष्ठ प्रदान करते हैं।

एग्रेसिव बैलेन्स्ड फंड, कंसरवेटिव बैलेन्स्ड फंड, पेंशन फंड, चाइल्ड प्लान और मासिक आय योजना आदि इसके उदाहरण हैं।

इक्विटी फंड्स क्या होते हैं?

इक्विटी फंड म्यूच्यूअल फंड की वो स्कीम है, जो खासकर शेयर्स/कंपनी के स्टॉक्स में निवेश करती है| इन्हें ग्रोथ फंड (वृद्धि फंड) भी कहते हैं|

इक्विटी फंड्स सक्रिय या निष्क्रिय होते हैं| सक्रिय फंड में, फंड मेनेजर बाज़ार की जांच कर, कंपनियों पर शोध कर उनके प्रदर्शन को परख, सबसे बेहतर विकल्पों को चुनता है|

निष्क्रिय फंड में फंड मेनेजर ऐसा पोर्टफोलियो बनाता है जो बाज़ार के प्रचलित लोकप्रिय सूचकांक, जैसे सेंसेक्स या निफ्टी फिफ्टी का अक्स होते है|

अलावा इसके, बाजार पूंजीकरण के अनुसार भी इक्विटी विभाजित किये जाते हैं, अर्थात, पूंजी बाज़ार एक कंपनी के सम्पूर्ण इक्विटी का क्या मूल्यांकन आंकता है| फंड्स लार्ज कैप, मिड कैप, छोटे और सूक्ष्म हो सकते हैं|

इसके आगे भी वर्गीकरण हो सकते हैं जैसे विविध या क्षेत्रीय वर्गीकरण/विषयगत वर्गीकरण| पहले वर्ग में, सम्पूर्ण बाज़ार में उपलब्ध स्टॉक्स के विस्तार से स्कीम चुनकर निवेश होता है जबकि दूसरे वर्ग में एक वर्ग, क्षेत्र या विषय विशेष के स्टॉक्स में निवेश होता है, जैसे इन्फोटेक या इंफ्रास्ट्रक्चर|

इस प्रकार, इक्विटी फंड तत्वतः/अनिवार्य रूप से कंपनी शेयर में निवेश करता है और एक आम निवेशक को पेशेवर प्रबंधन के फायदे मुहैय्या कराता है|

डेब्ट फंड क्या हैं?

डेब्ट फंड ऐसा म्यूच्यूअल फंड स्कीम है जो निश्चित आय उपकरणों में निवेश करता है, जैसे कॉर्पोरेट और सरकारी बांड, कॉर्पोरेट डेब्ट सिक्योरिटीज और मुद्रा बाज़ार उपकरण आदि जो पूँजी में मूल्य वृद्धि प्रस्तावित करते हैं|

डेब्ट फंड्स, आय फंड और बांड फंड के नाम से भी जाने जाते हैं|

डेब्ट फंड्स में निवेश के कुछ प्रमुख लाभ उसका कम लागत वाला स्वरुप, अपेक्षाकृत स्थिर मुनाफे, अपेक्षाकृत उच्च तरलता और वाजिब सुरक्षा हैं|

डेब्ट फंड्स उन निवेशकों के लिए आदर्श हैं जो नियमित आय का लक्ष्य लिए चलते हैं और जोखिम नहीं उठाना चाहते| डेब्ट फंड्स चूंकि कम अस्थिर होते हैं, इक्विटी फंड्स की तुलना में कम जोखिम भी लिए होते हैं| अगर आप पारंपरिक नियत आय उत्पादों जैसे बैंक जमा में बचत करते आये हैं, और आप स्थिर मुनाफे की तलाश में है जो कम अस्थिरता लिये है, डेब्ट म्यूच्यूअल फंड आपके लिए एक बढ़िया विकल्प हो सकता है, इसलिए कि ये आपको आपके वित्तीय लक्ष्यों को प्रभावकारी कर कौशल के साथ हासिल करने में मदद करते हैं जिससे आप बेहतर लाभ प्राप्त कर पाते हैं|

संचालन के तरीकों की बात करें तो डेब्ट फंड्स दूसरे म्यूच्यूअल फंड्स स्कीमों से अलग नहीं हैं| तथापि, पूँजी सुरक्षा की शर्तों पर, डेब्ट फंड्स का पलड़ा इक्विटी फंड्स से भारी रहता है|

ELSS फंड क्या है?

ELSS इक्विटी बद्ध बचत स्कीम/योजना का नाम है, जो किसी व्यक्ति या HUF को आयकर एक्ट 1961 के धारा 80C के तहत 1.5 लाख तक की आमदनी पर छूट प्रदान करता है|

इस प्रकार, अगर किसी निवेशक को 50000/- ELSS में निवेश करने हैं, तब ये राशि उसके समूचे कर योग्य आमदनी से घटा दी जायेगी जिससे कर भार कम हो जाएगा|

इन स्कीमों की तीन साल की लॉक इन अवधि होती है जिसकी गनणा इकाई आवंटन के दिन सी शुरू होती है| लॉक इन अवधि की समाप्ति के बाद इकाइयों को बदलने या छुडाने के विकल्प की आजादी होती है| ELSS वृद्धि और लाभांश, दोनों ही विकल्प प्रस्तुत करते हैं| निवेशक SIP (सिस्टेमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान) के ज़रिये भी निवेश कर सकते हैं और एक वित्तीय वर्ष में 1.5 लाख तक का निवेश, कर छूट योग्य भी हो जाता है|

इंडेक्स फंड क्या है?

इंडेक्स फंड्स ऐसे निष्क्रिय रूप से प्रबंधित फंड्स होते हैं जो बाज़ार के लोकप्रिय इंडेक्सों का अनुकरण (नकल) करते हैं। फंड मैनेजर फंड का पोर्टफोलियो बनाने के लिए उद्योगों और शेयरों का चुनाव करने में सक्रिय भूमिका नहीं निभाता बल्कि केवल उन सभी शेयरों में निवेश करता है जो अनुकरण (नकल) किए जाने वाले इंडेक्स में शामिल हैं। फंड में शेयरों की हिस्सेदारी इंडेक्स में प्रत्येक शेयर की हिस्सेदारी से बहुत हद तक मेल खाती है। यह निष्क्रिय निवेश है, यानि, फंड का पोर्टफोलियो बनाते हुए फंड मैनेजर केवल इंडेक्स की नकल करता है और हर समय उसके इंडेक्स के अनुरूप पोर्टफोलियो का प्रबंधन करता है।

अगर इंडेक्स में शेयर की हिस्सेदारी बदलती है, तो पोर्टफोलियो में उस शेयर की हिस्सेदारी को इंडेक्स के साथ संरेखित रखने के लिए फंड मैनेजर को उसके यूनिट्स खरीदने या बेचने पड़ेंगे। यद्यपि निष्क्रिय प्रबंधन को फ़ॉलो करना आसान है, लेकिन ट्रैकिंग एरर की वजह से फंड हमेशा एक जैसे रिटर्न नहीं देता।

ट्रैकिंग एरर इसलिए होता है क्योंकि इंडेक्स की सिक्योरिटीज़ (प्रतिभूतियों) को हमेशा समान अनुपात में होल्ड करना आसान नहीं होता और ऐसा करने में फंड को ट्रांज़ैक्शन का खर्च आता है। ट्रैकिंग एरर के बावजूद, इंडेक्स फंड्स उन लोगों के लिए सबसे उपयुक्त हैं जो म्यूचुअल फंड्स या अलग-अलग शेयरों में निवेश करने का जोखिम नहीं उठाना चाहते लेकिन व्यापक बाज़ार तक पहुँच का फ़ायदा हासिल करना चाहते हैं।

म्यूच्यूअल फंड में रिटर्न्स कैसे मिलता है?

किसी भी और संपत्ति की तरह ही, म्यूच्यूअल फंड्स से अर्जित प्रतिफल का हिसाब एक अवधि में आये आपके निवेश में मूल्य वृद्धि को शुरुआती निवेश के साथ तुलना कर लगाया जाता है| म्यूच्यूअल फंड का नेट एसेट वैल्यू म्यूच्यूअल फंड का मूल्य है जिसका इस्तेमाल म्यूच्यूअल फंड निवेश पर अर्जित प्रतिफल की गणना करने में होता है| एक अवधि पर अर्जित प्रतिफल का हिसाब खरीद के वक़्त NAV और बेचने के वक़्त NAV के अंतर से लगाया जाता है और उस अंतर को १०० से गुना कर प्रतिशत निकाला जाता है| सम्पूर्ण प्रतिफल की गणना करते समय धारण अवधि  / होल्डिंग पीरियड में फण्ड द्वारा किया गया कोई भी आय वितरण और शुद्ध प्रतिफल वितरण पूँजी वृद्धि में जोड़ दिया जाता है|

म्यूच्यूअल फंड धारण की एक निश्चित अवधि के दौरान NAV में आयी बढ़त को पूँजी वृद्धि कहेंगे| चूंकि किसी भी फंड का NAV पोर्टफोलियो में शामिल स्टॉक के मूल्यों से लिया जाता है, और ये मूल्य रोज़ घटते – बढ़ते हैं, NAV में एक अवधि में आये बदलाव जहां  पूँजी वृद्धि को दर्शाते हैं, वहीं आपके होल्डिंग्स/ संपत्ति में आये घाटे को भी दर्शाते हैं| फण्ड हाउस से प्राप्त अकाउंट स्टेटमेंट / खाता विवरण से आपके प्रतिफल का प्रदर्शन आप जान सकते हैं| इस विवरण में किया गया लेन- देन और आपके निवेश पर मिला प्रतिफल दोनों दर्ज रहते हैं|

टिपण्णी; फण्ड के NAV में गिरावट वितरित किये गए प्रतिफल और लागू किये गए सांविधिक लेवी / स्टेचूटोरी लेवी पर निर्भर है|

SIP क्या है?

सिस्टेमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) म्यूच्यूअल फंड्स द्वारा प्रस्तावित एक ऐसा निवेश का जरिया है जिसके माध्यम से एक व्यक्ति एक निर्धारित रकम, नियमित अंतराल में म्यूच्यूअल फंड्स के किसी स्कीम में – जैसे मासिक या त्रैमासिक, बजाय एक मुश्त रकम की अदायगी के, निवेश कर सकता है| यह किश्त ५०० रुपये प्रति माह की मामूली रकम भी हो सकती है जो बहुत कुछ रेकरिंग डिपाजिट (आवर्ती जमा) से मिलती-जुलती है| ये इसलिए भी आसान है क्योंकि आप अपने बैंक को ये स्थाई अनुदेश दे सकते हैं कि आपके खाते से ये रकम हर माह डेबिट (निकासी) होता रहे|


SIP भारतीय म्यूच्यूअल फंड्स निवेशकों के बीच काफी लोकप्रिय हो चला है, इसलिए कि ये निवेशक को बाज़ारों के उथल-पुथल और समय गणना की चिंता से अलग रख एक अनुशाशित तरीके से निवेश में सहायता करता है| लम्बी अवधि के निवेश के लिए म्यूच्यूअल फंड्स द्वारा प्रस्तावित SIP निवेश की दुनिया में क़दम रखने का यकीनन सबसे बढ़िया रास्ता हैं|


निवेश से सर्वाधिक और श्रेष्ठ प्राप्ति के लिए, बेहद ज़रूरी है लम्बी अवधि के लिए निवेश हो, जिसका सीधा अर्थ यह कि आप जल्द से जल्द निवेश आरम्भ करें ताकि आपके लक्ष्य लाभ अधिकतम हों|

NAV क्या है?

म्यूचुअल फंड में NAV क्या है? म्युचुअल फंड यूनिट्स को फंड की नेट एसेट वैल्यू (NAV) के आधार पर अलोकेट किया जाता है।

म्यूचुअल फंड नेट एसेट वैल्यू (NAV) फंड की प्रति यूनिट कीमत को मापता है। दूसरे शब्दों में, NAV वह मूल्य है जिस पर निवेशक AMC से यूनिट खरीद या रिडीम कर सकते हैं। यह म्यूचुअल फंड का आंतरिक मूल्य है।

आम तौर पर, फंड हाउस म्यूचुअल फंड यूनिट्स को 10 रुपये के आधार मूल्य पर जारी करते हैं। यह मूल्य बढ़ता है क्योंकि फंड मैनेजमेंट के तहत संपत्ति (AUM) के मूल्य में वृद्धि करता है। इसी तरह, जब कोष का बाजार मूल्य घटता है तो NAV मूल्य गिर सकता है। इस प्रकार, NAV एक फंड के सही मूल्य का प्रतिनिधित्व करता है।

क्या इसका मतलब यह है कि NAV शेयर के बाजार मूल्य के समान है? चलो पता करते हैं।

NAV और बाजार मूल्य में क्या अंतर है?

जबकि आप सोच सकते हैं कि NAV शेयर की कीमत के समान है क्योंकि, ऐसा नहीं है की दोनों ही संबंधित फंड/कंपनी के मूल्य को दर्शाते हैं। जो आपूर्ति और मांग की गतिशीलता से निर्धारित होती है वह शेयर की कीमत के विपरीत, NAV सेक्युरिटीज़ के बाजार मूल्य पर देनदारियों और फंडिंग खर्चों में फैक्टरिंग के बाद आधारित होती है।

इसके अतिरिक्त, एक फंड का NAV उसके भविष्य के परफॉर्मेंस का संकेत नहीं है, जो कंपनी के शेयर की कीमत के विपरीत है, जो कंपनी की संभावनाओं का प्रतीक है। 


बढ़ी हुई मांग के कारण म्यूचुअल फंड का NAV मूल्य नहीं बढ़ता है। यह मूल्य तभी बढ़ता है जब AUM का बाजार मूल्य बढ़ता है।

अंत में, शेयर की कीमत की तरह गतिशील होने के बजाय, NAV की गणना बाज़ार बंद होने के एक दिन पहले की जाती है। 

NAV की गणना कैसे की जाती है?


अब जब हम जानते हैं कि NAV शेयर की कीमत के समान नहीं है, तो हम NAV की गणना कैसे करते हैं?


मुख्य रूप से, फंड के NAV की गणना दो तरीकों से की जा सकती है: सामान्य NAV गणना और दैनिक NAV गणना। हम यह नीचे समझते हैं

सामान्य NAV गणना

सामान्य NAV गणना को समझने का एक बेहतर तरीका एक उदाहरण के माध्यम से है। मान लें कि आप रुपये के मौजूदा एनएवी मूल्य के साथ एक म्यूचुअल फंड में 100 रुपये के SIP के माध्यम से 50,000 प्रति माह निवेश करना चाहते हैं। नतीजतन, आप खरीद के दिन प्रति माह 50 इकाइयां खरीद सकते हैं।

दैनिक NAV गणना


SEBI ने सभी AMC को एक फंड के NAV की गणना करने और इसे अपनी वेबसाइट पर रात 9 बजे तक पोस्ट करने के लिए अनिवार्य कर दिया है। इस प्रकार, जब बाजार बंद होता है, फंड हाउस अपने पोर्टफोलियो के अंतिम मूल्य का अनुमान लगाते हैं, और NAV की गणना करते हैं, जिसे फंड के क्लोज़िंग प्राइज़ के रूप में भी जाना जाता है। यह कीमत अगले दिन की शुरुआती कीमत बन जाती है।

म्यूचुअल फंड के क्लोज़िंग प्राइज़ की गणना करने के लिए निम्नलिखित नेट एसेट वैल्यू फॉर्मूला का उपयोग किया जाता है:

NAV फॉर्मूला = (संपत्ति – देयताएं)/ बकाया शेयर इकाइयों की कुल संख्या

उदाहरण के लिए, एक फंड पर विचार करें जिसमें 300 लाख रुपये संपत्ति में हैं। देनदारियों में 100 लाख, और उसके निवेशकों को 10 लाख इकाइयां जारी की हैं 

NAV = रु. (200 – 100) / 10

NAV = रु. 20 पर यूनिट

निवेशकों को ध्यान देना चाहिए कि फंडिंग खर्च, जैसे एडमिनिस्ट्रेशन और मैनेजमेंट खर्च, वितरण लागत, विज्ञापन खर्च आदि, प्रोपोर्शनल रूप से चार्ज किए जाते हैं और फंड की NAV गणना में कैलकुलेट किए जाते हैं।

इस प्रकार, एक फंड का NAV कंपनी के बुक वैल्यू के समान होता है क्योंकि यह नकदी और देनदारियों के लिए रखी गई सेक्युरिटीज़ के कुल मूल्य को कैलकुलेट करता है और इस मूल्य को बकाया यूनिट्स से विभाजित करता है।


निर्णय लेने में NAV की क्या भूमिका है?

भले ही NAV मूल्यों को दैनिक रूप से अपडेट किया जाता है, जब किसी विशेष म्यूचुअल फंड में निवेश करने के बारे में अंतिम निर्णय लेने की बात आती है तो उनकी बहुत कम प्रासंगिकता होती है। 

उदाहरण के लिए, नीचे हम 30 अक्टूबर 2022 तक कुछ फंडों के NAV बताते हैं:

फंड NAV (Rs.)

ICICI प्रूडेंशियल ब्लू –चिप फंड – डायरेक्ट प्लान–ग्रोथ लार्ज कैप फंड 74.35

IDBI इंडिया टॉप 100 इक्विटी फंड – डायरेक्ट प्लान–ग्रोथ लार्ज कैप फंड 44.94

निप्पोन इंडिया लार्ज कैप फंड – डायरेक्ट प्लान–ग्रोथ लार्ज कैप फंड 59.33

क्या आप केवल उनके NAV मूल्यों से इन फंडों के बारे में कोई जानकारी प्राप्त कर सकते हैं? क्या कम कीमत अवमूल्यन या खरीदारी के अवसर का संकेत देती है? दोनों प्रश्नों का उत्तर “नहीं” है।

इसलिए, हम केवल उनके NAV मूल्यों पर फंडों की तुलना नहीं कर सकते हैं। न ही उच्च NAV मूल्य फंड के बेहतर होने का संकेत देता है। इसका तात्पर्य केवल यह है कि फंड की एसेट वैल्यू अधिक है।

चूंकि एक म्युचुअल फंड अपनी सारी आय और यूनिट धारकों को प्राप्त लाभ वितरित करता है, एक फंड का NAV इसके परफॉर्मेंस को मापने के लिए रिलेवेंट नहीं है। इसके बजाय, निवेशकों को इसके प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के लिए फंड द्वारा उत्पन्न कुल रिटर्न पर ध्यान देना चाहिए।

क्या आपको कम NAV वैल्यू वाले फंड में निवेश करना चाहिए?

जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, कम NAV मूल्य एक सस्ते मूल्यांकन या खरीदारी के अवसर को नहीं दर्शाता है। इसके बजाय, यह केवल कम एसेट बेस को निर्दिष्ट करता है। आइए इस कंसेप्ट को एक उदाहरण के माध्यम से समझते हैं। 30,000 रुपये की प्रारंभिक राशि मान लें, जिसे फंड A या फंड B में निवेश किया जा सकता है।


                             फंड A फंड B

करंट NAV (रु.) 300 150

एलोकेटेड यूनिट्स 100 200

विकास 10% 10%

नया NAV (Rs.) 330 165

निवेश का मूल्य (रु.) 33,000 33,000

यहां, एक काल्पनिक फंड B का NAV मूल्य कम है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च यूनिट अलॉटमेंट होता है। A और B दोनों फंडों में 10% की वृद्धि दर मानते हुए, A और B दोनों फंडों का नया निवेश मूल्य समान रहता है।

इस प्रकार, एक NAV मूल्य केवल एक विशिष्ट समय पर यूनिट्स को खरीदने की लागत को दर्शाता है। एक उच्च NAV, हालांकि, संकेत दे सकता है कि फंड पुराना है, इस प्रकार बड़े AUM की व्याख्या करता है। लेकिन NAV वैल्यू फंड के परफॉर्मेंस का उपयोगी इंडिकेटर नहीं है।

एक म्युचुअल फंड का NAV केवल यूनिट खरीदने या बेचने की कीमत दिखाता है; किसी फंड के परफॉर्मेंस की उसके साथियों से तुलना करना उचित उपाय नहीं है। इसके बजाय, निवेशकों को म्युचुअल फंड में निवेश करने से पहले हिस्टोरिकल परफॉर्मेंस के रुझान, व्यय अनुपात और प्रबंधन की गुणवत्ता सहित अन्य मापदंडों पर भरोसा करना चाहिए। निवेशक SIP के माध्यम से निवेश करना चुन सकते हैं, क्योंकि यह NAV में उतार–चढ़ाव का मुकाबला करता है, जिसके परिणामस्वरूप रुपये की लागत औसत होती है।

Mutual Fund के क्या लाभ है? 

(Benefits of Mutual Funds)

म्यूच्यूअल फण्ड में निवेश करने के बहुत सारे फायदे है

सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह जोखिमों के अधीन है इसमें आपके पैसे डूबने का चांस बहुत कम होता है।

इस में कोई भी व्यक्ति निवेश कर सकता है।

म्यूच्यूअल फंड में इन्वेस्टर्स को कई स्कीम्स प्रदान की जाती है वे अपनी क्षमता के अनुसार उसमें निवेश कर सकते है। आप 500 रूपये की न्यूनतम राशि के साथ इसमें इन्वेस्ट कर कर सकते है।

भारत में म्यूच्यूअल फंड को SEBI द्वारा नियंत्रित किया जाता है जो निवेशकों के हितों का पूरा ध्यान रखते है।


म्यूचुअल फंड के नुकसान क्या है?

म्यूच्यूअल फण्ड से हमें लम्बे समय के लिए फायदा ही मिलता है लेकिन अगर आप एक इन्वेस्टर है और म्यूच्यूअल फण्ड में पैसा लगाना चाहते है तो आपको म्यूचुअल फण्ड की सीमाएं जानना चाहिए अगर आपको ये नुकसान की स्थिति पता रहेगी तो उस नुकसान को काफी हद तक कम कर सकते है या फिर नुकसान से बच सकते है। म्यूचुअल फंड में निवेश की कुछ सीमाएं होती है। जैसे-

1. Mutual Fund में Lock In Period :

2. Exit Load लेना :

3. रिटर्न की ग्यारंटी नहीं :

4. नियंत्रण की कमी :

5. Mutual Fund में टैक्स :

6. स्कीम सेलेक्ट करने में गलती होना :

7. Mutual Fund की लागत :

आइए इन सीमाओं को विस्तार से समझते है-


1. Mutual Fund में Lock In Period :

म्यूचुअल फंड के नुकसान: वैसे Mutual Fund में लॉक इन अवधि नहीं होती है लेकिन Close Ended Scheme और ELSS Scheme में Lock-In-Period होता है. अगर आपको Lock In Period के लिए निवेश करना है तो उन्ही पैसो को निवेश में डाले जिन की आपको आवश्यकता नहीं है अन्यथा आपको पैसे की जरुरत पड़ने पर आपको समस्याओ का सामना करना पड़ सकता है इसलिए निवेश से पहले अपनी आर्थिक स्थिति को जरुर देखे.

2. Exit Load लेना :

अगर आपके Mutual Fund में निवेश किया और उस निवेश किये हुए पैसो को 1 साल के अन्दर निकाल लेते हो तो उस पर 1% का Exit Load देना पड़ता है Exit Load इसलिए लगाया जाता है क्योकि निवेशक कोई स्कीम में एंट्री और एक्सिड करते रहते है और उन लोगो को नुकसान उठाना पड़ता है इसलिए निवेश किये हुए पैसो को एक निश्चित अवधि तक बनाये रखे तभी इसका फायदा आपको मिल सकता है.

3. रिटर्न की ग्यारंटी नहीं :

शेयर बाज़ार में कुछ येसे इन्वेस्टमेंट होते है जहा आपको एक निश्चित रिटर्न की ग्यारंटी मिलती है लेकिन Mutual Fund में येसा नहीं होता है अगर आपको स्टॉक मार्केट की अच्छी नालेज है तो Mutual Fund की अपेक्षा स्टॉक मार्केट में ज्यादा पैसा बना सकते है लेकिन स्टॉक मार्केट में हमेशा रिस्क बना रहता है कहते है ना जितना ज्यादा रिस्क लोगे उतना ही रिटर्न मिलने के चांस होते है Mutual Fund में रिटर्न की ग्यारंटी स्टॉक मार्केट के उतार चड़ाव से होती है अगर आप Mutual Fund में निवेश से एक अच्छे रिटर्न का आशा रखते है तो आपको लम्बे समय के लिए निवेश करना होगा तभी एक अच्छा रिटर्न प्राप्त कर सकते है

4. नियंत्रण की कमी :

दोस्तों हम सभी जानते है म्यूच्यूअल फण्ड में जो पैसा निवेश करते है उस पैसो को नियंत्रण करने के लिए एक फण्ड मेनेजर होता है जो उस फण्ड को मैनेज करता है और वह हमारे पैसो को अपने हिसाब से शेयर मार्केट और अन्य बाज़ार में लगाता है यह सभी निवेशको के द्वारा लगाया गया पैसा फण्ड मेनेजर के द्वारा नियंत्रण किया जाता है जिसके लिए आपके फण्ड को मैनेज करने के लिए एक मेनेजर होता है जिससे आपके निवेश में रिस्क बहुत कम होता है.

5. Mutual Fund में टैक्स :

आपके Mutual Fund से जो रिटर्न मिलता है उस पर भी टैक्स लगता है जिससे होने वाला मुनाफा में कुछ प्रतिशत की कमी होती है अगर आप इक्विटी में 12 महीने से कम अवधि के लिए Short Term Capital Gain से 15% टैक्स देना होता है और Long Term Capital Gain में यानी की 12 महीने से ज्यादा में आपको 12% का टैक्स देना होता है इसके अलावा एक लम्बे समय के निवेश में भी Maturity Fund में निवेश करने से आपको Maturity राशी पर टैक्स देना पड़ सकता है तो ये रहे Mutual Fund के टैक्स के रूप में होने वाले नुकसान.


6. स्कीम सेलेक्ट करने में गलती होना :

Mutual Fund की कोई भी स्कीम में निवेश से पहले उस स्कीम के फंडामेंटल को अच्छे से समझना चाहिए तभी आपको निवेश करना चाहिए वरना बहुत सारे लोग बिना सोचे समझे किसी भी Mutual Fund स्कीम में निवेश कर देते है और फिर उनको नुकशान का सामना करना पड़ता है.

7. Mutual Fund की लागत :

Mutual Fund में निवेश से पहले आपको उसकी लगता को समझना चाहिए अगर आप Mutual Fund में निवेश कर रहे है तो आपका पैसा कहा कहा लग सकता है दोस्तों Mutual Fund को कण्ट्रोल करने के लिए निवेश किया गया पैसा में से कुछ हिस्सा Expensive Ratio के रूप में Fund House को दिया जाता है अगर आप कम अवधि के निवेश करते है तो यह पैसा आपको कम लगेगा लेकिन वही अगर आप लम्बे समय के लिए निवेश करते है तो यह पैसा अवधि के फलस्वरूप बड जाता है इसलिए हम हमेशा कहते है Mutual Fund में निवेश से पहले उसके खर्चो को जानना बहुत जरुरी होता है.

म्यूच्यूअल फण्ड से सम्बंधित पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

Mutual Funds बहुत सारे लोगों के पैसे से बना हुआ फण्ड होता है. जिसमे लगाया गया पैसे अलग अलग जगहों पर निवेश करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है


क्या म्यूचुअल फंड में निवेश करना सुरक्षित है?

म्यूचुअल फंड कभी पूरी तरह से सुरक्षित नहीं हो सकते हैं। यह बाज़ार से जुड़े निवेश पर निर्भर करता हैं।

म्यूचुअल फंड में कितना निवेश करे :

वैसे Mutual Fund में निवेश करना सुरक्षित माना जाता है और हर व्यक्ति अपनी आय के अनुसार निवेश करता Mutual Fund स्टॉक मार्केट से थोडा अलग होता है स्टॉक मार्केट में निवेश से पहले आपको थोड़ी जानकारी होनी चाहिए लेकिन Mutual Fund में कम नालेज के साथ भी निवेश सुरु किया जा सकता है अगर आप Mutual Fund में SIP मतलब Systematic Investment Plan से अपनी इन्वेस्टमेंट सुरु कर रहे है तो आप मिनिमम 500 रूपए से इन्वेस्टमेंट सुरु कर सकते है हर सुरुआती निवेशक के लिए यह एक अच्छा इन्वेस्टमेंट माना जाता है.

म्यूच्यूअल फण्ड में कितना रिटर्न मिलता है?

अमूमन म्यूचुअल फंड्स में 10 से 12 फीसदी तक का अनुमानित रिटर्न मिलता है. 

Mutual Fund कैसे काम करता है?

इसमें निवेशक एकमुश्त रकम डेट फंड में लगाते हैं. इसके बाद एक तय समय अंतराल पर उस स्कीम से थोड़ा-थोड़ा निवेश इक्विटी स्कीम में ट्रांसफर करते रहते हैं. 

SIP और लम्पसम क्या है?

एस.आई.पी नियमित समय पर म्यूचुअल फंड में एक निश्चित राशि निवेश (Invest) करते हैं जबकि लम्पसम निवेश (Investment) एक बार में किए जाने वाले निवेश (invest) हैं।

लिक्विड फंड क्या है?

लिक्विड फंड एक तरह के म्यूचुअल फंड हैं। ये गवर्नमेंट सिक्योरिटीज, सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट, ट्रेजरी बिल्स, कॉमर्शियल पेपर्स और दूसरे डेट इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करते हैं। ये ऐसे फंड होते हैं, जिनमें 91 दिन तक मेच्योरिटी पीरियड यानी छोटी अवधि के लिए भी निवेश किया जा सकता है। इनमें जोखिम भी कम होता है। इस फंड में सेविंग्स अकाउंट से ज्यादा ब्याज मिल जाता है। हालांकि आप चाहें तो 91 दिन से पहले भी पैसा निकल सकते हैं। जरूरत पर लिक्विड फंड को एक दिन के अंदर ही कैश कराया जा सकता है।

लिक्विड फंड में निवेश कब करें?

इस फंड में निवेश सिर्फ तभी करना बेहतर होता है जब आपके पास कहीं से पैसा आया हो हुए वह आपके पास कुछ दिनों के लिए सेविंग अकाउंट में ही रखा रहने वाला हो। अगर आपका पैसा कुछ समय के लिए खाली पड़ा हो तभी इसमें निवेश करना फायदेमंद होता है। ऐसे में अपने पैसे को सेविंग्स या करंट अकाउंट में रखने की बजाय उसे लिक्विड फंड में डाल दें।

सेविंग अकाउंट में कितना ब्याज मिलता है?

देश का सबसे बड़ा सेविंग अकाउंट पर 2.70% सालाना ब्याज दे रहा है। वहीं पोस्ट ऑफिस सेविंग अकाउंट पर आपको 4% ब्याज मिल रहा है। ज्यादातर बैंक सेविंग अकाउंट पर 4% तक का ही ब्याज ऑफर करते हैं।

सेविंग अकाउंट या लिक्विड फंड किसमे ज्यादा रिटर्न मिलता है?

सेविंग बैंक अकाउंट पर आमतौर पर 2.5 -4% की दर से ब्याज मिलता है। इसकी तुलना में, लिक्विड फंड योजनाएं आपको 6.6% -6.7% की उच्च दर से रिटर्न प्रदान करती हैं। इसमें मिनिमम बैलेंस या मिनिमम इन्वेस्ट के रूप में कुछ भी बाध्यता नही होती है। इसलिए, एक कम समय की अवधि के लिए लिक्विड फंड ज्यादा रिटर्न दे सकता है।

सेविंग अकाउंट या लिक्विड फंड किसमें कितना रिस्क रहता है?

लिक्विड फंड्स में बहुत कम रिस्क होती है क्योंकि वे मुख्य रूप से डेब्ट फंड्स में निवेश करते हैं जिसमे बहुत कम रिस्क होता है। हालांकि, यह समझना जरूरी है कि लिक्विड फंड में या किसी भी म्यूचुअल फंड में इन्वेस्टमेंट विशेष रूप से, बाजार पर निर्भर रहता है। बाजार की परिस्थितियों के आधार पर, नेट एसेट वैल्यू (NAV) बदलता है। सेविंग बैंक अकाउंट्स में आम तौर पर कोई इन्वेस्टमेंट का रिस्क नहीं होता है।


बचत खाते की बजाय तरल निधि में निवेश क्यों करना चाहिए?

लिक्विड फंड्स अल्पकालिक निवेश साधनों जैसे गवर्नमेंट सिक्योरिटीज, जमा प्रमाण पत्र और ट्रेजरी बिल आदि में निवेश करते हैं।

जब भी कोई बिना किसी जुर्माना या एक्जिट लोड के निवेश करना या निकालना चाहे तो उसे लचीलापन मिलता है।

कुछ फंड हाउस पैसे निकालने के लिए एटीएम कार्ड भी देते हैं। यह आगे आपकी सुविधा में जोड़ता है।

कैपिटल गेन टैक्स (CGT) क्या है?

आजकल लोग अपना धन स्टॉक तथा म्यूच्यूअल फंड में लगाकर अच्छी कमाई कर लेते है। सरकार उनसे टैक्स भी ज्यादा लेती है. इक्विटी, इक्विटी म्युचुअल फंड (equity mutual fund) में वे ही लोग पैसा लगाते हैं जिनकी कमाई बहुत है और तमाम खर्चे करने के बाद अच्छी बचत हो जाती है. ऐसे में सरकार इस तरह के निवेश से होने वाली कमाई पर भी टैक्स लेती है. इस टैक्स को कैपिटल गेन टैक्स (Capital gain tax) कहते हैं. कैपिटल गेन टैक्स दो तरह का होता है, शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म. इन पर टैक्स की दर भी अलग-अलग होती है.

शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन (STCGT) टैक्स क्या है?

अगर आपने कोई शेयर खरीदा या फिर किसी म्युचुअल फंड में पैसा लगाया और उसे एक साल के भीतर ही उसे बेच दिया तो उससे होने वाली कमाई पर लगेगा 15 फीसदी टैक्स. चाहे आपका टैक्स स्लैब कोई भी हो. चाहे आप जीरो टैक्स में आते हों या फिर 30 फीसदी टैक्स वाले स्लैब में आते हैं, आपको शेयर या म्युचुअल फंड से होने वाली कमाई पर 15 फीसदी टैक्स देना होगा.

लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स (LTCGT)क्या है?

लंबी अवधि में किसी भी चल या अचल संपत्ति पर मिलने वाले प्रॉफिट पर लगने वाले टैक्‍स को लॉन्‍ग टर्म कैपिटल गेन टैक्‍स कहा जाता है. यह देश में पहले से ही मौजूद रहा है. 2018 से यह पहली बार स्‍टॉक मार्केट पर लगा है. इससे पहले यह प्रॉपर्टी समेत कई चीजों पर लगता रहा है. अलग-अलग सेगमेंट के हिसाब से लॉन्‍ग टर्म का कैलकुलेशन अलग-अलग होता है. 

पहले लॉन्ग टर्म कैपिटल टैक्स बहुत ही आसान था. इसमें अगर आपने 1 साल तक कुछ नहीं बेचा तो कुछ भी टैक्स नहीं लगेगा. लेकिन 2018 से सरकार ने इसमें कुछ बदलाव किए हैं. इसमें अब सरकार ने स्टॉक मार्केट से होने वाली कमाई को भी शामिल कर लिया है.

शेयर मार्केट से पहले सरकार घर, संपत्ति, जेवर, कार, बैंक एफडी, एनपीएस और बॉन्ड आदि की बिक्री से हासिल हुए मुनाफे पर कैपिटल गेन टैक्‍स वसूलती रही है. अब अगर पहली साल 1 लाख रुपए मुनाफा कमाया है तो कोई टैक्स नहीं लगेगा, लेकिन 1 लाख रुपए से अधिक के मुनाफे पर 10 फीसदी टैक्स देना होगा.

ELSS क्या है?

ELSS एक प्रकार का इक्विटी फंड है और यह एकमात्र म्यूचुअल फंड है,जिसमें आयकर अधिनियम की धारा 80 C के तहत 1.5 लाख रुपये तक की टैक्स छूट मिलती है। ELSS में 3 साल की सबसे छोटी लॉक-इन अवधि होती है जो कि सभी टैक्स बचाने वाले निवेश विकल्पों में से बेहतर है। जिसमें FD फिक्स्ड डिपॉजिट, PPF (पब्लिक प्रॉविडेंट फंड), NPS (नेशनल पेंशन सिस्टम), NSC (नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट), आदि शामिल हैं।

ELSS के क्या फायदे है?

ELSS में अन्य टैक्स सेविंग निवेश की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक रिटर्न/ लाभ/ लाभ देने की क्षमता होती है। एक ELSS आपको 15% -18% के बीच रिटर्न/ लाभ/ लाभ प्रदान कर सकता है।

ELSS: आयकर अधिनियम की धारा 80 C के तहत 1.5 लाख रुपये तक की टैक्स छूट के अलावा ELSS अन्य टैक्स लाभ भी देता है। FD के विपरीत, एक ELSS द्वारा एक साल में प्राप्त 1 लाख रु. तक के रिटर्न/ लाभ पर टैक्स नहीं लगता है।

SIP: ELSS अकेला ऐसा टैक्स सेविंग विकल्प है जो SIP की सुविधा देता है। इस माध्यम से निवेशक न्यूनतम 500 रु. तक की राशि से निवेश शुरू कर सकते हैं।

ELSS में किसे निवेश करना चाहिए ?

चूंकि ELSS एक बाज़ार से जुड़ा निवेश विकल्प है, इसलिए यह उच्च रिटर्न/ लाभ पाने की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए एक अच्छा टैक्स सेविंग विकल्प है। जो उच्च स्तर का जोखिम उठाने के लिए तैयार हैं तो 5 साल और उससे अधिक की लंबी अवधि में, ELSS निवेश आपकी इनकम में बढ़ोतरी करता है।

जो लोग जोखिम से बचना चाहते हैं और जो लंबी अवधि के लिए ELSS में निवेश नहीं करना चाहते हैं, वे अपने पैसे को FD, PPF जैसे अपेक्षाकृत सुरक्षित टैक्स सेविंग निवेश विकल्पों में निवेश कर सकते हैं।

ELSS में निवेश करने के लिए कौन योग्य होता है?

कोई भी वयक्ति जो अपनी म्यूचल फंड KYC की प्रक्रिया पूरी कर चुका है वह ELSS में निवेश कर सकता है।

ELSS में लॉक-इन पीरियड क्या होता है?

ELSS 3 साल की लॉक-इन अवधि के साथ आता है, जिसका अर्थ है कि ELSS में किए गए किसी भी निवेश को निवेश की तारीख से 3 साल पूरा होने से पहले वापस नहीं लिया जा सकता है। 3-वर्ष की अवधि के पूरा होने के बाद, यह निवेशकों पर निर्भर है कि वह अपना पैसा वापस लेना चाहते हैं या इस योजना में छोड़ देते हैं, जहां वह रिटर्न/ लाभ देना जारी रखेगा। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सभी टैक्स सेविंग निवेश विकल्पों के बीच, ELSS में सबसे कम लॉक-इन अवधि होती है। उदाहरण के लिए FD के लिए अन्य टैक्स सेविंग विकल्प 5 साल की लॉक-इन अवधि के साथ आते हैं और PPF में 15 साल।

ELSS किस तरह का रिटर्न/ लाभ देता है?

बाजार से संबंधित होने की वजह से, ELSS में अन्य टैक्स सेविंग निवेश विकल्पों की तुलना में अधिक रिटर्न/ लाभ उत्पन्न करने की क्षमता होती है। एक ELSS आपको 15% -18% के बीच रिटर्न/ लाभ प्रदान कर सकता है।


ELSS पर टैक्स कैसे लगाया जाता है?

ELSS निवेश प्रति वर्ष 1.5 लाख रुपये तक टैक्स फ्री होता है। अन्य सभी म्यूचुअल फंडों की तरह, ELSS अपने निवेशकों के लिए दो रूपों में इनकम देता है – डिवीडेंट और कैपिटल गेन्स ( रिडीम मूल्य और खरीद मूल्य के बीच का अंतर)।डिवीडेंट और कैपिटल गेन्स के लिए टैक्स अलग-अलग है। कैपिटल गेन्स को शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन्स (1 वर्ष से कम की अवधि) और लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स (1 वर्ष और अधिक की होल्डिंग अवधि) में विभाजित किया जा सकता है। एक ELSS में शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन नहीं होता है क्योंकि यह 3 साल के लॉक-इन के साथ आता है। ELSS पर कमाए लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन पर 10% की दर से टैक्स लगता है लेकिन तब जब वो र 1 लाख रु. से ज़्यादा हो।

ELSS में कम से कम व अधिकतम कितना निवेश किया जाता है?

ELSS में निवेश करने की कम से कम व अधिकतम निवेश की राशि स्कीम पर निर्भर करती है। पर सामान्यत: लम्पसम में कम से कम 5000 रुपये और SIP में कम से कम 500 से निवेश किया जा सकता है। इसकी कोई अधिकतम सीमा तय नहीं है।

क्या ELSS इंडेक्सेशन के लाभ के लिए योग्य है?

नही, ELSS से कमाए गए रिटर्न/ लाभ पर इंडेक्सेशन का लाभ नहीं मिलता है। इंडेक्सेशन के लाभ के लिए केवल डेट फंड ही योग्य होते हैं। इंडेक्सेशन के लाभ का मतलब है कि आपको मिले रिटर्न/ लाभ पर जब टैक्स लगाया जाएगा तो ये भी सुनिश्चित किया जाएगा की इस दौरान कितनी महंगाई बढ़ी है और बढ़ी महंगाई के हिसाब से कमाए गए रिटर्न/ लाभ में से कुछ राशि काटकर बची हुई राशि पर टैक्स लगाया जाएगा।

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