'दृष्टि' का साइलेंट किलर: 'ग्लूकोमा'

Silent Killer of Vision-Glucoma
Om Prakash Patidar

ग्लूकोमा को काला मोतिया भी कहते हैं। यह दृष्टि को शनै शनै बाधित करता हैl मरीज को इसका आभास मात्र भी नहीं होता है कि उसकी आंखें एक बहुत बड़े हादसे का शिकार होने जा रही है। इसीलिए इस बीमारी को 'साइलेंट किलर' का नाम भी दिया गया है।

ग्लूकोमा के लक्षण:-
आंखों के नंबर में जल्दी-जल्दी बदलाव, आंखों की बाहरी दृष्टि का कम होना, सिर दर्द, आंखों में कुछ भाग से दिखाई ना देना, प्रकाश के आसपास इंद्रधनुष्य छवि दिखना, आंखों में तेज दर्द, चेहरे पर भी दर्द, जी मचलना, दृष्टि पटल पर अंधेरे क्षेत्रों का एहसास, आंखों और चेहरे का तेज दर्द, आंखों की लाली, प्रकाश के चारों तरफ चमक के साथ धुंधली दृष्टि, मितली और उल्टी।


क्यों होता है ग्लूकोमा:-

आंख का वह तरल पदार्थ जिसे एक्यूअस ह्यूमर के नाम से जाना जाता है। आंखों का स्वस्थ्य और आकार बनाए रखने के लिए इसका प्रवाह आवश्यक होता है। आंखों में इस तरल पदार्थ का बनना आवश्यक वह सूखना  आंखों की स्वच्छता का प्रमाण हैl लेकिन अगर इस तरल पदार्थ के उत्पादन में वृद्धि होती है या तरल पदार्थ की निकासी में कमी होती हैl तो इस असंतुलन के कारण आंखों की नसों पर दबाव बढ़ने लगता हैl जिससे रोशनी ग्रहण करने वाली नस के लिए खून की सप्लाई कम हो जाती है। और ऐसे में  यह नात नष्ट होकर "ग्लूकोमा "को जन्म देती है।

उपचार:-
समय पर उपचार है आवश्यक: उपचार के अंतर्गत लेजर द्वारा चिकित्सा प्रबंधन, शल्य चिकित्सा प्रबंधन किए जाते हैं।दवाओं में आई ड्रॉप यानी बूंद की दवा अत्यंत आवश्यक मानी जाती हैl सर्जरी द्वारा एक ऐसा खुला क्षेत्र बनाया जाता है जिसमें आंख के तरल पदार्थ के लिए नया जल निकासी मार्ग बनाए जा सके।लेजर सर्जरी द्वारा  ट्रेबिक्यूलोप्लास्टी की जाती है। इसमें लेजर का उपयोग ट्रेपेकूलर के जल निकासी क्षेत्र को खोलने के लिए किया जाता हैl इरीडोटोमी में एक छोटा सा छेद बनाते हैं, इससे बहाव आसानी से हो सके।

काला मोतिया (Glucoma) और 
सफेद मोतिया (Cataract) क्या होता है?

काला मोतिया (ग्लूकोमा) और सफेद मोतिया (कैटरेक्ट) में काफी अंतर है। सफेद मोतियाबिंद ऑपरेशन से  ठीक हो जाता है, लेकिन काला मोतिया आंखों की रोशनी छीन लेता है। काला मोतिया के शिकार ज्यादातर मरीज अपनी आंखों की रोशनी गंवा बैठते हैं। कभी कभी आपको इसके कोई लक्षण नहीं दिखाई देते हैं, अचनाक ही आपको एक आंख से कम दिखाई देने लगता है। वहीं सफेद मोतिया से नई तकनीक आ जाने के कारण छुटकारा पाया जा सकता है।   

काला मोतिया व सफेद मोतिया में अंतर:-


काला मोतिया का सबसे खतरनाक पहलू यह है कि इस रोग में एक बार दृष्टि की जितनी हानि हो चुकी होती है, उसे किसी भी इलाज से वापस लाना मुश्किल होता है। इसके विपरीत कैटरेक्ट या सफेद मोतियाबिंद इतना खतरनाक नहीं है। इसमें ऑपरेशन के बाद आंखों की रोशनी को वापस लाया जा सकता है। सफेद मोतिया के इलाज के लिए फेमटोसेकंड लेजर  का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे सफेद मोतिया से निजात पाया जा सकता है।



काला मोतिया (ग्लूकोमा) क्या है?


काला मोतिया ऐसी बीमारी है जो आंखों में दबाव बढ़ने से जुड़ी हुई है। हमारी आंखों में एक तरल पदार्थ भरा होता है जिससे आंखों का आकार बनाए रखने में मदद मिलती है और लैंस तथा कार्निया को पोषण मिलता है। ऐसे में मरीज की आंखों से तरल पदार्थ ठीक से बाहर नहीं निकल पाता। इससे आंख के अंदर दबाव बढ़ जाता है और रक्त वाहिकाएं ऑप्टिक नर्व की ओर  बढ़ जाती हैं। नर्व कोशिकाएं धीरे-धीरे मरती जाती हैं और इसके साथ-साथ दृष्टिहीनता भी बढ़ती जाती है। जिसे ठीक  किया जाना संभव नहीं होता। आमतौर पर काला मोतिया का पता तब तक नहीं चलता जब तक मरीज दृष्टिहीन नहीं हो जाता।
ग्लूकोमा के सम्बंध में जागरूकता के लिए प्रतिवर्ष विश्व ग्लूकोमा जागरूकता सप्ताह (10 से 17 मार्च)  को मनाया जाता है।

सफेद मोतिया (मोतियाबिंद)क्या है?
यह आंखों का एक सामान्य रोग है। नेत्र लेंस विभिन्‍न दूरियों की वस्तुओं पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है। समय के साथ लेंस अपनी पारदर्शिता खो देता है तथा अपारदर्शी हो जाता है। लेंस के धुंधलेपन को मोतियाबिंद कहा जाता है। दृष्टिपटल तक प्रकाश नहीं पहुँच पाता है एवं धीरे-धीरे दृष्टि में कमी अन्धता के बिंदु तक हो जाती है। ज्यादातर लोगों में अंतिम परिणाम धुंधलापन एवं विकृत दृष्टि होते है।

मोतियाबिंद की जानकारी के लिए लिंक पर क्लिक कीजिए-
https://myscience-mysociety.blogspot.com/2019/10/blog-post_11.html

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