टिड्डी दल क्या है?

What are Locusts?
Om Prakash Patidar
संघ अर्थोपोड़ा के हेमिप्टेरा (Hemiptera) गण के सिकेडा (Cicada) वंश का कीट भी टिड्डी या फसल डिड्डी (Harvest Locust) कहलाता है। इसे लधुश्रृंगीय टिड्डा (Short Horned Grasshopper) भी कहते हैं। यह प्रवासी कीट है और इसकी उड़ान दो हजार मील तक पाई गई है। इसका वैज्ञानिक नाम Locusta migratoria है।
टिड्डी जब अकेली होती है तो उतनी खतरनाक नहीं होती है। लेकिन, झुंड में रहने पर इनका रवैया बेहद आक्रामक हो जाता है। फ़सलों का पूरी तरह सफ़ाया कर देती हैं। आपको दूर से ऐसा लगेगा, मानो आपकी फ़सलों के ऊपर किसी ने एक बड़ी-सी चादर बिछा दी है।
एक विशालकाय टिड्डी दल दस वर्ग किलोमीटर तक में फैले हो सकते हैं। इस तरह के दल में तीन सौ टन तक टिड्डे हो सकते हैं। अभी तक ऐसे झुंड भी रिकार्ड किए गए हैं जो 300 वर्ग किलोमीटर तक में फैले थे। 
फसलों को खाने के अलावा शहरी क्षेत्रों में भी तमाम प्रकार की परेशानियां पैदा कर सकते हैं। घरों, बिस्तरों और रसोईघरों में वे घुस जाते हैं। बहुत सारे लोग इसके प्रति एलर्जिक भी होते हैं। टिड्डी दलों की वजह से रेलवे लाइन पर घर्षण कम हो जाता है और इससे ट्रेन के फिसलने का खतरा पैदा हो सकता है। इसलिए ट्रेनों तक को रोकना पड़ता है। टिड्डी दल के कारण वायुयान (Airplanes) के लैंड और टेक-ऑफ में भी समस्या हो सकती है। टिड्डियां अगर जलाशयों में गिर जाते हैं तो पानी भी पीने योग्य नहीं रह जाता है।

टिड्डियां क्या खाती हैं ?
आमतौर पर टिड्डी दल हर तरह के पेड़-पौधें, फसलें आदि चट कर जाते हैं। बड़े पेड़ों की भी कोमल पत्तियों और टहनियों को वे खा जाते हैं। एक सामान्य टिड्डी दल में पंद्रह करोड़ तक की संख्या में टिड्डे हो सकते हैं। एक टिड्डी अपने वजन के बराबर खाना खाती है। एक वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला एक सामान्य टिड्डी दल एक दिन में 35 हजार लोगों के बराबर का खाना खा सकते हैं। वैसे तो टिड्डी दल हर प्रकार की हरी चीज को साफ कर कर देते हैं। लेकिन, ऑक, नीम, धतूरा, शीशम और अंजीर को वे नहीं खाते हैं। निंफ और वयस्क टिड्डा दोनों ही नुकसान पहुंचाने वाले होते हैं। जब ये टिड्डी दल अपने पूरे जोर पर होते हैं तो अकाल तक का खतरा पैदा कर देते  हैं। वर्ष 1926 से 31 के बीच भारत के अलग-अलग हिस्सों में लगातार टिड्डी दलों के हमले हुए। कहा जाता है कि उस समय तक टिड्डी दल फसलों को चट करने के लिए आसाम तक पहुंच गए थे। 

टिड्डियों में प्रजनन-
इनकी इतनी बड़ी संख्या के पीछे इनके प्रजनन की प्रक्रिया है।
टिड्डियां बलुई जमीन को अपनी ब्रीडिंग कॉलोनी में बदल देते हैं। मादा टिड्डा जमीन में दो से चार इंच का छेद करके उसमें अंडे देती है। मेटिंग के आठ से 24 घंटों बाद मादा अंडे देने की शुरुआत कर देती है। अपने जीवन भर में एक टिड्डा पांच सौ अंडे देती है। यह भी देखने में आता है कि मादाएं एकदम करीब-करीब अंडे देती हैं। यहां तक कि एक वर्ग मीटर के बीच में पांच हजार तक अंडे हो सकते हैं। एक अंडा 7-9 मिलीमीटर लंबा होता है। गर्मी का मौसम टिड्डों के लिए उपयुक्त होता है। गर्मी के दिनों में इन अंडों में से 12 से 15 दिनों के भीतर ही बच्चे निकल आते हैं जबकि जाड़े के दिनों में तीन से चार सप्ताह लग जाते हैं। इन्हें निंफ कहा जाता है। गर्मी के दिनों में तीन से चार सप्ताह में निंफ बड़े हो जाते हैं और इनके पंख निकल आते हैं, जबकि, जाड़े के दिनों में इसमें छह से आठ सप्ताह लग जाते हैं। आमतौर पर टिड्डा तीन से पांच महीने तक जीता है। हालांकि, यह भी मौसम के ऊपर बहुत कुछ निर्भर करता है। टिड्डा का जीवन चक्र तीन अलग-अलग हिस्सों में यानी अंडा फिर होपर या निंफ और वयस्क में बांटा जा सकता है। 

इस वर्ष इनकी संख्या अचानक इतनी क्यो बड़ गयी-
आमतौर पर टिड्डी दल भारत मे जुलाई माह में आता है। यह दल अपेक्षाकृत छोटा होता है लेकिन इस वर्ष यह दल बहुत बड़े समूह में आ रहा है। पहली बार टिड्डी दलों ने जयपुर जैसी शहरी आबादी क्षेत्र में घुसपैठ की है। टिड्डी दल किसी एक देश की समस्या नहीं हैं। ये एक ग्लोबल समस्या है। अरब सागर के तीन तरफ यानी अफ्रीका, अरब और भारतीय उप महाद्वीप के देश इसके हमलों से प्रभावित होते रहे हैं। माना जाता है कि क्लाईमेट क्राइसिस के चलते वर्ष 2018 में कुछ असामान्य चक्रवाती तूफान आए हैं। इनके चलते खासतौर पर अरब क्षेत्र में बरसात हुई। जिससे रेत वाली जमीन में ज्यादा नमी बनी। इसके चलते टिड्डी दलों की भयंकर पैदावार हुई है। 
आमतौर पर इनकी पैदावार पर रोक लगाने के लिए ऐसी जगहों जहां पर इन्होंने अंडे दिए होते हैं, वहां पर दवाओं का छिड़काव किया जाता है। लेकिन, इस बार कोरोना संकट के चलते ईरान का पूरा अमला उससे निपटने में ही जुटा हुआ था। इसके चलते इन कीटों को नष्ट करने का काम प्रमुखता से नहीं हुआ। जिसके चलते समस्या विकराल हो गई। 
भारत में इस बार मार्च, अप्रैल और मई के पहले पखवाड़े में लगातार ही नियमित अंतराल में पश्चिमी विक्षोभों की सक्रियता रही है। इसके चलते नियमित अंतराल पर बारिश हुई है। जिससे मौसम में नमी बनी रही। यह कीटों के पनपने के लिए उपयुक्त स्थिति बन गई। 

टिड्डी दल से बचाव के उपाय –
टिड्डी दल को भगाने के लिए थालियां, ढोल, नगाड़़े, लाउटस्पीकर या दूसरी चीजों के माध्यम से शोरगुल 
मचाने से आवाज़ सुनकर खेत से भाग जाती है।
टिड्डों ने जिस स्थान पर अपने अंडे दिये हों, वहां 25 कि.ग्रा 5 प्रतिशत मेलाथियोन या 1.5 प्रतिशत क्विनालफॉस को मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिड़कें।
टिड्डी दल को आगे बढ़ने से रोकने के लिए 100 कि.ग्रा धान की भूसी को 0.5 कि.ग्रा फेनीट्रोथीयोन और 5 कि.ग्रा गुड़ के साथ मिलाकर खेत में डाल दें। इसके जहर से वे मर जाते हैं।
टिड्डी दल के खेत की फसल पर बैठने पर, उस पर 5 प्रतिशत मेलाथीयोन या 1.5 प्रतिशत क्विनाल्फोस का छिड़काव करें।
कीट की रोकथाम के लिए 50 प्रतिशत ई.सी फेनीट्रोथीयोन या मेलाथियोन अथवा 20 प्रतिशत ई.सी. क्लोरपाइरिफोस 1 लीटर दवा को 800 से 1000 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में छिड़काव करें
टिड्डी दल सवेरे 10 बजे के बाद ही अपना डेरा बदलता है। इसलिए, इसे आगे  बढ़ने से रोकने के लिए 5 प्रतिशत मेलाथियोन या 1.5 प्रतिशत क्विनालफॉस का छिड़काव करें फसल कट जाने के बाद खेत की गहरी जुताई करें। इससे इनके अंडे नष्ट हो जाते हैं।
कोरोना की तरह ही टिड्डी दलों के हमले को भी हल्के में नहीं लिया जा सकता है। क्योंकि, वे भी हमारी खेती और अर्थव्यवस्था को गहरा जख्म देने वाले हैं। सबसे खराब स्थिति वह होगी जब वे लोगों को भुखमरी की स्थिति में ला देगी।

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