सुबह के नास्ते की बात करे तो पोहे के बिना नास्ता अधूरा अधूरा लगता है। इंदौर के उसल पोहे के लोग दीवाने होते है। मालवा के कुछ शहरों व रेलवे स्टेशन पर तो 24 घंटे पोहे के बढ़े बढ़े कड़ाहे रखे मिल जाएंगे। पोहे को महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश, खासतौर पर मालवा में बेस्ट कॉमन ब्रेकफास्ट के रूप में ख्याति प्राप्त है। पोहा केवल भारत ही नहीं, बल्कि नेपाल और बांग्लादेश के अलावा विश्व के अन्य देशों में भी पोहा काफी लोकप्रिय है। पोहे की इसी लोकप्रियता को देखते हुए 7 जून को पोहा दिवस के रूप में मनाया जाता है यानी आपका और हमारा पोहा अब अपनी नई पहचान के रूप में हम सबके सामने है।
पोहा कैसे बनता है?
पोहे बनाने के लिए धान (Rice) को भिगोकर तथा कुछ-कुछ नम अवस्था में ही रोलिंग मिल में दबाकर चिवड़ा बनाया जाता है जिसे पोहा भी कहते है। इसे अलग-अलग क्षेत्रों एवं बनाने के तरीकों के अनुसार इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। पोहे के अलावा इसे पीटा चावल या चपटा चावल के नाम से भी जाना जाता है। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में इसे पोहा, पोहे, चिवड़ा या तलकर बनाए जाने पर चूड़ा भी कहा जाता है। इसके अलावा तेलुगु में अटुकुलू, तमिल व मलयालम में अवल, बंगाली व असम में चीडा, मैथिली, नेपाली, भोजपुरी तथा छत्तीसगढ़ी और बिहार तथा झारखंड के कुछ क्षेत्रों में चिउरा, हिन्दी में पोहा या पौवा, नेवाडी में बाजी, मराठी में पोहे, कोंकणी में फोवू, कन्नड में अवालक्की और गुजराती में इसे पौआ या पौंवा के नाम से जाना जाता है।

रोज पोहे खाने वालों को भी इतनी पोहा गाथा नहीं मालूम होगी ।
जवाब देंहटाएंThanks for the nice information